Sunday, November 6, 2016

खुशबू

जिंदगी की तलाश में
वह बैठा रहता है
शहंशाही अंदाज़ लिए 
कूड़े के ढेर पर,
नाक पर रूमाल रखे
आते-जाते लोगो को
निर्विकार भाव से
देखते हुए गुनगुनाता है
‘कुण्डी मत खड़काना राजा’
सिर्फ आज की नहीं
यह तो है
रोज की कहानी
कालोनी से आने वाला
कूड़े से लदा ट्रक
जब खाली होकर चला जाएगा
वह सड़ते हुए
रोटियों की ‘खुशबू’ से सराबोर हो
एक और दिन के लिए
जिंदगी पायेगा

कितना फर्क हैं ना
हमारी खुशबू और 
उसकी खुशबू में 

11 comments:

  1. ज़िन्दगीजुड़वा सी लगती है
    फिर भी ... अंदाज़ अलग,
    मायने अलग
    परिणाम अलग

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 07 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. बहुत गहरा लिखा अहि .... जिंदगी की इस कडवी सच्चाई से रूबरू कराती रचना है ...

    ReplyDelete
  4. हाँ , फर्क तो है । सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  5. वाह!!बेहतरीन रचना।

    ReplyDelete
  6. जीवन के मर्म को छूती कमाल की रचना
    वाह

    ReplyDelete
  7. निमंत्रण :

    विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे ही एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    ReplyDelete