Thursday, April 26, 2012

‘कृपा' के व्यापारी ……..


शातिर ये शिकारी हैं
‘कृपा’ के व्यापारी हैं
.
बीमारी दूर करेंगे क्या
खुद ये तो बीमारी हैं
.
इनके सफ़ेद वस्त्रों में
जेब नहीं आलमारी हैं
.
रिश्तों को किश्तों में
बेचने वाले पंसारी हैं
.
घुटनों के बल रेंग रहे
फिर भी क्रांतिकारी हैं
.
जोड़कर माया-स्विश
बनते ये अवतारी हैं
.
धन-साधन युक्त मगर
मत समझो संसारी हैं

35 comments:

Unknown said...

समाज पर सही चोट की गयी है इस कविता के ज़रिये. दाद क़ुबूल फरमाएं!

प्रतिभा सक्सेना said...

'बीमारी दूर करेंगे क्या

खुद ये तो बीमारी हैं.'

- इस बीमारी के लिये कोई छिड़काव होता हो कितना अच्छा रहता !

ANULATA RAJ NAIR said...

बढ़िया ..करारी रचना...

रिश्तों को किश्तों में
बेचने वाले पंसारी हैं....

और असल से ज्यादा
सूद वसूलने वाले व्यापारी है...

सादर.

मनोज कुमार said...

छोटी बहर की ग़ज़लों में मारक क्षमता होती है, यदि ये साध लिए जाएं तो। आपने कमाल का लिखा है।
इनके सफ़ेद वस्त्रों में

जेब नहीं आलमारी हैं
यह प्रयोग ला जवाब है।

रचना दीक्षित said...

इस बड़ी सामयिक समस्या पर जबरदस्त कटाक्ष किया आपने इस कविता के माध्यम से. सुंदर प्रस्तुति. आभार.

अरुण चन्द्र रॉय said...

धारदार ग़ज़ल...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सीधा कटाक्ष करती गजल

Amrita Tanmay said...

अवतारी की महिमा निराली...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

इनके सफेद वस्त्रों में
जेब नहीं अलमारी है।
...अनूठा प्रयोग। लाज़वाब।

Gyan Darpan said...

वाह ! शानदार चोट|

प्रवीण पाण्डेय said...

गजब की अभिव्यक्ति

रश्मि प्रभा... said...

रिश्तों को किश्तों में
बेचने वाले पंसारी हैं
.... bahut sahi

समयचक्र said...

bahut hi samayik rachana prastuti..abhaar

डॉ टी एस दराल said...

शानदार व्यंग .
इसे बाबा कृपा शंकर को पढवाना चाहिए .

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढि़या ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ये फ्री-फंड का खाने वाले

देश पर एक बीमारी है !

बहुत सुन्दर कटाक्ष वर्मा साहब !

Asha Joglekar said...

इनके सफ़ेद वस्त्रों में

जेब नहीं आलमारी हैं

.

रिश्तों को किश्तों में

बेचने वाले पंसारी हैं

बेहद सुंदर, सटीक और सामयिक भी ।

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut sateek gazal hai. aisa hi haal aaj kal ke Doctors ka hai jo professional ho gaye hain. Pvt. hospitals me to unhe target pure karne hi hote hain....apne vyaktigat kshetr me bhi baaz nahi aate apni tijoriyan bharne se.

aapki ye gazel padh kar dr.k liye bhi aise vichar kaundh gaye...so likh diya.

महेन्‍द्र वर्मा said...

जोड़कर माया-स्विश
बनते ये अवतारी हैं

माया, स्विश और अवतारों के बीच संबंधों की नई परिभाषा !
वाह ! बेहतरीन !!

मेरा मन पंछी सा said...

एकदम सटीक व्यंग किया है
...शानदार प्रस्तुति .....

Vandana Ramasingh said...

बहुत बढ़िया कटाक्ष

अरुन अनन्त said...

जबरदस्त रचना

Kailash Sharma said...

इनके सफ़ेद वस्त्रों में
जेब नहीं आलमारी हैं

....बहुत सुंदर और सशक्त व्यंग....

मुकेश कुमार सिन्हा said...

रिश्तों को किश्तों में

बेचने वाले पंसारी हैं

sach me aisa hi hai......

डॉ. मोनिका शर्मा said...

धन-साधन युक्त मगर

मत समझो संसारी हैं

Sateek Panktiyan

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

जोड़कर माया-स्विश बनते ये अवतारी हैं . धन-साधन युक्त मगर मत समझो संसारी हैं,.

बहुत सुंदर कमाल की प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

मेरे भाव said...

behatreen post.. badhiya aur prabhavhsali vyangya

Kavita Rawat said...

बीमारी दूर करेंगे क्या
खुद ये तो बीमारी हैं .
..bahut badi laailaj bimari ban gayee hai..
bahut sarthak sateek rachna!

Arvind Mishra said...

कवि ने भी आखिर चेता दिया :)

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

पाखण्ड को उजागर करती बहुत बढ़िया रचना.समयोचित भी है. साधुवाद.

ZEAL said...

घुटनों के बल रेंग रहे

फिर भी क्रांतिकारी हैं

waah..Great Satire...

.

vikram7 said...

. बीमारी दूर करेंगे क्या खुद ये तो बीमारी हैं

वाह .......बहुत ही सुन्दर

दिगम्बर नासवा said...

इनके सफ़ेद वस्त्रों में
जेब नहीं आलमारी हैं ..

गज़ब ... क्या चोट है समाज के सफेदपोशों पर ...
लाजवाब हर शेर करार तमाचा ...

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

itne chote meter me ghazal likhne wala vyakti to wakai kabile taarif hai

Unknown said...

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