हर लहू का रंग तो लाल होता है
फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है
.
कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है
पहलू में इनके कोतवाल होता है
.
किसी के लिये मातम का दिन है
किसी के लिये कार्निवाल होता है
.
इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
मज़हब पर बीच में दीवाल होता है
.
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है
हर लहू का रंग तो लाल होता है
ReplyDeleteफिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है .
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...जानते हुए भी लोंग इस बात को नहीं स्वीकारते ..
पूरी गज़ल बहुत अच्छी
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है
गहरे अर्थों को अभिव्यक्त करता सुंदर शेर।
प्रभावशाली ग़ज़ल के लिए बधाई, एम,वर्मा जी।
बहुत सुन्दर गज़ल
ReplyDeleteवाह ....
किसी के लिये मातम का दिन है
ReplyDeleteकिसी के लिये कार्निवाल होता है
यही दुनिया की रीत है ।
भावपूर्ण रचना ।
इंसान की हालत भी आज शरद पवार,सोनिया गाँधी,मनमोहन सिंह तथा प्रतिभा पाटिल जैसों ने एक परिंदे की तरह बना दिया है जिससे इंसानों को जिन्दगी की हर सुबह एक जाल और फंदे को काटने में बितानी पर रही है.....
ReplyDeleteइंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
ReplyDeleteमज़हब पर बीच में दीवाल होता है
सुन्दर गज़ल
बहुत प्रभावशाली गज़ल.
ReplyDelete‘हर लहू का रंग तो लाल होता है’
ReplyDeleteफिर बहने पर इतना क्यूं बवाल होता है????
कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है
ReplyDeleteपहलू में इनके कोतवाल होता है
बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई,
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है
--
बहुत ही प्यारे शेर हैं!
kya khoob keha..
ReplyDeletebhut khub nye andaaz men hqiqt byan kr di he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteवाह! सरल और प्रभावी बात, सुन्दर लफ़्ज़ों में!
ReplyDeleteइंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
ReplyDeleteमज़हब पर बीच में दीवाल होता है
.
Bahut khoob verma sahaab, hakeekat bayaan kartee rachnaa
कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है
ReplyDeleteपहलू में इनके कोतवाल होता है
वर्मा जी गज़ब का शेर है। पूरी गज़ल ही बहुत अच्छी लगी। बधाई।
.
ReplyDeleteकिसी के लिये मातम का दिन है
किसी के लिये कार्निवाल होता है...
उम्दा, सार्थक ग़ज़ल !
.
मासूम परिंदे नहीं जानते हर दाने के पीछे जाल होता है ...
ReplyDeleteकातिलों ने नया दस्तूर निकाला है , पहलू में इनके कोतवाल होता है ...
सटीक ... हकीकत को बयान कर दिया !
किसी के लिये मातम का दिन है
ReplyDeleteकिसी के लिये कार्निवाल होता है
वाह बहुत खूब ...बहुत बढिया लिखा है आपने
किसी के लिये मातम का दिन है
ReplyDeleteकिसी के लिये कार्निवाल होता है
बेहतरीन.....बहुत अच्छी गज़ल बधाई....
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है... satya ko ukerti gahan rachna
सटीक और उम्दा गजल,बधाई ।
ReplyDeleteआदरणीय वर्मा जी।
ReplyDeleteनमस्कार !
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
...प्रभावशाली ग़ज़ल के लिए बधाई
हर दाने के नीचे एक जाल भी होता है.----- कितनी गहरी बातें कह गए आप इस पोस्ट में.
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं,
हर दाने के नीचे एक जाल होता है।
गहन प्रभावशाली ग़ज़ल!! बधाई,
आभार!!
इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
ReplyDeleteमज़हब पर बीच में दीवाल होता है
... behad prasanshaneey abhivyakti !!!
गज़ल का हर शेर लाजवाब ………………बेहतरीन, दिल मे उतरता हुआ।
ReplyDeleteवाह ,जोरदार
ReplyDeleteहर लहू का रंग तो लाल होता है
ReplyDeleteफिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है
.
कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है
पहलू में इनके कोतवाल होता है
.
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है
त खूब ... पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी ... पर ये तीन शेर कमाल के लिखे हैं ... आभार
कार्निवाल का उत्सव के अर्थ मे प्रयोग गज़ल मे पहली बार देखा ।
ReplyDeletekshama has left a new comment on your post " हर दाने के नीचे एक जाल होता है ~~
ReplyDeleteमासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है
Pooree rachana nihayat khoobsoorat hai,lekin ye aakharee do panktiyan to gazab hain!
@मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है
वर्मा जी, कमाल का लेखन है......
पता नहीं क्यों जब भी किसी 'दाने' को देखते हैं तो पहले जाल का ध्यान आता है.
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है
एक से बढ़कर एक अश`आर... बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल... बेहद खूबसूरत!
प्रेमरस.कॉम
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है
वाह वर्मा जी क्या बढ़िया बात कह दी आपने ..
बहुत सुन्दर रचना !
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है
गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
हर लहू का रंग तो लाल होता है
ReplyDeleteफिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है..
गहन अनुभूति और भावों से पूर्ण अभिव्यक्ति..काश सभी लोग इस सच्चाई को पहचानते..
इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
ReplyDeleteमज़हब पर बीच में दीवाल होता है
har sher ek se ek khoobsurat... badhai!
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है....
बेहतर ग़ज़ल...
हर दाने के नीचे जाल होता है, बहुत खूब व्यक्त किया है समाज का सत्य।
ReplyDeleteमासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं है
ReplyDeleteहर दाने के नीचे एक जाल होता है ! जी बिलकुल मासूम और खूबसूरत चीजों को हम खोते जा रहें है !हर गजल कुछ खास बात कह रही है ! आभार !
हर एक शेर लाजवाब, हर एक बात खरी.
ReplyDeleteकमाल का असर छोड़ने वाली रचना ...शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteबहुत सुंदर मार्मिक और सटीक भी ।
ReplyDeleteमासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है
और
इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
मज़हब पर बीच में दीवाल होता है
पहलू में कोतवाल वाला भी बहुत बढिया है । लगता है सारे ही शेर चुनने होंगे । बढिया गज़ल ।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब लगा! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeletebahut sundar...............
ReplyDeleteग़ज़ल के हर शेर खूबसूरत बन पड़े हैं !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
हर लहू का रंग तो लाल होता है
ReplyDeleteफिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है .
बहुत सुन्दर गज़ल
.
ReplyDeleteसंग कोई उम्र भर नहीं चलता है
खुद को तुम खुद के संग लिखो ...
वर्मा जी ,
हर पंक्ति लाजवाब है। जिंदगी का फलसफा समझती हुई बेहतरीन रचना ।
.
लाजवाब है बादलों के नाम पतंग.
ReplyDeletebhut khoob....
ReplyDeletebohot bohot hi shaandaar ghazal likhi hai sir....bilkul inqlaab si....pleasure reading u
ReplyDelete"हर दाने के नीचे एक जाल होता है"
ReplyDeleteyah to ek nayaa muhaavaraa hi de diya aapne. Gahraayi se vishleshan karne par waqayi aisa lagta hai.
बहुत सुन्दर
ReplyDelete