आज वह
एक बार फिर मरा है
पर यह कोई खबर नहीं है
वैसे भी,
उसके मरने की खबर
किसी खबरनवीस के लिए
खबर की बू नहीं देती,
क्योंकि
खबर तभी खबर बन पाती है
जब उसमें
पंचातारे की नजाकत हो;
या फिर
बिकने की ताकत हो.
.
यूं तो यह विषय है
अनुसन्धान का
कि वह पहली बार कब मरा ?
स्वयं यह प्रश्न
खुद के अस्तित्व के लिए
निरंतर अवसादित है;
अन्य सार्थक प्रश्नों की तरह
यह प्रश्न
आज भी विवादित है,
और फिर
प्रश्न यदि बीज बन जाएँ
तो कुछ और प्रश्न पनपते हैं
यथा ..
क्या वह कभी ज़िंदा भी था ?
और अगर हाँ
तो किन मूल्यों पर ?
.
क्यूंकि वह
आये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है
आभार सर जी |
ReplyDeleteहर दिन मरा करते हैं लोग -
अच्छा है संयोग -
आज अखबार वाले आये हैं -
मरते मरते फोटू छपवाए हैं -
gahan rachna ...!!
ReplyDeleteआपने सही कहा,... बर्माजी
ReplyDeleteक्यूंकि वह
आये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है,,,,,,
,..अच्छी प्रस्तुति,,,,,,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
वह तो न कभी खरीद पाया, न कभी बिक पाया..
ReplyDeleteZabardast Jazbaat hai....
ReplyDeleteवह ... हर आम आदमी रोज़ ही मारता है न जाने कितनी बार ... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहाँ ,मौत भी किस्तों में होती है अब -ध्यान कौन दे !
ReplyDeleteकिश्तों में मर रहा हर दिन आदमी , क्या कभी जिन्दा भी था !
ReplyDeleteनिराशावादी दौर की सजीव प्रस्तुति !
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
मन को झिंझोडते ख़याल ...
ReplyDeleteगहन रचना...
सादर
उनका मरना कोई खबर नहीं है
ReplyDeleteफिर भी खबर में मरने वालों की संख्या कम नहीं है .
सच है भाई.....
ReplyDeleteशुभकामनायें वर्मा जी !
क्यूंकि वह
ReplyDeleteआये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है
....बिलकुल सच .....रचना के भाव अंतस को छू गये..आभार
बहुत सही कहा आपने ... गहन भाव संयोजन ।
ReplyDeleteआम इंसान की ज़िन्दगी का सच
ReplyDeleteऔर कभी खबर बन भी नहीं सकता..
ReplyDeleteआम आदमी तो आए दिन मरता है ,उसके पास ना तो कोई खबर नवीस आता है ना ही कोई और उसे पूछता है ,हाँ जरूरत पडने पर ना जाने कब कोई आ जाए,कुछ नहीं कह सकते। बहुत अच्छा सर जी।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत खूब ....
ReplyDeleteआपके यहाँ आकर ही लगता है कुछ पढ़ा है .....
अच्छा चित्रण किया है आप ने...सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
क्यूंकि वह
ReplyDeleteआये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है
..सच कहा आपने जाने कितनी बार मरना पड़ता है ...खबर में वही होती है जिसके बहुतेरे होते है कर्ता-धर्ता ,,
बहुत बढ़िया विचारशील प्रस्तुति ..आभार
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteसवालों के घेरे में मीडिया...
ReplyDeleteगहन बात कह गयी रचना...
ReplyDeleteजीने का सलीका ही तो मौत को गरिमा प्रदान करता है वरना आना जाना तो लगा हुआ है बेख़बर क्रम सा!
आम आदमी की मौत कोई खबर नहीं होती ...
ReplyDeleteमारना उसकी नियति है .. गहरी अभिव्यक्ति ...
अनुपम गहरे भाव संयोजित सुंदर रचना...आभार,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
क्यूंकि वह
ReplyDeleteआये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है
मार्मिक ! रोज-रोज मरने वालों की कोई खबर नहीं बनती।
दूसरी ओर, तथाकथित हैसियत वाले लोग जब छींकते हैं तो वो भी बड़ी खबर बन जाती है।
असाधारण लेखन सर
ReplyDeleteइतना बारीक अवलोकन असाधारण चक्षु ही कर सकते हैं
क्यूंकि वह
ReplyDeleteआये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है
क्या खूब लिखा है आपने ...
साभार !!