Saturday, June 6, 2009

तेल की देखो धार --

मैं बावरा बाज़ार गया, खरीदन चाहूँ संसार।
ख़ुद ही देखो बिक गया, चुका ना पाया उधार।।
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राह नहीं आसान मगर, राह से करता प्यार।
लहरों से डरने वाले भला, कब उतरे हैं पार॥
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प्यार बाटता फिरता जाता, मोल में पाता प्यार।
घाटे का सौदा नहीं, प्यार का भूखा यह संसार॥
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निश्चिंत रहो, खामोशी से तेल की देखो धार।
पूरा होगा काम सभी, हवा पे मत हो सवार॥
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सीधी बात कहूँ मैं भाई, यह जीवन का सार।
हँस- बोल के रहो यहाँ, मत खाओ तुम खार॥

6 comments:

Razia said...

अच्छी लगी आपकी यह रचना

M Verma said...

Razia jee
comment ke liye thank you.

Yogesh Verma Swapn said...

wah vermaji, poori rachna umda.

pyaar baantta phira........... vishesh man ko bhai. badhai sweekaren.

Sajal Ehsaas said...

ek naayapan mahsoos hua aapki rachna me....

स्वप्न मञ्जूषा said...

राह नहीं आसन मगर, राह से करता प्यार
लहरों से डरने वाले भला कब उतरें हैं पार

बहुत बहुत अच्छी लगी आपके कलम की चाल
बेहतरीन, लाजवाब !!
धन्यवाद

Unknown said...

Hi Raaz,

Thank You Very Much for sharing this great post.

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-Thanks for sharing

- Pallavi Joshi

Senior Account