Thursday, November 18, 2010

यह मकान जो भरभराकर ढह गया ~~



यह मकान

जो भरभराकर ढह गया

पलांश में ही न जाने

कितनी दास्तान कह गया

उस कोने में दबी हैं

कुछ आहें; कुछ कराहें

दिख रही होंगी आपको भी

लहुलुहान बाहें

तिनके-तिनके बिखरे

कुछ घोसले;

मलबे के नीचे हैं

पस्त हौसले

सरकारी आँकड़ें भी त्रस्त हैं

’कैजुअल्टी’ कम दर्शाने में व्यस्त हैं

देखना अब बहाई जायेगी

संवेदनाओं की नदी

जिन्दगी के एवज़ में

मुआवजों का ऐलान होगा

न्यायिक जाँच के कुछ कछुए

कछुए की चाल से चलेंगे

परिणाम तक पहुँचने में जिन्हें

लग जायेगी सदी

फिर खड़े कर दिये जायेंगे

दिग्भ्रमित सवाल कि

यह मकान ढहा कैसे?

पर शायद यह सवाल

पूछा ही नहीं जायेगा कि

बिना नींव को परखे

यह मकान बना ही कैसे?

44 comments:

  1. sahi kaha aapne
    vo makan daha kese??
    khubsurat rachna

    ReplyDelete
  2. मकान भरभराकर दह गया.....



    आपने भी काफी कुछ कह दिया..
    स्पीकर खराब हैं ... आवाज़ फिर कभी सुनेगे.

    ReplyDelete
  3. नींव पर ध्यान जाता ही नहीं किसी को।

    ReplyDelete
  4. अच्छी और सशक्त रचना है
    और मजबूत है आपकी सोच

    ReplyDelete
  5. ... dardnaak haadsaa .... prabhaavashaalee rachanaa !!!

    ReplyDelete
  6. पर शायद यह सवाल

    पूछा ही नहीं जायेगा कि

    बिना नींव को परखे

    यह मकान बना ही कैसे?

    ये सवाल बहुत महत्वपूर्ण है ... बहुत दुखद घटना ... उससे भी दुखद सियासी रवैया ...

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  8. पूरी-की-पूरी सम्बंधित-व्यवस्था पर जबरदस्त प्रश्न-चिन्ह |'नींव कौन देखे? नींव तक पहुँचने से पहले ही कुछ सिक्के कुत्ते-को-हड्डी की तरह पड़े मिल जाते हैं ,और सारे-के-सारे मानवीय-भाव,यहाँ तक कि फर्ज भी गलकर निजी-स्वार्थ बन जाते हैं |'
    समसामयिक-विषय पर एक अच्छी रचना | बधाई हो | धन्यवाद |

    ReplyDelete
  9. अपराधी को बख्शा नहीं जाएगा :)

    ReplyDelete
  10. सामयिक सशक्त रचना.. आभार

    ReplyDelete
  11. बिना नींव को परखे यह मकान बना ही कैसे?
    बस यही प्रश्न बना रहेगा? किसी ने नही पूछना।
    शाश्वत प्रश्न्।

    ReplyDelete
  12. कछुए जैसी चाल ..व्यवस्था पर सटीक व्यंग है ...और कोई भी जांच सही रूप में नहीं होती ...
    बिना नींव को परखे यह मकान बना कैसे ....यह जानने का प्रयास करें तभी तो सच्ची जांच हो पायेगी ...बहुत अच्छी कविता ..

    ReplyDelete
  13. झकझोरती,अति मार्मिक रचना...

    बहुत बहुत सही कहा आपने..

    ReplyDelete
  14. वर्मा साहब, आपका सवाल सवाल ही रह जाएगा !

    जिस तरह रातों रात यहाँ लोग बड़े(अमीर) होते है !

    ठीक वैसे ही यहाँ बिना नीव के मकान खड़े होते है !!

    ReplyDelete
  15. ज़बरदस्त अभिव्यक्ति! मैंने तो खुद अपनी आँखों से इस जगह को देखकर और अनाथ हुए मासूमों के आंसुओं की रों में बह कर महसूस किया कि क्या होता है अपनों का जाना और छत का उजाड़ना. बेहद दुखद घटना!

    प्रेमरस.कॉम

    ReplyDelete
  16. बहुत जबरदस्त और मार्मिक

    ReplyDelete
  17. यही तो दुःख है कि जिस दुर्घटना को रोका जा सकता है ... वो हो जाने के बाद हम पछताते हैं ...
    बहुत सुन्दर कविता ... पर क्या करें हम भारतीय हैं ... जब तक चिड़िया खेत न चुग जाये हमें होश ही नहीं आती है ..

    ReplyDelete
  18. अभी तो सिर्फ मकान ही ढहा है देश के ढहने की पूरी तय्यारी है.देश की नीव खोखली कर नेताओं ने अपनी नीवं मजबूत बना ली है

    ReplyDelete
  19. कल कोई नया मुद्दा उठेगा और ये मकान का मुद्दा भी ढह जायेगा...ना सवाल होंगे ना नीव होगी ना खबर बाकी रहेगी.

    सुंदर सटीक वर्णन.

