Tuesday, June 15, 2010

शाम की रोटियों की चिंता ~~

थियेटर हाऊसफुल है
लोग पागल हो रहे हैं
मेरे अभिनय को देखने के लिये
मैनें अपने अभिनय का
लोहा जो मनवा लिया है,
मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ
तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,
मैं रावण को मात देता हूँ
अट्टहास के मामले में,
मैं भावनाओं का प्रवाह कर देता हूँ
संत्रास के मामले में,
मैं जब डायलाग बोलता हूँ तो
सीटियाँ बजने लगती हैं
मेरे प्रणय निवेदन के अंदाज़ से
घंटियाँ बजने लगती हैं.
.
लोगों को क्या पता
मैं ये सब कर रहा हूँ
सिर्फ और सिर्फ
शाम की रोटियों की चिंता से
खुद को महफ़ूज रखने के लिये,
और फिर मेरा संचालन तो
नेपथ्य में बैठे
उस व्यक्ति के द्वारा हो रहा है
जिसकी संतुष्टि के बाद ही
उसकी जेब में ठुसे पड़े
नोटों के बंडल में से
कुछ नोट मेरी मुट्ठी में आयेंगे.


image
चित्रों में : मैं खुद उन दिनों 

49 comments:

दीपक 'मशाल' said...

बड़े अच्छे से अभिव्यक्त किया आपने.. अभिनय के चित्र देख कुछ याद गया.. इप्टा का समय अपना :)

Smart Indian said...

अरे वाह, आप तो अभिनय भी करते हैं.

अजित गुप्ता का कोना said...

बढिया है, अभिनय जारी रखिए, बस खून खराबा मत करिए।

श्यामल सुमन said...

यह अभिनय किसी न किसी रूप में सबको करना पड़ता है रोटी के लिए वर्मा जी। सुन्दर भाव।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब वर्मा जी , एक और चरित्र का पता चला !

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सार्थक कविता, बधाई।

संजय भास्‍कर said...

अच्छी लगी - सुंदर, सटीक और सधी हुई।

डॉ टी एस दराल said...

बहुत खूब वर्मा जी । आप तो अच्छे अभिनेता निकले । अभी नेता भी बन सकते हैं । फिर देखिये खुद संचालक ही आपसे भीख मांगने लगेगा ।

वैसे जँच रहे हैं ज़नाब।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रंगमंच के कलाकार का दर्द , जीवन का सत्य...लिख दिया है.... आपकी कलाकारी के भी दर्शन हुए ...सुन्दर प्रस्तुति

Razia said...

अंतर्द्वन्द दिखाने वाले का अंतर्द्वन्द
शानदार रचना

Unknown said...

कविता के माध्यम से रंगमंच कर्मियों की व्यथा की मार्मिक अभिव्यक्ति वैसे सारा संसार ही रंगमंच है और रोटी के जुगाङ के लिए अभिनय जारी है..आप अभिनेता भी है...आपकी बहुमुखी प्रतिभा को सलाम..अभिनय के साथ लेखन..शुभकामनाएं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति!

बाल भवन जबलपुर said...

कमाल है जी
अदभुत

AMAN said...

बहुत बढिया
अभिनय के रंग भी दिखे

अजय कुमार said...

कलाकार का दर्द ,बयां कर दिया आपने

Sunil Kumar said...

आपकी कलाकारी के भी दर्शन हुए ...सुन्दर प्रस्तुति

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर । कविता व अभिनय ।

Udan Tashtari said...

जबरदस्त!

दिलीप said...

maarmik rachna...chitr bhi college ke din yaad dila gaye...

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut sundar vermaji

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

sumit said...

pahli baar khud ko parosa hai

अविनाश वाचस्पति said...

वाह वर्मा जी वाह
क्‍या मुट्ठी है
पर मुट्ठी में पैसा हो तो
असली मुट्ठी तो तभी होती है
जैसे वर्मा जी ने आज
खोली है अपनी अभिनय की मुट्ठी।

निर्मला कपिला said...

रचना भी कमाल की और अभिन्य भी आभार्

vandana gupta said...

गज़ब के भाव पिरोये है………एक कलाकार के दर्द को बखूबी उकेरा है।

kshama said...

Haan! kise pata hota hai,ki,tasveer ke peechhe kaunsa dard chhupa hai..chand alfaaz aur aapne tasveer kee doosari bazu dikha dee!

