न कागज़ चाहिए, न चाहिए कलम,
दिल ही काफी है लिखने को ग़म
हर एक जख्म में दास्ताँ लिखी है,
तुम जो पढ़ लो तो हो जाए कम
शीशे का दिल मेरा बिखर जायेगा
तोड दो, ताकि अब टूट जाये भरम
जमाने ने बना दिया है पत्थर सा -
नजर भर के देख लो हो जाऊँ नरम
रास्तों ने गलत पता बताया तुम्हारा
सर्द हवाये भी अब ढा रही हैं सितम
‘तुम’ बिन मुकम्मल करे ये कहानी
‘वर्मा’ किधर से ला पायेगा वो दम

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जवाब देंहटाएंवाह्
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआपकी पूरी कविता में एक थकान है, पर वो हार वाली थकान नहीं, वो बहुत प्यार करके भी खाली हाथ रह जाने वाली थकान है।
जवाब देंहटाएंजिसमें दिल कहता है की “कोशिश तो बहुत की थी, बस किस्मत थोड़ी कम निकली।”
धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंवाह!! बेहतरीन शायरी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद
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