शहर के इन रेंगते वाहनों के बीच
शिनाख़्त करो खुद की
जीजिविषा से परे
हर पल डरे-डरे
मुट्ठी में रेत लिये
क्या तुम खुद ही के ख़िलाफ़
खड़े नहीं हो जाते हो?
अपने ही कद से
बड़े होने की कोशिश में
चौराहों के आदमख़ोर जंगल में
ख़ुद का कद -
और बौना नहीं पाते हो?
हुलिया ये है कि
तुम्हारा तो कोई हुलिया ही नहीं है
तन्दूर से गुर्दे तक
तुम कहीं भी पाए जा सकते हो
हर सच के एवज़ में
तुम झुठलाए जा सकते हो.
ज़मीर पर खड़े होने के ज़ुर्म में
तुम जमीन से काट दिए गये हो
बोटियों की शक्ल में तुम
चन्द लोगों में बाँट दिए गये हो.
उम्र से तो तुम
ख़ुद की शिनाख़्त कर ही नहीं सकते
क्योंकि तुम हर उम्र के हो,
पर हमेशा तुम
अपने उम्र से बड़े दिखते हो
अपने लहू से
कारपेट रंगते बच्चे से लेकर
अपने खोये बच्चे को तलाशते
अनगिन झुर्रियों वाले बाप के बीच
तुम्हारी कोई भी उम्र हो सकती है.
तुम्हारे पैरों की बिवाईयों सा
फटा-चिथड़ा है तुम्हारा लिबास
जब तुम सपने देखते हो
तुम्हें लगता है कि अपने देखते हो
त्रासदी ये है कि
तुम्हारा कोई सपना ही नहीं है
तुम्हारे इर्द-गिर्द
तुम्हारा कोई अपना ही नहीं है.
हक़ीकत है कि
तुम्हारी कई पीढ़ियाँ भटक रही हैं
तलाशती हुई खुद को
हुलिया, उम्र और लिबास से
क्योंकि वे परे हैं
जीजिविषा, आस्था और विश्वास से
तुम्हारी शिनाख़्त तो
ख़ुद ब ख़ुद हो जायेगी
जब तुम शिनाख़्त कर लोगे उनकी
जो तुम्हें तुमसे ही बांट रहे हैं
तुम्हारे ही हाथों तुम्हें ही काट रहे हैं
आसमाँ की बुलन्दियों पर
तुम्हारी पहचान उभरेगी
तुम अपनी मुट्ठियाँ
हवा में लहराकर तो देखो --
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हिन्दयुग्म 'यूनिकवि' प्रतियोगिता नवम्बर मास में पंचम स्थान प्राप्त रचना
हिन्दयुग्म में पूर्व प्रकाशित
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44 comments:
खुद ही के ख़िलाफ़ खड़े नहीं हो जाते हो? अपने ही कद से बड़े होने की कोशिश में चौराहों के आदमख़ोर जंगल में ख़ुद का कद - और बौना नहीं पाते हो?
बहुत सुंदर पंक्तियाँ .... मनुष्य कि जिजीविषा को दर्शाती..... बेहतरीन कविता...
सही है - आदमी तय करले अपने महत्व पर तो सब सधने लगते हैं।
अच्छी रचना। बधाई।
bahut kuchh jado-jehed ka jihad chhodti hui ek asardaar rachna.
Mahanagron me ham apnee paehchaan waqayi kho baithate hain!
आसमाँ की बुलन्दियों पर तुम्हारी पहचान उभरेगी तुम अपनी मुट्ठियाँ हवा में लहराकर तो देखो
बहुत बढिया, जोश से लबरेज़.
शानदार कविता का पुनर्पाठ ....मन खुश हो गया एक सच के साथ कविता आगे बढ़ती है..बढ़िया कविता नेक बातों को प्रस्तुत करती हुई..धन्यवाद वर्मा जी...
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
OOOOOHHHHHHHHH !!! NIHSHABD KAR DIYA AAPKI IS RACHNA NE...
PRASHANSHA ME KAHNE KO KOI SHABD NAHI DHOONDH PAA RAHI....
ADWITEEY RACHNA...SIMPALY GREAT!!!
बहुत बेहतरीन रचना लगी...वाह!!
शानदार कहानीमय रचना ,खुद की शिनाख्त तो जरूरी है
हो गया अस्तित्व है बौना हमारा।
खो रहा परिवेश है अब तो बिचारा।।
बहुत सुन्दर रचना , वर्मा जी।
इस भीड़ भाड़ भरी जिंदगी में आज इंसान अपनी पहचान ही खो गया है।
खुद पर विहंगम दृष्टि डालते हुई पहचानने की सलाह और फिर मुट्ठियाँ लहराते हुए जोश दिलाना ...
सब कुछ है इस एक ही कविता में ....
सार्थक विचारोत्तेजक प्रविष्टि ...!!
तुम जमीन से काट दिए गए हो
बोटियों की शक्ल में तुम
चंद लोगो में बाँट दिए गए हो !
बहुत खूब !
बहुत ही बेहतरीन लगी आपकी यह रचना ..शुक्रिया
ek bahut hi marmik , sandesh deti rachna........badhayi
बहुत बेहतरीन रचना.
रामराम.
