मेरा गाँव
जिसमें था
माँ के आंचल का
घना छाँव;
अलसायी सुबह
कौओं की काँव-काँव
पिताजी के मूछों का तेवर
कागज़ के नाव;
गोभी के पत्तों में ठहरे
ओस के मोतियों से
भीगते पाँव
जाने कैसा होगा अब
मेरा गाँव.
उम्र में बड़ा हूँ मैं
अपने पैरों पर खड़ा हूँ मैं.
रोटी के चन्द टुकड़ों के लिये
छोड़कर अपना सलोना घर
चला आया मैं
पत्थर के इस शहर.
अब नहीं दिखता मुझको
चुपके से सावन का आना;
महुए की खुशबू का छाना;
मेरी छेड़छाड़ से
बहना का शरमाना.
अब वह सिहरन कहाँ मिलेगी
अपने ‘कच्चे’ में जब डर गया था
सोया था बेखबर और
ऊपर से ‘गेहुअन’ गुजर गया था.
एक साँस में मीलों भागा
और फिर सहसा ठहर गया था.
नहीं सरसों का खिलना देखा,
इन आँखों ने अरसों से.
नहीं अमिया का छिलना देखा,
इन आँखों ने बरसों से.
घर के ऊपर घर है
इस शहर में बहुत ज़हर है
बहुरूपिये खयालों का
एक लम्बा सफर है
मुर्गे की बाँग नहीं
पुलिस सायरन का शोर यहाँ है
आपाधापी, है गहमागहमी
कूलर की सड़ाध भरी
अब तो भोर यहाँ है
भले चंगे जिस्म है दिखते
पर अन्दर है घाव
जाने कैसा होगा अब
मेरा गाँव
जाने कैसा होगा --
34 comments:
उम्र में बड़ा हूँ मैं अपने पैरों पर खड़ा हूँ मैं. रोटी के चन्द टुकड़ों के लिये छोड़कर अपना सलोना घर चला आया मैं पत्थर के इस शहर. अब नहीं दिखता मुझको चुपके से सावन का आना; महुए की खुशबू का छाना; मेरी छेड़छाड़ से बहना का शरमाना.अब वह सिहरन कहाँ मिलेगी अपने ‘कच्चे’ में जब डर गया था सोया था बेखबर और ऊपर से ‘गेहुअन’ गुजर गया था. एक साँस में मीलों भागा और फिर सहसा ठहर गया था.
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....दिल को छू गई.....
बहुत सुंदर कविता....
पिछली पोस्ट पर नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ........ तबियत खराब थी....
आपको नव वर्ष कि शुभकामनाएं....
वाह वर्मा जी आपने तो सच में बचपन के दिन और गाँव के बगीचों में दोस्तों के साथ मस्ती करने वाले दिन याद दिला दिए..बेहतरीन भाव बहुत सुंदर रचना..धन्यवाद वर्मा जी!!
आपके जज़्बात ने मेरे अंदर टीस पैदा कर दिए हैं।
aisa hi tha mera bhi ganv ab na jaane kaisa hoga.
jab se chhuta peechhe bachpan usake hi saath chhut gaya mera bhi gaanv na jaane ab kaisa hoga,ab to khyalon me bhi dhundhla gaya hai mera gaanv.rap aap ke jajbaton se,
aankhon ke aage aa khada ho gaya mera gaanv.bahut sunder.
बहुत सी यादे वापिस आ गई आप की रचना पढ कर.
धन्यवाद
अत्याधिक मार्मिक एवं भावपूर्ण...
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
जाने कैसा होगा मेरा गाँव ....भावुक कर गयी स्मृतियाँ ....!!
आपकी स्मृतियों को पढ़ मुझे भी आपने गाँव की याद आ गयी .....बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
घर के ऊपर घर है, इस शहर में बहुत जहर है .................
बहुत खूब !
बहुत ही गहन भावयुक्र रचना.
रामराम.
बहुत ही सुन्दर पंक्तियों के साथ जाने कितनी यादों को सजाती आपकी यह अभिव्यक्ति बहुत ही अनुपम प्रस्तुति, आभार ।
ek gahan tees liye atyant marmik abhivyakti.
बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है।बधाई।
बहुत सी पुरानी यादे जाग गयी इसको पढ़ कर ...बहुत बढ़िया लिखा है आपने शुक्रिया
अपने माटी की खुशबू वाली भावपूर्ण रचना ।
bahut khubsurat kavita hai ...sondhi sondhi khushbu wali
भावुक कर दिया आपने
Mujhe mera apna gaanv yaad aa gaya..lahlahate khet aankhon ke samne aaye...mugekee bang sunayi dee aur aankh bhar aayee..
वर्मा जी , गाँव तो अभी भी वैसे ही हैं। बस हम बदल गए हैं, शहर में रहकर।
वहां गाँव की उन्मुक्त हवा में किसानों के ठहाके गूंजते हैं,
यहाँ शहर में हंसने के लिए भी लोग , कल्ब ढूंढते हैं।
बहुत सी यादे वापिस आ गई आप की रचना पढ कर.
धन्यवाद
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर!
उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
भले चंगे जिस्म है दिखते
पर अन्दर है घाव
जाने कैसा होगा अब
मेरा गाँव...
बेहतर रचना...
सुंदर भावों से सजी रचना..
अरे सर अभी तो गांव से आया , आपकी कविता ने फ़िर याद दिला दी गांव की
घर के ऊपर घर है
इस शहर में बहुत ज़हर है
०००० सुंदर अभिव्यक्ति.
आप की रचना पढ कर.अपनी ये पंक्तियाँ याद आ गयी
http://nirjharneer.blogspot.com/2008/10/blog-post_14.html
lajwaab... no more words to say,
बचपन की यादें ......... वो पीपल की बातें ........... बस सोच रहा हूँ चुपचाप बैठा ..... आपकी रचना कहीं गहरे दूर तक खींच ले गयी है .......... धुंधली सी यादें अचानक सॉफ हो गयी हैं मानस पटल पर ......... बहुत ही लाजवाब, उम्दा रचना है .....
बहुत ही प्रभावशाली ढंग से गांव और अतीत के गुजरे पलों का चित्रण किया गया है साथ-ही-साथ शहर के वर्तमान हालात का भी चित्रण कविता मे समाहित है, लेकिन गांव-शहर दोनो के हालात व भौगोलिक स्थिति अलग-अलग होती है आवो-हवा, रहन-सहन मे भिन्नता होना स्वभाविक है।
गांव की खुशबू और शहर की खट्टे-मीठे पलों का अपना-अपना अहसास व जज्बा है दोनो की आपस मे तुलना बेमानी होगी।
रचना प्रभावशाली है, सभी की ओर से सराहना मिलेगी, बधाई !!
Duniyabhar Ki Yaaden Hamse Milne Aati Hain...Aur YE Padhkar To Sach Me Aa Gayi...
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!
bahut sundar .Badhai!!
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