चिठिया लिख के पठावा हो अम्मा
गऊंआ क तूं हाल बतावा हो अम्मा
हमरे मन में त बा बहुते सवाल
पहिले त तू बतावा आपन हाल
घुटना क दरद अब कईसन हौ
अबकी तोहरा बदे ले आईब शालमन क बतिया त सुनावा हो अम्मा
गऊंआ क तूं हाल बतावा हो अम्मा
टुबेलवा क पानी आयल की नाही
धनवा क बेहन रोपायल की नाही
झुराय गयल होई अबकी त पोखरी
परोरा* क खेतवा निरायल की नाही
अपने नजरिया से दिखावा हो अम्मा
गऊंआ क तूं हाल बतावा हो अम्मा
छोटकी बछियवा बियायल त होई
पटीदारी में इन्नर* बटायल त होई
चरे जात होई इ त वरूणा* किनारे
मरचा से नज़र उतरायल त होईमीठ बोल बचन से लुभावा हो अम्मा
गऊंआ क तूं हाल बतावा हो अम्मा
बाबूजी से कह दा जल्दी हम आईब
ओनके हम अबकी दिल्ली ले आईब
खटेलन खेतवा में बरधा के जईसन
अबकी इहाँ हम इंडिया गेट घुमाईबकटहर क तू अचार बनावा हो अम्मा
गऊंआ क तूं हाल बतावा हो अम्मा
परोरा = परवल
इन्नर = गाय के प्रथम दूध को जलाकर बनाया गया पदार्थ
वरूणा = हमारे गाँव से गुजरने वाली नदी
चित्र : साधिकार बिना आभार देवेन्द्र पाण्डेय (बेचैन आत्मा)
वर-माँ का मिल जाय तो, जीवन सुफल कहाय |
ReplyDeleteवर्मा जी की कवितई, दिल गहरे छू जाय |
दिल गहरे छू जाय, खाय के इन्नर मीठा |
रोप रहे हैं धान, चमकते बारिस दीठा |
बापू को इस बार, घुमाना दिल्ली भैया |
बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया ||
मार्मिक तड़प, उत्कृष्ट रचना ...
ReplyDeleteयह दर्द अनुभव कराने के लिए आभार आपका वर्मा जी !
वर्मा जी,
ReplyDeleteइस गीत ने गाँव ,बचपन और माँ की यादों को ताज़ा कर दिया !
आभार !
बढ़िया रचना प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteबीते बचपन की यादों को एवं मार्मिक तडप का अहसास कराती बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
हर पंक्ति सटीक और प्यारी .....बधाई आप को लाजबाब ...
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार वर्मा जी !
बहुत सुन्दर ! यद्यपि भोजपुरी में लिखी है, फिर भी हिन्दी रचना जैसा रस दे रही है !
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ... उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteबाबूजी से कह दा जल्दी हम आईब
ReplyDeleteओनके हम अबकी दिल्ली ले आईब
खटेलन खेतवा में बरधा के जईसन
अबकी इहाँ हम इंडिया गेट घुमाईब
कटहर क तू अचार बनावा हो अम्मा... बहुत प्यारी रचना
behad sunder bhaw.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteयाद रह जाती है ऐसी रचनायें और अनायास गुनगुना उठते हैं हम!
बहुत सुन्दर भाव लिए है गीत... वाह!
ReplyDeleteसादर बधाई.
''चिठिया लिख के पठावा ओ अम्मा
ReplyDeleteगउवां का तू हाल बतावा हो अम्मा''
भोजपुरी का आपका ये अंदाज कमाल का है ।
अब का बतावै ,हमरा जियरा ता ओही जगह पहुंच गएल बा ।
इतनी अच्छी कविता का अनुभव कराने के लिए आपका बहुत-2 आभार ।
''सुनीता जोशी ''
''चिठिया लिख के पठावा ओ अम्मा
ReplyDeleteगउवां का तू हाल बतावा हो अम्मा''
भोजपुरी का आपका ये अंदाज कमाल का है ।
अब का बतावै ,हमरा जियरा ता ओही जगह पहुंच गएल बा ।
इतनी अच्छी कविता का अनुभव कराने के लिए आपका बहुत-2 आभार ।
''सुनीता जोशी ''
बड़ा नीक कविता लिखनी ह वर्मा भाई जी , साचो गौआं के याद आ गईल .