Himanshu Pandey said...

रचना सुन्दर है ! चित्र तो गज़ब ही हैं..अभिनय के ! इस कला में भी दक्ष हैं आप !
आभार ।

shikha varshney said...

are waah aap abhineta bhi hain ...bahut sundar abhivyakti

दिगम्बर नासवा said...

हर किसी की चाबी किसी दूसरे के हाथ है .. यही तो जीवन है ... अच्छा लिखा है बहुत वर्मा जी ... अच्छी रचना ...

राजकुमार सोनी said...

सच तो यही है भाई कि नाटक और कविताओं से पेट नहीं भरा जा सकता।
कभी मैं भी खूब थियेटर करता था।

रवि कुमार, रावतभाटा said...

आपके इस रूप से परिचय नहीं था...
अच्छी कविता के लिए भी धन्यवाद....

अनुराग मुस्कान said...

मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ

तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,

मैं रावण को मात देता हूँ

अट्टहास के मामले में,

-- आम आदमी के असमंजस का सटीक शब्दांकन।

ज्योति सिंह said...

जिसकी संतुष्टि के बाद ही

उसकी जेब में ठुसे पड़े

नोटों के बंडल में से

कुछ नोट मेरी मुट्ठी में आयेंगे.
kya baat hai ?sundar chitran
ek gaana yaad aa gaya ---aadmi ko diwana banati hai rotiya ....

विनोद कुमार पांडेय said...

चाचा जी पहले तो यह कहूँगा की लाज़वाब कविता है...मार्मिक और भावपूर्ण जो आज की सच्चाई भी बयाँ कर रही है....और दूसरी आज आपक अभिनय भी देखा..वाकई बेहतरीन ....आभार

शरद कोकास said...

अभी अभी चार्ली चैपलीन की जीवनी पढ़ी है इस कविता को पढकर वह याद आ गई । सार्थक कविता है यह ।

Satish Saxena said...

यह तो पता ही नहीं था, शुभकामनायें भाई जी !

Arvind Mishra said...

भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यक्ति जैसी सशक्त रचना !

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ

तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,

मैं रावण को मात देता हूँ

अट्टहास के मामले में,

मैं भावनाओं का प्रवाह कर देता हूँ
वाह बहुत सुन्दर. आप भी इप्टा से जुड़े हैं क्या?

सदा said...

बहुत खूब, इस रचना के माध्‍यम से आपकी अभिनय क्षमता का भी ज्ञान हुआ, बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार ।

Akshitaa (Pakhi) said...

अंकल जी, आपने तो बहुत सही बात लिख दी. सब पैसे का कमाल है.

Jyoti said...

मैं रावण को मात देता हूँ

अट्टहास के मामले में,
शानदार रचना

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सुंदर अभिव्यक्ति. सभी कलाकार की कला का आनंद लेते हैं उसके दर्द को कोई नहीं समझता.

राज भाटिय़ा said...

गरीब तो रोज मरता है रोटियो की चिंता मै ......

रंजना said...

मर्म को छूती अतिसुन्दर रचना....
आपके चित्रों से स्पष्ट है कि आप निश्चित ही कुशल अभिनेता होंगे...भाव भंगिमा बेजोड़ है...

Dr. Tripat Mehta said...

wah wah! kya baat hai!

log on http://doctornaresh.blogspot.com/

i just hope u will like it!

हर्षिता said...

सार्थक एवं संवेदना से भरपूर रचना है।

बाल भवन जबलपुर said...

ek zabadast abivyakti
vaah vaah

Renu Sharma said...

varma ji ,
bahut hi marmik likha hai aapne,
yahi sab to ho raha hai hamare aas -paas ,

हरकीरत ' हीर' said...

कोशिश जारी है

फिर से उसे मौत की घाट

उतारने की,

उसे फिर मारा जायेगा

उसे फिर जिन्दा जलाया जायेगा

उसे फिर ......

उसे फिर ......

गज़ब कर जाते हैं आप हर बार ......!!

बेहद प्रभावशाली .....!!

karuna said...

vyastata aur asvasthata ke saat mahine baad aaj jab blog mein aai to sabse pahle aapkee kavita padee aapka abhinay aur kavita ka marm man ko chhu gayaa ab hamara safar jaaree rahega badhaii