Monday, November 1, 2010

अगला निशाना ~~


वंश के वंश

खड़े किये गये

दंश के कगार पर

या फिर सप्रयास

मजबूर किये गये

चलने को अंगार पर

खंजर बेचैन है

संहार करने को

निर्देशित है वह

छुपकर प्रहार करने को

गली के नुक्कड़ पर

खड़ा है दु:शासन

झूठा समर

किस्तों में आश्वासन

अपने अपनों का

मुँह मोड़ना

अभिलाषाओं का

दम तोड़ना

अर्थहीन दिलासा के शब्द

कर गये नि:शब्द.

.

अगला निशाना

बेरोजगार पर

वंश के वंश

खड़े किये गये

दंश के कगार पर

45 comments:

  1. ज़िन्दगी को नये अर्थ देती रचना।

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  2. गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।

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  3. अब तो वंश के वंश खडे किये जा रहे है जनता के दंश के लिए :(

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  4. बहुत सुन्दर रचना

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  5. व्यवस्था पर तीखा कटाक्ष करती प्रभावशाली रचना।

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  6. अच्छा व्यंग्य। बस यही कहना है कि नरम शब्दों से सख्त दिलों को जीता जा सकता है।

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  7. Uf! Kitna dard hota hai,aisee sachhayi padhke! Nihayat achhee rachana hai!

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  8. एक समसामयिक रचना …किस तरह से नवयुवकों को जो बेरोजगार हैं उनको मजबूर कर दिया जाता है गलत कामो को करने के लिए …और इस तरह एक नया वंश बनाया जा रहा है .सोचने पर मजबूर करती आपकी रचना ...अच्छी प्रस्तुति

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  9. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

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  10. सत्य का छुरा उतार दिया परिस्थितियों पर।

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  11. आपकी रचनाओं में ज्वलंत समस्याओं पर जो सटीक व तीखा प्रहार होता है...हमेशा ही दिल छू लेता है !!

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  12. विचारणीय ..गहरा व्यंग करती रचना.

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  13. नुक्कड़ पर खड़ा है दु:शासन
    झूठा समर
    किस्तों में आश्वासन

    यथार्थ के करीब रचना ..

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  14. खंजर बेचैन है

    संहार करने को

    निर्देशित है वह

    छुपकर प्रहार करने को
    vismit hun is vyakhyaa per .... soch kitne saare drishtikon deti hai

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  15. खरी खरी कविता ।

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  16. वंश के वंश खड़े हैं मानवता के दंश को ... हो सके तो बचा लो इसके अंश को ...

    ज़बरदस्त रचना वर्मा जी

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  17. आज के हालात पर बेहतरीन कटाक्ष्……………अति सुन्दर्।

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  18. वंश के वंश
    खड़े किये गये
    दंश के कगार पर
    या फिर सप्रयास मजबूर किये गये
    चलने को अंगार पर

    इस व्यवस्था पर करारी चोट करती है आपकी रचना ... कितना बेबस हो जाता है इंसान कभी कभी .... बहुत ही प्रभावी रचना ...

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  19. निर्मला कपिला has left a new comment on your post "अगला निशाना ~~":

    वंश के वंश

    खड़े किये गये

    दंश के कगार पर
    सटीक अभिव्यक्ति।
    आपकी आवाज मे गज़ल सुनी मन आनन्द से भर गया। बहुत सुन्दर पोस्ट। धन्यवाद।

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  20. वंश के वंश
    खड़े किये गये
    दंश के कगार पर
    या फिर सप्रयास मजबूर किये गये
    चलने को अंगार पर .....!!

    गहरे भावों के साथ सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  21. बहुत ही सुन्दर और विचारोत्तेजक रचना ... खंजर हमेशा छुपकर ही चलाया जाता रहा है ...

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  22. बाऊ जी,
    नमस्ते!
    बहुत ज़्यादा समझ में नहीं आयी!
    दरअसल मैं अभी छोटी क्लास में हूँ!
    आशीष
    ---
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  23. गली के नुक्कड़ पर

    खड़ा है दु:शासन

    झूठा समर

    किस्तों में आश्वासन....

    आज की व्यवस्था पर बहुत सटीक व्यंग्य...आभार

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  24. अपने परिवेश में मौजूद विसंगतियों पर एक तीखी और करारी चोट करती एक सार्थक और सशक्त रचना, जिसे आपने बेहद संवेदनशील और मर्मस्पर्शी ढंग से उकेरा है. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  25. बहुत सुन्दर रचना है!
    --

    ज्योति-पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  26. बेहतर...

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  27. bahut hee sundar rachna...
    deepawalee hardik shubh kamnayen

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  28. दीपावली की असीम-अनन्त शुभकामनायें.

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  29. पौराणिक प्रतीकों से यह रचना और भी अर्थगर्भित हो गयी है... नये प्रतीक और बिम्ब तो हैं ही।

    बधाई स्वीकरें...हुज़ूर!

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  30. यथार्थ के करीब रचना ..अच्छी प्रस्तुति.

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  31. आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  32. खंजर बेचैन है
    संहार करने को
    निर्देशित है वह
    छुपकर प्रहार करने को
    ......बहुत अच्छी सार्थक रचना ..आभार
    दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  33. आज के हालात पर बेहतरीन कटाक्ष्……………अति सुन्दर्।

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  34. आपको जन्मदिन की बधाईयाँ ....!!

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  35. जन्म दिन की बधाई देने आया था...अच्छी कविता पढ़ने को मिली। कविता व्यवस्था पर चोट करती है।
    ..जन्म दिन की बधाई स्वीकार करें।

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  36. सुन्दर रचना। आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।

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  37. मार्मिक कविता है भाई.

    कुँवर कुसुमेश
    ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com

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  38. मर्मस्पर्शी रचना दिल को कही गहरे में छू गई ! सटीक व्यंग्य ! आभार !

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  39. najaane kitne log isi tarah ki paristhiti sachmuch na jane kaise jee lete hain ... rom rom ko udvelit karti ek uttam rachna ....

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  40. jindgi ki sachhayi bayan kar di hai aapne to

    der se aane ko mafi chahti hu

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  41. .

    सटीक व्यंग ! आखिर जिन्दा कैसे था अब तक ?

    .

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