Saturday, August 21, 2010

ठूस ठूस कर भरी जा रही है रोशनी ~ ~



ठूस ठूस कर

भरी जा रही है रोशनी

इस शहर में और

कतिपय लोगों के घरों में भी

वाहनों से लेकर

इंसानी वजूद तक को

सतरंगी करने की योजना है

इसके लिये

लोगों के चेहरे के रंग

चुराने के लिये

सरकारी विभाग का

विधिवत गठन हो चुका है

सुनते हैं

वह भी अब बनेगा

जो सदियों से अधबना है

गरीबी, फ़कीरी, भुखमरी

के निशान भी

धोये जा रहे हैं

कही असली तो

कही नकली धरोहर

संजोये जा रहे हैं

शायद आपको पता नहीं है

यहाँ एक

आलीशान होटल बनेगा

आज ही

यहाँ की झुग्गियाँ

इसीलिये ढहा दी गयी है

रूदन, क्रन्दन और चीत्कार के स्वर

दबाने के लिये

विदेशी अट्टहास

आयातित करने के लिये

अलिखित समझौते

कर लिये गये है

मुस्कराहट के मुखौटे

बाजार में उतार दिये गये हैं

लोगों को तालीम दी गयी है

दुहराने के लिये

‘अतिथि देवो भव ...

‘अतिथि देवो भव ...

48 comments:

  1. हम वो हैं , जो हम हैं नहीं ।
    बहुत सही कटाक्ष किया है आपने ।
    लेकिन कौन सुनता है यहाँ । ये तो पत्त्थरों का शहर है , यहाँ किस को हाल सुनाइये ।

    ReplyDelete
  2. ""विदेशी अट्टहास करने बुलाये गए हैं"" खेलों के सिलसिले में आक्रोश व्यक्त करती सामयिक व्यंग्य रचना..... आभार सर

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर और गहराई तक चोट करती सामयिक रचना ....

    ReplyDelete
  4. समय कोई भी हो, कविता उसमें मौज़ूद जीवन स्थितियों से संभव होती है। वही जीवन- स्थितियां, जिनसे हम रोज़ गुज़रते हैं। आपकी रचना इसी के चलते हमें अपनी जैसी लगती है। इसमें निहित यथार्थ जैसे हमारे आसपास के जीवन को दोबारा रचता है।

    ReplyDelete
  5. यथार्थ का दर्शन करवाती रचना........

    ReplyDelete
  6. आज कल के चलते बदलाव पर सटीक व्यंग्य
    अच्छी रचना सुंदर शब्दों में सजी.
    बधाई.

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर कविता जी, धन्यवाद.
    undefined
    undefined को हटाने के लिये आप सेटिंग मै जा अक्र तारीख को दुसरे फ़ार्मेट मै बदले, फ़िर यह हट जायेगा

    ReplyDelete
  8. पत्थर हो चुकी संवेदनाएं जगेंगी क्या?

    ReplyDelete
  9. मुस्कराहट के मुखौटे

    बाजार में उतार दिये गये हैं

    लोगों को तालीम दी गयी है

    दुहराने के लिये

    ‘अतिथि देवो भव ...

    ‘अतिथि देवो भव ...

    --

    वाह... वाह...!
    सोचने को मजवूर करती हुई रचना!
    --
    आपकी लेखनी को प्रणाम!

    ReplyDelete
  10. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  11. वर्मान मनेदशा को हृदय में उतारती धारदार कविता। बहुत ही सुन्दर।

    ReplyDelete
  12. Kshama said :
    kshama
    August 21, 2010 10:21 PM लोगों को तालीम दी गयी है

    दुहराने के लिये

    ‘अतिथि देवो भव ...

    ‘अतिथि देवो भव ...
    Aap bhool rahen hain,ki,yahi to hamari pracheen parampara hai! Chahe isliye ham apne ghar ko gharke bashindon ko qurbaan kyon na kar den...aur haan,ek naveen pratha hai,pahle apne jeb bhar lene hote hain..

