कभी यूँ ही हवाओं के संग भाग कर देखना
उनींदी आखों में सारी रात जाग कर देखना
.
अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
इनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना
.
ख़ौफ़जदा हैं; डरे-डरे से पड़े हैं अधमरे से जो
उनके हिस्से भी सूरज की आग कर देखना
.
हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
.
जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को
जरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना
सच कहती हुई....हर एक पंक्ति ...।
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक चित्रण."आँकड़े प्रायोजित हैं ...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना..आभार
ReplyDeleteयही त्याग हमें आगे ले जाता है।
ReplyDeleteहकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
ReplyDeleteनए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
khubsurat aur sach ko bayan karati panktiyan !
abhaar!
प्रभावशाली ग़ज़ल.. वाकई आंकड़े प्रायोजित हैं..
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रेरणादायक!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल। बधाई आपको।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआंकड़े कुछ कहते हैं और सच्चाई कुछ और होती है ...बहुत अच्छी गज़ल
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ReplyDeleteहकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
ReplyDeleteनए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
.
जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को
जरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना
बेहतरीन वर्मा जी ।
Aapkee rachanayen padhne me ek alaghee aanand aata hai!Mai use shabdon me bayaan nahee kar saktee!
ReplyDelete‘नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना’
ReplyDeleteइस पर शैल चतुर्वेदी का बहुगुणा पर व्यंग्य की गई पंक्तियां याद आई
गुणा करते करते भाग हो गए
इंदिरा के चक्कर में कुर्ते पर दाग हो गए:)
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
उम्दा ग़ज़ल ....हर शेर बेहतरीन
ReplyDeleteकभी यूँ ही हवाओं के संग भाग कर देखना
ReplyDeleteउनींदी आखों में सारी रात जाग कर देखना
.
अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
इनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना
bahut hi sundar.
हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
ReplyDeleteनए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
अर्थपूर्ण पंक्तियाँ....सुन्दर.
हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
ReplyDeleteनए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
bahut hi umda sher hain saare!
बहुत खूब भाई जी ! शुभकामनायें !!
ReplyDeleteजबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को
ReplyDeleteजरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना
सारा यथार्थ छुपा है इन पंक्तियों में ।
बेहतरीन ।
हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
ReplyDeleteनए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना...
कमाल है...
हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
ReplyDeleteनए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना !
बहुत सुन्दर ! हर पंक्ति हृदय पर गहरी छाप छोडती है ! यथार्थ से रू-ब-रू कराती संवेदनशील रचना ! बधाई एवं आभार !
Andheron ke naam ek charag kar dena! Kitne khoobsoorat bhaav hain!
ReplyDeleteहर लफ्ज लाजवाब .....
ReplyDeleteजबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को
ReplyDeleteजरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना
यथार्थ की बेहतरीन अभिव्यक्ति।
बधाई, इस सुंदर ग़ज़ल के लिए।
kya baat hai! :)
ReplyDeleteअन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
ReplyDeleteइनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
ReplyDeleteनए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना ...
Saarthak rachna ... samaaj ka hoobhoo chitran ...
अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
ReplyDeleteइनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना
क्या बात है ... दिल को छुं गई ये बात !
अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
ReplyDeleteइनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना..
बहुत खूबसूरत और प्रेरक गज़ल..आज के हालात पर सटीक टिप्पणी...
जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को
ReplyDeleteजरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना
यह विशेष रूप से दिल को छू गयी....
सदैव की भांति मन को छूती गंभीर अतिसुन्दर रचना...
आभार..
Ek-ek lafj vehad prabhavi...umda gajal....
ReplyDeleteटिकेंगे भी भला कैसे हल्फिया बयान
ReplyDeleteवे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं
सटीक जी,बहुत अच्छी ओर सच्ची बात कह दी आप ने अपनी गजल मे, धन्यवाद
bahut khoob likha hai ..jabardast..
ReplyDeleteटिकेंगे भी भला कैसे हल्फिया बयान
ReplyDeleteवे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं
waah waah kitni sahi baat
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