Tuesday, May 8, 2012

इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है ….


खाना नहीं, बिजली और पानी नहीं है
इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है
.
चूहों ने कुतर डाले हैं कान आदमी के
शायद इस शहर में चूहेदानी नहीं है 
.
चहलकदमी भी है, सरगोशियाँ भी हैं
मंज़र मगर फिर भी तूफानी नहीं है
.
आये दिन लुट जाती है अस्मत यहाँ
कौन कहता है यह राजधानी नहीं है
.
अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो
बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है
.
बादलों को तो गगन चूमने नहीं दिया
कहते फिरे माँ का आँचल धानी नहीं है
.
हिस्से तुम्हारे इसलिए ‘किस्से’ नहीं हैं
क्योंकि संग तुम्हारे, तुम्हारी नानी नहीं है

42 comments:

  1. बहुत सुंदर....................

    हर शेर लाजवाब...........
    नानी नहीं तो किस्से कहाँ........बादल नहीं तो धरा धानी कहाँ......

    वाह.................

    सादर.

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  2. अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो

    बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है

    .
    वाह ....बहुत खूब ... पूरी गजल ही बहुत कुछ कह रही है ॥

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  3. sunder shayari ....!!
    shubhkamnayen .

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  4. इस शहर में कोई परेशानी नहीं है ...
    ना में हाँ का यह किस्सा भी शानदार है !

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  5. अहा, पढ़ने का आनन्द आपकी हर पंक्तियों में छलक रहा है..

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  6. बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है |

    बहुत सुंदर |

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  7. हिस्से तुम्हारे इसलिए ‘किस्से’ नहीं हैं
    क्योंकि संग तुम्हारे, तुम्हारी नानी नहीं है
    वाह!

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  8. हिस्से तुम्हारे इसलिए ‘किस्से’ नहीं हैं

    क्योंकि संग तुम्हारे, तुम्हारी नानी नहीं है... बेजोड़

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  9. वर्मा जी बहुत सुन्दर व्यंग का पुट लिए हुए बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने क्या कहने हर शेर लाजबाब है

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  10. बढ़िया कटाक्ष करती सुन्दर रचना

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  11. अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो

    बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है

    .

    बादलों को तो गगन चूमने नहीं दिया

    कहते फिरे माँ का आँचल धानी नहीं है

    बहुत सुंदर !

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  12. चूहों ने कुतर डाले हैं कान आदमी के

    शायद इस शहर में चूहेदानी नहीं है

    क्या कहूँ गज़ब का कटाक्ष करती गज़ल है।

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  13. चूहों ने कुतर डाले हैं कान आदमी के
    शायद इस शहर में चूहेदानी नहीं है

    बहुत बढ़िया . यथार्थ सत्य .

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  14. yatharth ko batlaati behtreen abhivaykti....

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  15. खाना नहीं, बिजली और पानी नहीं है
    इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है .।

    और
    हिस्से तुम्हारे इसलिए ‘किस्से’ नहीं हैं
    क्योंकि संग तुम्हारे, तुम्हारी नानी नहीं है ।


    पूरी गज़ल शानदार ।

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  16. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 10 -05-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....इस नगर में और कोई परेशान नहीं है .

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  17. आये दिन लुट जाती है अस्मत यहाँ

    कौन कहता है यह राजधानी नहीं है

    Bahut Umda....

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  18. हिस्से तुम्हारे इसलिए ‘किस्से’ नहीं हैं

    क्योंकि संग तुम्हारे, तुम्हारी नानी नहीं है

    sundar gazal !

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  19. बादलों को तो गगन चूमने नहीं दिया
    कहते फिरे माँ का आँचल धानी नहीं है,......

    वाह,...बहुत .सुंदर गजल,...वर्मा जी
    my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  20. बहुत सुंदर रचना .....

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  21. कटाक्ष करती सुन्दर रचना |

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  22. बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है ....
    शानदार रचना...
    साधुवाद

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  23. बहुत ही सुन्दर
    बेहतरीन अभिव्यक्ति....