    ReplyDelete
  13. सामयिक और विचारोत्तेजक रचना।

    *** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।

    ReplyDelete
  14. लोगों के चेहरे के रंग

    चुराने के लिये

    सरकारी विभाग का

    विधिवत गठन हो चुका है

    बहुत संवेदनशील बात कह दी है ...सच है कि कतिपय लोगों के चेहरे पर तो इन्द्रधनुष के रंग खिलेंगे बाकी सब स्याह हो जायेंगे ...

    समसामयिक रचना

    ReplyDelete
  15. वाह! बहुत सुंदर कविता... आज के परिदृश्य को दिखाती बहुत सुंदर रचना..... परिदृश्य वर्ड लिखने के लिए मुझे आधा घंटा लगा है... डिक्शनरी में खोजते खोजते तब जाकर इतनी देर में मिला है....



    www.lekhnee.blogspot.com

    ReplyDelete
  16. अच्छी कविता लिखी है अपने

    ReplyDelete
  17. आज के हालात का कच्चा चिट्ठा खोल दिया………………बेहतरीन कटाक्ष्।

    ReplyDelete
  18. सामयिक है और व्यवस्था पर कड़ा प्रहार भी

    ReplyDelete
  19. Dilli ke haal par aapne jo likha hai, shaandaar hai.

    lekin ye sirf india me hi ho sakta hai ki atithi ke satkaar ke liye ham apna sab kuchh khatam kar dein.

    badhai.

    ReplyDelete
  20. बहुत लाजवाब वर्मा जी ... बहुत शशक्त ... कुछ लोग हैं जो सच देखना और सोचना भी नही चाहते ... सत्तासीन लोग जो बस अपने आप को जुथ्लान चाहते हैं ....

    ReplyDelete
  21. धारदार सटीक रचना.

    ReplyDelete
  22. मै ब्लोगर महाराज बोल रहा हूँ

    मुझे पता चला है कि मिथिलेश भाई को महफूज भाई के खिलाफ भड़काने वाला कोई और नहीं वहीं नारी विरोधी अरविंद मिश्रा है । मुझे पता चला है कि अरविंद मिश्रा ने महफू भाई और अदा दीदी के खिलाफ ,मिथिलेश के कान भरे हैं । मिथिलेश एक अच्छा लेखक है, इस उम्र में जैसा वह लिखता है हर कोई नहीं लिख सकता , वह ऊर्जावान लेखक है जिसका अरविंद मिश्रा गलत उपयोग कर रहा हैं, आईये इस ढोंगी ब्लोगर का वहिष्कार करें , फिर मिलेंगे चलते-चलते । अभी ये मेरी पहली पोस्ट है, आगे और भी खुलासे होंगे । तब तक के लिए नमस्कार ।

    ReplyDelete
  23. बात बेहतरीन....
    अच्छा कटाक्ष....

    ReplyDelete
  24. रूदन, क्रन्दन और चीत्कार के स्वर

    दबाने के लिये

    विदेशी अट्टहास

    आयातित करने के लिये

    अलिखित समझौते

    कर लिये गये है

    मुस्कराहट के मुखौटे

    बाजार में उतार दिये गये हैं ।

    राष्ट्रकुल खेलों की तैयारी का अच्छा परदाफाश ।

    ReplyDelete
  25. कितना सटीक और सार्थक कहा आपने...ओह !!!
    बहुत बहुत सही...

    ReplyDelete
  26. तीखे कटाक्ष के साथ वेदना के स्वर मुखरित होते है इस रचना में ....आभार !

    ReplyDelete
  27. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
    बहुत ही ख़ूबसूरत और गहरे भाव के साथ लिखी हुई उम्दा रचना !

    ReplyDelete
  28. बहुत सही लिखा है आपने

    ReplyDelete
  29. बहुत सुन्दर..पसंद आई ..बधाई.
    ______________________
    "पाखी की दुनिया' में 'मैंने भी नारियल का फल पेड़ से तोडा ...'

