कितनी गूँजती हैं —
खामोशी
से कही बातें;
न
जाने कहाँ गुम हो गईं —
रोशनी
से नहाई रातें।
स्मृतियों में सिमट
गई है
पलकें
झपकाकर
सब
कुछ कह देने वाली वह अदा;
होंठ
तो खुलते भी नहीं थे—
जब
तुम बोलती थी।
रूबरू होने पर
छुईमुई सी सकुचाकर
नज़र झुकाकर -
पैरो के अंगूठे से जमीन पर
जो कुछ लिखती थी तुम
मिट नही पाई वह लिपि
मैं अब भी उसे
पढने की फिराक मे हूँ
तुम्हारे अनछुए स्पर्श को
अनुवादित करने मे संलग्न
हैं
मेरी मानस उंगलिया निरंतर,
आज नही तो कल
शायद मिल ही जाये अर्थ
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 06 दिसंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएं