Sunday, March 18, 2012

प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न ….



रंग बदलती दुनिया में, खुद को बदल न पाये हम
उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम
भैस बराबर अक्षर
फिर भी है वह ज्ञाता
रिश्तों के देहरी पर
अनुबंधों का तांता
भ्रमित करने के चक्कर में, खुद ही को भरमाये हम
उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम
नौ-नब्बे के चक्कर में
जम कर हुई उगाही
राह बताने को आतुर
भटके हुए ये राही
अस्तित्व खोखला इतना कि रह गए महज साये हम
उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम
‘पर’ बिना परिंदा ये
गगन को चूम रहा है
आखेटक मन देखो
फंदा लेकर घूम रहा है
प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न, भौचक्का खड़े मुंह बाये हम
उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम

28 comments:

  1. प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न..वाह! क्या बात है।

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  2. ‘पर’ बिना परिंदा ये
    गगन को चूम रहा है
    आखेटक मन देखो
    फंदा लेकर घूम रहा है

    बहुत बहुत सुन्दर....
    सादर.

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  3. उत्तर तो हमको स्वयं ही ढूढ़ने हैं, वह तो प्रश्न ही पूछेगा।

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  4. ‘पर’ बिना परिंदा ये

    गगन को चूम रहा है

    आखेटक मन देखो

    फंदा लेकर घूम रहा है

    ....बहुत खूब!बहुत सुंदर रचना...

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  5. भैस बराबर अक्षर

    फिर भी है वह ज्ञाता

    रिश्तों के देहरी पर

    अनुबंधों का तांता bahut sundar hai

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  6. जीवन भी एक उलझन है ।
    इसकी गुत्थी सुलझाना बड़ा मुश्किल है ।

    गहरी रचना ।

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  7. वाह! क्या बात है......

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  8. रंग बदलती दुनिया में, खुद को बदल न पाये हम

    उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम

    जीवन कि उलझनों से घिरा मन ...
    बहुत सुंदर रचना ...

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  9. प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न, भौचक्का खड़े मुंह बाये हम

    उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम... अपने ही अन्दर एक भूलभुलैया बनायें हम

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  10. सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है।

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  11. हकीकत को कहती सुंदर रचना

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  12. उलझी उलझनें और बढती जाती हैं , प्रश्नों और प्रतिप्रश्नों में !

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  13. शब्दों की जादूगरी और अर्थ-विस्तार सोने पर सोहागा सा है..

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  14. वाह ...बहुत ही बढि़या।

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  15. प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न,bahut badhiya.....

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  16. रंग बदलती दुनिया में, खुद को बदल न पाये हम

    उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम

    बहतरीन पंक्तियाँ है

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  17. वाह! वाह! खुबसूरत गीत...
    सादर बधाई...

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  18. बेहतर...

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  19. वाह बहूत ही सुंदर भाव संयोजन के साथ यथार्थ का आईना दिखाती सार्थक पोस्ट....

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  20. ........बहुत खूब..सच्चाई की रोशनी दिखाती बेहतरीन प्रस्तुति..

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  21. इतनी विसंगतियों के उत्तर ढूँढना आसान है क्या -और नये प्रश्न सिर उठाने लगेंगे!

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  22. अस्तित्व खोखला इतना कि रह गए महज साये हम
    उलझी हुई उलझनों को और अधिक उलझाये हम ..

    बहुत खूब ... खोखले अस्तित्व में भी कुछ न कुछ की तलाश तो रहती है ... फिर चाहे वो साया ही क्यों न हो ... अर्थ पूर्ण रचना है ..

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  23. बहुत ही बेहतरीन ,सार्थक लेखन....

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  24. कुछ सवालों के जवाब शायद सवालों में ही मिलते हैं ... उम्दा रचना .. !!

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  25. भैस बराबर अक्षर

    फिर भी है वह ज्ञाता

    रिश्तों के देहरी पर

    अनुबंधों का तांता

    सुन्दर अभिव्यक्ति

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