    ReplyDelete
  30. delhi me CWG ke naam pe kya kya ho raha hai ..iska sateeek chitran kiya hia aap ne ....jhakjhortiu hui rachna ..bahut teekha swar...lazawaab

    ReplyDelete
  31. लोगों को तालीम दी गयी है

    दुहराने के लिये

    ‘अतिथि देवो भव ...

    ‘अतिथि देवो भव .
    daral jo to man ki baat kah gaye main bhi unse sahmat hoon .bahut unchi baate hai ye aapki .

    ReplyDelete
  32. मुस्कराहट के मुखौटे

    बाजार में उतार दिये गये हैं
    लोगों को तालीम दी गयी है
    दुहराने के लिये
    अतिथि देवो भव ...
    अतिथि देवो भव ...
    ..Aaj ke haalaton kee bidamvana ko darshati rachna ke liye aabhar

    ReplyDelete
  33. ye teer bas lag jaye sabko..samvedanhin logo mein vedna to jaage..!

    ReplyDelete
  34. shayad koi raam phir aaye is burai ko hataane ,ati uttam .

    ReplyDelete
  35. आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  36. बहुत सुन्दर सामाजिक कटाक्ष ...
    रौशनी इतनी ज्यादा हो गई है कि अब दिया के तले अंधेरे को छुपाने के लिए काफी है ...

    __________________________
    एक ब्लॉग में अच्छी पोस्ट का मतलब क्या होना चाहिए ?

    ReplyDelete
  37. बहुत सुन्दर रचना ....

    ReplyDelete
  38. बहुत ही सुंदर रचना...संवेदनशील और सटीक व्यंग

    ReplyDelete
  39. गरीबी, फ़कीरी, भुखमरी
    के निशान भी
    धोये जा रहे हैं
    कही असली तो
    कही नकली धरोहर
    संजोये जा रहे है

    बेहद अच्छी..सार्थक और सटीक व्यंग
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  40. आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

    ReplyDelete
  41. वर्मा जी आपकी हर एक रचना उम्दा होती है, आपको कुछ कहना सूरज को दिया दिखाना जैसा लग रहा है मुझे अभी. कटाक्ष के माध्यम से आपकी बातों का गूढ़ अर्थ समझते हुए बहुत अच्छा लगता है. धन्यवाद कहना जरूरी समझती हूँ कि आपको ब्लॉग के माध्यम से जाना. छोटी हूँ इसलिए सहृदय प्रणाम भेज रही हूँ. आशा है आप "ढेर सारा" से बस ज़रा सा ज्यादा प्यार और आशीर्वाद भेजियेगा.

    ReplyDelete
  42. या शायद तुमने देखी ही नहीं है
    घटनास्थल पर पहुँचकर
    विवादास्पद और अनसुलझे
    जाँच परिणाम तक पहुँचने की
    हमारी तत्परता...
    बहुत सुन्दर और गहरे भाव के साथ लिखी हुई रचना! सच्चाई को व्यक्त करती हुई इस शानदार रचना के लिए बधाई! सठिक व्यंग्य किया है आपने!

    ReplyDelete
  43. रूदन, क्रन्दन और चीत्कार के स्वर दबाने के लिये विदेशी अट्टहास आयातित करने के लिये
    अलिखित समझौते कर लिये गये है
    बहुत सुन्दर सामयिक रचना...........

    ReplyDelete
  44. समसामयिक रचना

    ReplyDelete
  45. अलिखित समझौते

    कर लिये गये है

    मुस्कराहट के मुखौटे

    बाजार में उतार दिये गये हैं

    लोगों को तालीम दी गयी है

    दुहराने के लिये

    ‘अतिथि देवो भव ...

    ‘अतिथि देवो भव ...
    bahut sahi kaha tatha saath hi rachna ko bahut khoobsurati se buna hai .

    ReplyDelete
  46. बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने
    बधाई

    ReplyDelete
  47. बहुत ही उम्दा..

    ReplyDelete