छत्तीस का आकड़ा है ….
छत्तीस का आकड़ा है
क़दमों में पर पड़ा है
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आंसुओं को छुपा लेगा
जी का बहुत कड़ा है
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उंगलियां उठें तो कैसे?
कद उनका बहुत बड़ा है
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लहुलुहान तो होगा ही
पत्थरों से वह लड़ा है
.
कब का मर चुका है
वह जो सामने खड़ा है
.
खाद बना पाया खुद को
महीनों तक जब सड़ा है
.
कल सर उठाएगा बीज
आज धरती में जो गड़ा है
छोटी बहर की शानदार गजल लिखी है आपने!
ReplyDeleteवाह !!
ReplyDeleteलहुलुहान तो होगा ही
ReplyDeleteपत्थरों से वह लड़ा है
सुंदर ...अभिव्यक्ति ....
वाह सर वाह..............
ReplyDeleteछोटे बहर की बेहद खूबसूरत गज़ल......
सादर.
उंगलियां उठें तो कैसे?
ReplyDeleteकद उनका बहुत बड़ा है ,,,,,,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
छोटी बहर की बहुत सशक्त ग़ज़ल.कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteगोपनीय जीव विज्ञान देगा सुराग येती के होने ,न ,होने का
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स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
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ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
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मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
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बहुत बढ़िया गजल ...
ReplyDeleteसशक्त ग़ज़ल...
ReplyDeleteकल सर उठाएगा बीज
ReplyDeleteआज धरती में गड़ा है
बहुत बढ़िया , बेहतर !
लहुलुहान तो होगा ही
ReplyDeleteपत्थरों से वह लड़ा है
बहुत खूब!
इस छोटी बहर में तूफ़ान की तरह उमड़ते भावों कों समेटना जोखिम भरा काम है और आपने इसे बाखूबी किया है ... लाजवाब गज़ल ...
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना ।
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...बेहतरीन
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteउंगलियां उठें तो कैसे?
ReplyDeleteकद उनका बहुत बड़ा है
जबरदस्त प्रभावशाली ....
बधाई वर्मा जी !
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. वाह..
ReplyDeleteखाद बना पाया खुद को
ReplyDeleteमहीनों तक जब सड़ा है
वाह, इस खूबसूरत गज़ल का एक एक शेर बेहतरीन ।
उंगलियां उठें तो कैसे?
ReplyDeleteकद उनका बहुत बड़ा है
लहुलुहान तो होगा ही
पत्थरों से वह लड़ा है
कल सर उठाएगा बीज
आज धरती में गड़ा है
bahut sundar evam prabhavshali rachna... in panktiyon ki kavyatmakta to bas adbhut hai...
सही कहा है!
ReplyDeletevery impressive...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDelete( अरुन =arunsblog.in)
waah...kya baat hai..!!
ReplyDeleteउंगलियां उठें तो कैसे?
ReplyDeleteकद उनका बहुत बड़ा है
कितनी सही बात।
शानदार ग़ज़ल।
कल सर उठाएगा बीज
ReplyDeleteआज धरती में गड़ा है
...यही जीवन का सहारा है...बेहतरीन गज़ल...
जीवन का सत्य ......
ReplyDeleteकल सर उठाएगा बीज
आज धरती में गड़ा है
बहुत खूब !
शुभकामनाएँ!
bahut sundar...
ReplyDeleteइस गज़ल से तो 63 का आंकड़ा हो गया।:)
ReplyDeleteबहुत खूब सर
ReplyDeleteछोटी बहर में इतना कुछ
बहुत ही सुन्दर रचना है..
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति:-)
कमाल है भाई जी....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आंसुओं को छुपा लेगा
ReplyDeleteजी का बहुत कड़ा है
बहुत मजबूरियों को साथ लेकर चलता है यह . ..बहुत सुन्दर !
कल सर उठाएगा बीज
ReplyDeleteआज धरती में गड़ा है
बहुत सुंदर .....