सोमवार, 3 नवंबर 2025

अनछुआ स्पर्श -----

जानना है मुझे - बर्फ या अंगारा हो

मेरे लिए तुम मुकम्मल सहारा हो


टिकते क्यूँ नहीं एक दर पर तुम

यकीनन - तुम तो कोई सैय्यारा हो


बहुत सूकुन है तुम्हारी सोहबत में

शायद तुम दरिया का किनारा हो


बेचैन 'नैन' तुम्हारे कर रहे चुगली

संदेशों के शायद तुम हरकारा हो


बेसब्र मन तो मानता ही नहीं है

'अनछुआ स्पर्श' शायद दुबारा हो


"वर्मा" ये इश्क़ अब तर्क कैसे करे,

दर्द देने वाला जब इतना प्यारा हो


12 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर लेखन
    कल श्वेता जी आएंगी
    वे सप्ताह में दो दिन आती हैं
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह्ह बहुत बढ़िया गज़ल सर।
    सादर।
    -----
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ४ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. पढ़ते समय शुरू में लगा कि मैं किसी युवा कवि को पढ़ रहा हूँ, फिर देखा, ये तो अपने पुराने वर्मा जी हैं! अभी सुखद एहसास हैं, वाह!🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तो आप मुझे अब बुजुर्ग मानने लगे हैं अरे अभी 67 साल का ही हुआ हूं धन्यवाद

      हटाएं
  4. आप सवाल पर सवाल नहीं करते, आप सामने वाले को महसूस करते हो। दर्द देने वाला अगर प्यारा हो जाए तो छोड़ना नामुमकिन हो जाता है। आपकी यह कविता दिल को धीमे से चुभकर धीरे से सहला भी देती है।

    जवाब देंहटाएं