गुरुवार, 6 नवंबर 2025

ज़ख्मों की दास्ताँ -


 न कागज़ चाहिए, न चाहिए कलम,

दिल ही काफी है लिखने को ग़म


हर एक जख्म में दास्ताँ लिखी है,

तुम जो पढ़ लो तो हो जाए कम


शीशे का दिल मेरा बिखर जायेगा

तोड दो, ताकि अब टूट जाये भरम


जमाने ने बना दिया है पत्थर सा -

नजर भर के देख लो हो जाऊँ नरम


रास्तों ने गलत पता बताया तुम्हारा

सर्द हवाये भी अब ढा रही हैं सितम


‘तुम’ बिन मुकम्मल करे ये कहानी

वर्मा’ किधर से ला पायेगा वो दम


13 टिप्‍पणियां:

Razia Kazmi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Razia Kazmi ने कहा…

वाह्

Admin ने कहा…

आपकी पूरी कविता में एक थकान है, पर वो हार वाली थकान नहीं, वो बहुत प्यार करके भी खाली हाथ रह जाने वाली थकान है।
जिसमें दिल कहता है की “कोशिश तो बहुत की थी, बस किस्मत थोड़ी कम निकली।”

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

Priyahindivibe | Priyanka Pal ने कहा…

सुंदर

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

Anita ने कहा…

वाह!! बेहतरीन शायरी

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर

M VERMA ने कहा…

जी धन्यवाद