ReplyDeleteकविता मा एको हाली अम्मा का हाल न पुछनी ह . त अब तनी अम्मा के हाल बतावा ए वर्मा भाई जी !
मन खुश हो गया इस भोजपुरी गीत को पढ़कर। मुझे यही सबसे अच्छा लगता है। मन के भावों को जैसा देखा, जैसा महसूस किया वैसे ही अभिव्यक्त कर देना। यही सच्ची कविता है।
ReplyDeleteफोटू यहाँ देखकर खुशी हुई और इससे बढ़कर इस बात से खुशी हुई की आपने साधिकार इसे यहाँ लगा लिया।
आभासी दुनियाँ से बड़े भाई जैसा प्रेम मिल जाय तो फिर और क्या चाहिए।
..आभार।
बहुत ही आत्मीय लगी यह पोस्ट।
ReplyDeleteवाह क्या बात है, बहुत खुबसूरत
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteप्यारी सी रचना............
सादर
अनु
कटहर क तू अचार बनावा हो अम्मा*
ReplyDeleteकटहर क अचार त हमरो बेटवा क बहुते भावेला ....
राउर लिखल पढ़ी क जी निहाल हो गइल ....
बंधुवर वर्माजी आप की पसंद एवं प्रसंशा के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteसुंदर गीत.
ReplyDeleteफोटो का साधिकार बिना आभार प्रयोग मजेदार लगा.
आभार.
भोजपुरी में बनारसी बोली का पुट गाँव का चित्रण अत्यंत सुंदर बधाई हो ,
ReplyDeleteमेरा भोजपुरी ब्लाग भी देखें .
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteभोजपुरी भाषा में क्या खूब लिखा है आपने...
बहुत सुन्दर मनभावन रचना...
:-)
इतना मीठा भोजपुरी..दर्द भी मीठा लग रहा है..
ReplyDeleteघर से दूर होने पर वहां की हर यादें बहुत तडपाती हैं...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteआह बहुत ही भावपूर्ण उदगार -का कबहूँ गाँव गिराव में रहे हो का भैया ?
ReplyDeleteइतना सटीक भाव त बिना गाँव में रहे न आयी ..
धान क नर्सरी सुखात बा -इन्दर देव बेईमनवा पनिया न बरसावत हई
बड़ी सहजता से अपनी बात कह देतें हैं ,
ReplyDeleteआप के सभी ब्लागों को देखा पढना अभी शेष है ,
समय निकालकर पढूंगा .
कहीं गाँव से दूर बसने का दर्द। शुभकामनायें
ReplyDeleteअपनी भाषा को महसूस करके रोयें खड़े हो जाते हैं..
ReplyDeleteहाँ ,अब तो चिट्ठी से हाल जान कर ही संतोष करना पड़ेगा - कितनी दूर छूट गये अपने वे गाँव !
ReplyDeleteचिट्ठी का जमाना तो न जाने कुब का पीछे छुट गया ,अब फ़ोन पे ही गाँव के लोग भी अपना दुःख -सुख एक दुसरे से बताते है , मार्मिक मनोभाव से युक्त अच्छी कविता के लिए बहुत -बहुत साधुवाद ।
ReplyDeleteबहुत भावभीनी कविता । भोजपुरी होते हुए भी अच्छे से समझ में आ गई । अम्मा को तो भावुक होते देखा है अच्छी लगी बेटे की भावुकता ।
ReplyDeleteकैसी विवशता कि दिल्ली से गाँव इतनी दूर हो गया !
ReplyDeleteअत्यंत उच्च श्रेणी का जज्बा आपके लेखन की खासियत है ,प्रभावी रचना ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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