पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा;
खीचनी ही होगी
गाँडीव की प्रत्यंचा,
लक्ष्य-भेद से कतराकर;
आत्ममुग्धता की स्थिति में आकर
तुम नहीं आगे बढ पाओगे,
तुम जिस महायुद्ध से
विरत होना चाहते हो;
वह तो इकतरफा ही सही
कब का प्रारम्भ हो चुका है,
जिन्हें तुम अपना मानकर
लड़ने से इंकार कर रहे हो,
देखो तुम यहाँ से
जहाँ मैं खड़ा हूँ
मैं देख पा रहा हूँ
वे तुम्हारे हक को मारकर;
मासूमों का गला घोट;
निर्दोषों को मौत के घाट उतारकर
अट्टहास कर रहे हैं,
देखो तुम भी तो देखो
वे तुम्हारे उगाये अनाजों को
इसलिये सड़ा रहे हैं
ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
और फिर किसकदर
तुम्हारे हक पर
नजरे गड़ा रहे हैं.
क्या तुम उनके मंसूबों को
रत्ती भर भांप नही पा रहे हो
मुझे पता है
तुम गिरफ्त में हो
उनके लुभावने नारों के
शायद तुम्हें पता नहीं
उनका अगला प्रहार
तुम्हारे श्वासों पर होगा.
इससे पहले कि तुम फिर खो दो
खुद को और अपने अभिमन्यु को,
खीचनी ही होगी
गाँडीव की प्रत्यंचा
पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.
यकीनन,
पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा
पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से व्यवस्था पर तीखा प्रहार...सशक्त रचना।
ReplyDeleteकवि का अचुक प्रहार!!
ReplyDeleteअति-सुंदर
वे तुम्हारे उगाये अनाजों को
ReplyDeleteइसलिये सड़ा रहे हैं
ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
और फिर किसकदर
तुम्हारे हक पर
नजरे गड़ा रहे हैं.
शानदार चोट !
पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा. यकीनन,पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सशक्त रचना भाव .... आभार
Kitna sundar likha hai aapne!Jab,jab,jahan,jahan 'Paarth' nahee lada,sanhaar hee sanhaar hua!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDelete--
आज का पार्थ लड़ तो रहा है!
आतंक मचा रखा है इसने तो!
सही कहा । परिस्थितियों से भागने की बजाय उनका डटकर सामना करने से ही हल निकलता है ।
ReplyDeleteवर्मा साहब आप जैसे शिक्षक इस लड़ाई के जज्बों को बच्चों के अन्दर डाल सकतें हैं ..जिससे इस लड़ाई की धार तेज हो सकती है...
ReplyDeleteपार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.
ReplyDeleteयकीनन,
पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा
उत्साह बढाती सुन्दर रचना !
... भावपूर्ण रचना, बधाई !!!
ReplyDeleteरोमांचित कर देने वाली सशक्त कविता |
ReplyDeleteआज ऐसे ही जागृति पैदा करने वाले सशक्त रचना की जरूरत है।
ReplyDeletebahut sundar bimbon saji achchhi rachna...jamakhoron par achchha kataksh..
ReplyDeleteसमय की जरूरत है ,पार्थ को लड़ना ही होगा ।
ReplyDelete3.5/10
ReplyDeleteकाम चलाऊ पोस्ट
रचना में ऊर्जा उत्पन्न करने की अतिरिक्त कोशिश. कविता में चेतना कम शोर और उन्माद ज्यादा है
अति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद
ReplyDeleteसुंदर शब्द चयन और सशक्त अभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआशा
खीचनी ही होगी
ReplyDeleteगाँडीव की प्रत्यंचा
पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.
यकीनन,
पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा...
सशक्त रचना।
.
bahut achhi rachna .... vartamaan samay ke anukul... jaagruk karti hai aapki rachna
ReplyDeleteजब तक पार्थ नहीं लड़ेगा, व्यवस्था का दुर्योधन नहीं मरेगा।
ReplyDeletebahut prabhavshali rachna
ReplyDeletebahut achhi rachna
निर्दोषों को मौत के घाट उतारकर
ReplyDeleteअट्टहास कर रहे हैं,
देखो तुम भी तो देखो
वे तुम्हारे उगाये अनाजों को
इसलिये सड़ा रहे हैं
ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
करारा कटाक्ष ....बहुत ही सशक्त प्रस्तुति
यहाँ पधारें
अनुष्का
मिथकों का सुन्दर प्रयोग
ReplyDeleteपार्थ तुम्हे लड़ना ही होगा ...
ReplyDeleteकब तक रुकना होगा ...
आखिर तो संग्राम में उतरना ही होगा ...
सार्थक सन्देश ...!