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  24. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!
    --
    डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
    टनकपुर रोड, खटीमा,
    ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
    Phone/Fax: 05943-250207,
    Mobiles: 08542068797, 09456383898,
    09808136060, 09368499921,
    09997996437, 07417619828
    Website - http://uchcharan.blogspot.com/

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  25. बादलों को तो गगन चूमने नहीं दिया
    कहते फिरे माँ का आँचल धानी नहीं है,......

    वाह,...बहुत .सुंदर गजल,...वर्मा जी

    MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  26. एक एक मिसरा..व्यंग्य और कटु सत्य का अद्भुत संगम है... यथार्थ परक प्रभावशाली रचना के लिए बधाई स्वीकार करें..
    सादर
    मंजु

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  27. बादलों को तो गगन चूमने नहीं दिया
    कहते फिरे माँ का आँचल धानी नहीं है.

    सुंदर गज़ल.

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  28. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.


    माँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
    माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
    उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!

    संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी

    आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  29. विसंगतियों को क्या ख़ूब उजागर किया है.

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  30. हिस्से तुम्हारे इसलिए ‘किस्से’ नहीं हैं

    क्योंकि संग तुम्हारे, तुम्हारी नानी नहीं है

    बहुत ही सुंदर भाव । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  31. अच्छी ग़ज़ल......
    सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  32. आदरणीय एम वर्मा जी
    नमस्कार !

    कमाल की ग़ज़ल लिखी है , कुछ शे'र तो 'सवा शे'र' साबित हो रहे हैं …
    * खाना नहीं, बिजली और पानी नहीं है
    इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है

    * आये दिन लुट जाती है अस्मत यहां
    कौन कहता है यह राजधानी नहीं है

    * अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो
    बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है

    वाह वाह वाह !
    आपकी पिछली दो पोस्ट में प्रस्तुत ग़ज़लें पढ़ कर भी दिली मसर्रत हुई …
    बहुत बहुत मुबारकबाद !
    हार्दिक शुभकामनाएं !

    मंगलकामनाओं सहित…

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  33. क्या कहने ..ऐसा ही संसार है अब ! :)

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  34. खाना नहीं, बिजली और पानी नहीं है
    इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है

    वाह, क्या जबर्दस्त मतअला है।
    सभी शेर लाजवाब।
    पढ़कर अच्छा लगा वर्मा जी।

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  35. चूहों ने कुतर डाले हैं कान आदमी के
    शायद इस शहर में चूहेदानी नहीं है ...

    वाह ... क्या शेर है ... गहरा कटाक्ष है बदलती व्यवस्था पे ... पूरी गज़ल लाजवाब है ...

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  36. मजेदार और बेहद सार्थक सत्य प्रस्तुति...

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  37. खाना नहीं, बिजली और पानी नहीं है
    इस नगर में और कोई परेशानी नहीं है

    यह शेर काफी अच्छा लगा .

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  38. अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो

    बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है.... aaur naani wala sher to wakai is duniya ke hath se lagbhag chin chuki hui dharohar hai..waakai nani ka nahi koi sani..duniya ka sabse pyara rista...bahut seedhe sacchi baat bilkul sacche seedhe tareeke se..sada r badhayee

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  39. वर्मा जी वर्तमान परिदृश्य में आपकी रचना बिलकुल सटीक बैठती है...राजधानी होने की विदमबना को आपने बखूबी उभारा है.... राजधानी/ महानगरों के चमक दमक भरे आवरण को परत दर परत उधेड़ने का अंदाज काबिले तारीफ़ है :)

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  40. "अपनों पर बेशक तुम यकीं मत करो
    बेईमानों के बीच मगर बेईमानी नहीं है"
    सर आपने तो एक्दम से दुष्यन्त कुमार जी की याद दिला दी
    बेजोड़ ग़ज़ल

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  41. nice post check my website
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