    ReplyDelete
  20. BAHUT HI MAARMIK .. AAPNE UN LOGON KE BAARE MEIN LIKHA HAI JINKO KOI POOCHTA BHI NAHI ... JINDA HI DAFAN HO JAATE HAIN JO KUCH FAAIILON MEIN SARKAAR KI ...

    ReplyDelete
  21. ऐसे ही मकान भरभरा कर ढहते रहेंगे और ठेकेदार अपनी जेबें भरते रहेंगे । बहुत सामयिक और सटीक । नींव पर ध्यान दें तो .............!!!!

    ReplyDelete
  22. एक सही प्रश्न ..जवाब ..शायद नहीं ...आज के दौर में क्या कहें व्यवस्था को ..ऐसे ही मकान ढ़हते रहेंगे और आम आदमी परेशान होते रहेंगे ..फिर भी मेरे देश की व्यवस्था ???????
    ..शुक्रिया

    ReplyDelete
  23. तिनके-तिनके बिखरे

    कुछ घोसले;

    मलबे के नीचे हैं

    पस्त हौसले

    सरकारी आँकड़ें भी त्रस्त हैं

    tinko ko uthane se pare hain
    kuch bhi kah jane ko baadhya hain

    ReplyDelete
  24. वाकई एक जज्बाती कविता...यदि नींव मजबूत ना हो तो मकान ढह जाता है उसकी ज़्यादा उम्र नही होती....यदि मकान की उम्र अधिक चाहिए तो नींव पर ध्यान देना चाहिए...बेहद भावपूर्ण कविता....प्रस्तुति के लिए धन्यवाद वर्मा जी नमस्कार

    ReplyDelete
  25. त्रासदी चित्रण ! हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  26. Sawaal tab poochha jata jab casualties me koi naami chehra hota.. ab toote makano ko tavajjo de ya Ambani se unchi imaarat ko..aap bhi kamaal karte hain.. ye news salable hi nahi h fir kaise is ko importance milegi ...

    ReplyDelete
  27. आवास की समस्या लोगों को जरजर मकानो में रहने के लिए बाध्य करती है..

    ReplyDelete
  28. आवास की समस्या लोगों को जरजर मकानो में रहने के लिए बाध्य करती है..

    ReplyDelete
  29. उस कोने में दबी हैं

    कुछ आहें; कुछ कराहें....


    वर्मा जी आपकी कवितायेँ हमेशा ही मुझे प्रभावित करती रही हैं ....

    कितनी सच्चाई से आपने उन मजदूर आहों को सुना और पेश किया है ...

    न जाने कितनी आहें इन कमज़ोर नीवों में दब जाती हैं ...और कोई सुनने वाला नहीं ....


    अभी आवाज़ नहीं सुन पाई हूँ ....

    फिर आती हूँ ....


    आज आपकी स्लाइड में तसवीरें भी देखीं ....

    ReplyDelete
  30. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 23 -11-2010
    को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  31. बहुत बेबाक और सशक्त रचना ! निश्चित रूप से गर ऐसे मकान ना बनें तो ऐसे दुखद हादसे बी ना हों लेकिन निजी स्वार्थों के चलते किसी दूसरे इंसान की जान की परवाह ही किसे है ! बहुत सुन्दर पोस्ट !

    ReplyDelete
  32. वर्मा जी आज सुबह टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में एक बच्चे का फोटो देखा जिसने अपने माँ-पिता दोनों को खो दिया और उसकी आँखों को देख मेरी आंखे रोने से अपने आप को रोक ना पाई कि कल जो हस्ती-खेलती दुलार की जिन्दगी थी वो अनाथ हो गयी!
    आपकी कविता सारे भाव अभिव्यक्त कर दिए !

    ReplyDelete
  33. अज के सच पर अच्छी रचना। बधाई आपको।

    ReplyDelete
  34. पर शायद यह सवाल

    पूछा ही नहीं जायेगा कि

    बिना नींव को परखे

    यह मकान बना ही कैसे? बहुत सुन्दर रचना .. और बखूबी लिखा है.. एएक हकीकत और एक दर्द ..वो घर जो टूट गए वो लोग जो बिछुड गए.. जो बेसहारा हो गए .. जो मलबे के निचे मौत को देखते रहे कराहते रहे.. और मर गए.. कोई भी उस दर्द को कम नहीं कर सकता ..हां पर ये घटना दुबारा ना हो..इसका ख्याल रखा जाये... पर सरकारी तंत्र .. सब सच को छुपाने में जूटे है.. आपकी रचना सामायिक है..और सही सवालो को खड़ा करती है.. शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  35. वाह! शानदार रचना! आपकी लेखनी को सलाम!

    ReplyDelete
  36. बहुत ही खूबसूरती से व्‍यक्‍त अनुपम अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  37. sachchee likhkar de di,achcha kiya,man ko halka kar liya.

    ReplyDelete
  38. bahut marmik kavita... bahut dukhad khabar hai aur bahut sateek sawal..

    ReplyDelete
  39. bahoot hi gahre sawal... jinke jabab shayad na mile.

    ReplyDelete
  40. मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं

    हर दाने के नीचे एक जाल होता है
    Pooree rachana nihayat khoobsoorat hai,lekin ye aakharee do panktiyan to gazab hain!

    ReplyDelete
  41. वाह वर्मा जी बहुत ही सुंदर रचना है ये तो आपकी.

    ReplyDelete