(वर्माजी आपका इमेल एड्रेस चाहिये कृपया मेरे कमेंट बाक्स में छॊड दिजिये. मोदरेशन लगा है)
खुद ही के ख़िलाफ़ खड़े नहीं हो जाते हो? अपने ही कद से बड़े होने की कोशिश में चौराहों के आदमख़ोर जंगल में ख़ुद का कद - और बौना नहीं पाते हो?
bahut hi gahri baate kah gaye waah kya baat hai isme
तुम जमीन से काट दिए गए हो
बोटियों की शक्ल में तुम
चंद लोगो में बाँट दिए गए हो !
बिलकुल सजी कहा बहुत सुन्दर रचना है बधाई
तुम्हारी शिनाख़्त तो ख़ुद ब ख़ुद हो जायेगी
जब तुम शिनाख़्त कर लोगे उनकी
जो तुम्हें तुमसे ही बांट रहे हैं
तुम्हारे ही हाथों तुम्हें ही काट रहे हैं
आसमाँ की बुलन्दियों पर
तुम्हारी पहचान उभरेगी
तुम अपनी मुट्ठियाँ
हवा में लहराकर तो देखो .....
बहुत शशक्त........ बेमिसाल रचना वर्मा जी ........ ये सच है की इंसान खुद को नही जान पाता ...... इतना साहस नही जुटा पाता की भीड़ में अपनी पहचान बना सके ....... आसमान में सन तो ध्रुव तारे नही होते ......... अनुपम रचना है .......
sashakt rachna. sunder abhivyakti.
astitva ki vaastvikata ko talashati rachna achchhi lagi.
सबसे पहले आपका बहुत बहुत धन्यवाद कहना चहूंगा, आपने मेरे ब्लॉग पर खुले दिल से अपने शब्द रखें। दूसरा इस कविता के लिए, बिल्कुल सही और दुरुस्त लिखा है आपने। खुद की शिनाखत जब व्यक्ति कर लेगा, वो महावीर, जीसस या अन्य हो जाएगा। खुद की शिनाखत जरूरी है।
औरत का दर्द-ए-बयां
"हैप्पी अभिनंदन" में राजीव तनेजा
कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
अपने ही कद से बड़े होने की कोशिश में चौराहों के आदमख़ोर जंगल में ख़ुद का कद - और बौना नहीं पाते हो?
wah bhai, behatar rachna.
kuch bhi na kar pane ki tadp hai is achna me .
aaj ke jeevan ka katu saty hai
बहुत सुन्दर रचना , वर्मा जी।
इस भीड़ भाड़ भरी जिंदगी में आज इंसान अपनी पहचान ही खो गया है।
VERMA JI
नमस्कार!
आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Sanjay Bhaskar
Blog link :-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत ही सुंदर रचना है।
pls visit...
www.dweepanter.blogspot.com
congratutations and thanks
bahut hi sundar.badhai!!
बहुत ही अच्छी रचना......
वसीम साब का शेर बरबस ही याद आ गया.......आपकी रचना पढने के बाद
हर शख्स भागता है यहाँ भीड़ की तरफ,
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले
अजीब जद्दोजहद है जिंदगी........!
यह कविता मैने पढ़ी है इस पर कमेंट भी कर चुका हूँ आज दुबारा पढ़ी
कविता आम जन की बात करती है-
तुम्हारी कई पीढ़ियाँ भटक रही हैं
तलाशती हुई खुद को
हुलिया उम्र और लिबास से
क्योंकि वे परे हैं
जीजिविषा आस्था और विश्वास से
--सशक्त रचना।
shahar ke bhayavah charitr ko bayaan karatee kavita ke liye badhai. ise puraskar mila, yah kavita is layak thee. badhai
बहुत सुन्दर पोस्ट. हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में प्रभावी योगदान के लिए आभार
आपको और आपके परिजनों मित्रो को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये...
वर्मा जी ....... हमारी तरफ से आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ........
--नववर्ष मंगलमय हो।
वर्मा साहब , मेरी तरफ से भी आपको और सभी पारिवारिक जनों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये, इस नये साल पर आपके लिए इन 12 इच्छाओ के साथ;
१. दिलों में गहरे अंदर तक खुशी.
२.हर सूर्योदय पर स्थिरता.
३.आपके जीवन के हर मोड़ पर सफलता.
४.आपके पास आपका परिवार.
५.शुभचिंतक मित्र आपके चारों ओर.
६.प्यार जो कभी ख़त्म न हो .
७.आपके पास अच्छा स्वास्थ्य.
८. बीते दिनों की खूबसूरत यादें.
९.आभारी बनने के लिए एक उज्जवल आज.
१०. बेहतर कल के लिए एक अग्रणी मार्ग.
११.सपने जो सच साबित हो .
१२.आप जो भी करे उसके लिए ढेरों सराहनाये मिले .
नव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
--------
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
नव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
--------
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
बहुत कुछ कह दिया सोचने पर मजबूर कर दिया बहुत बहुत बधाई
नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कमाना के साथ
सादर रचना दिक्षित
अच्छी रचना। बधाई।
nav varsh ki haardik shubh kaamnaaye ,sabne itna kah diya ki ab itna kahoongi laazwaab
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