विल्कुल सच है कि आज आम-आदमी की जिंदगी इतनी कठिन हो गयी है कि द्वापर में एक अभिमंयूं ने एक बार चक्रव्यूह के साथ संघर्ष किया था लेकिन आज आम-आदमी हर पल चक्रव्यूह के साथ संघर्ष-रत है | चूंकि कृष्ण की उस युद्ध में अहम् भूमिका रही थी ;कृष्ण आज भी उससे कहीं ज्यादा प्रशंगिक हैं | आज कृष्ण की भूमिका कवि,लेखक या रचनाकार निभा सकता है | जहाँ प्रिंट और इलेक्टोनिक मिडिया ने या तो पैसे के आगे घुटने टेक दिए हैं या सम्बंधित अधिकारी की कैंची के सामने लाचार है ,वहीँ हम इस खोफ से अभी तक
ReplyDeleteअछूते हैं | हम ब्लॉगर चाहें तो बहुत-कुछ कर सकते हैं |
वर्मा जी की रचनाओं का कायल रहा | कथाओं के किरदारों के माध्यम से एक और अति- सुन्दर प्रस्तुति |
धन्यवाद |
आज के हालात पर तीखा प्रहार करती एक सशक्त रचना।
ReplyDeleteआज के माहौल पर सशक्त प्रहार बहुत अच्छा लगा
ReplyDeletebehatreen rachna, main to mugdh ho gaya hun.
ReplyDeletevir ras se ot-prot is utkrist aur sarthak rachna ke liye badhai.
ReplyDeletesundar zazbaat!
ReplyDeleteव्यवस्था पर कटाक्ष और परिवर्तन का आह्वान के स्वर बहुत ही ओज भरे हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletesahi hai... apni apni jagah se hum nirnay lete hai, per ishwar ki jagah nirdharit kerti hai
ReplyDeleteलगता है आज का पार्थ भी कौरवों से मिल गया है और सी ड्ब्लू जी में खेल रहा है :)
ReplyDeleteतुम गिरफ्त में हो
ReplyDeleteउनके लुभावने नारों के
शायद तुम्हें पता नहीं
उनका अगला प्रहार
तुम्हारे श्वासों पर होगा.....
बहुत ही सुन्दर और प्रेरक रचना...
वे तुम्हारे उगाये अनाजों को
ReplyDeleteइसलिये सड़ा रहे हैं
ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
और फिर किसकदर
तुम्हारे हक पर
नजरे गड़ा रहे हैं.
बहुत सुंदर शब्दों से नवाज़ा है कविता को. हमेशा की तरह सशक्त लेकन.
पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.
ReplyDeleteयकीनन,
पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
समसामयिक सार्थक अतिसुन्दर रचना जो झकझोरती है,प्राणों में उर्जा भर प्रतिकार को प्रेरित करती है..
ReplyDeleteसाधुवाद !!!
बहुत सुन्दर कविता...प्रहार भी...सन्देश भी.
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteबहुत ही ओजस्वी और उदबोधात्मक कविता ! करना ही होगा !मुक्तिबोध की शैली है ...शंखनाद करती हुई ! आभार !
ReplyDeleteतुम गिरफ्त में हो
ReplyDeleteउनके लुभावने नारों के
शायद तुम्हें पता नहीं
उनका अगला प्रहार
तुम्हारे श्वासों पर होगा.
इससे पहले कि तुम फिर खो दो
खुद को और अपने अभिमन्यु को,
बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश देती कविता है। बधाई।
वर्मा जी ,
ReplyDeleteपार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा; खीचनी ही होगी गाँडीव की प्रत्यंचा, लक्ष्य-भेद से कतराकर; आत्ममुग्धता की स्थिति में आकर तुम नहीं आगे बढ पाओगे.....
हर बार की तरह एक बेहतरीन रचना .....
बहुत ख़ूबसूरती से आज के द्वन्द को उभारा है , काश हम अर्जुन ही बन सकते ..
ReplyDeleteवे तुम्हारे उगाये अनाजों को
ReplyDeleteइसलिये सड़ा रहे हैं
ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
और फिर किसकदर
तुम्हारे हक पर
नजरे गड़ा रहे हैं.
samyik vishay par bahut hee hsandar rachna....badhai
आपकी रचना इस बात को सार्थक करती है की हर युग में महाभारत रचा जाता है किसी न किसी रूप में .... बहुत ही सार्थक रचना है वर्मा जी ....
ReplyDelete, देखो तुम भी तो देखो वे तुम्हारे उगाये अनाजों को इसलिये सड़ा रहे हैं ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
ReplyDeleteसही कहा आप् ने, ओर आज हम सब को जागरुक होने की जरुरत हे, ताकि यह शेतान फ़िर से ना आ जाये रुप बद्ल कर हमारे ही पेट पर लाट मारने के लिये
wah. itni achchi kavita padhkaer bara achcha laga.
ReplyDeleteअति उत्तम
ReplyDeleteमिसफ़िट:सीधी बात
वंश के वंश
ReplyDeleteखड़े किये गये
दंश के कगार पर
सटीक अभिव्यक्ति।
आपकी आवाज मे गज़ल सुनी मन आनन्द से भर गया। बहुत सुन्दर पोस्ट। धन्यवाद।
Great post. Check my website on hindi stories at afsaana
ReplyDelete. Thanks!