मुझे तैनात किया गया
फसलों को नष्ट करने वाले
अनाहूत पशुओं से रक्षा के लिये;
मुझे तैनात किया गया
खेतों के ऊपजाऊपन को चुराने वालों को
डराने के लिये,
और मैं अविचल खड़ा हो गया
बाहें पसारे; तत्पर (!)
वे मेरे देखते देखते
ऊपजाऊ मिट्टी पर
कब्जा कर लिये
मैं उन्हें रोकना चाहकर भी
रोक नहीं पाया
मेरे देखते देखते
जंगली पशुओं के झुंड ने
धावा बोल दिया
और तहस-नहस कर दिया
मेरे समक्ष उगी फसलों को
शायद मेरे प्रतिकार की
समस्त ताकत जवाब दे गयी थी;
या शायद मेरी अकर्मण्यता
मुझे हिलने नहीं दे रही थी;
या शायद मेरे भय ने
मुझे जड़ बना दिया था,
आज भी मैं खड़ा हूँ निर्विकार
अपने स्थान पर
अपने उत्तरदायित्वबोध से गर्वित
हिल न सकने की हद तक
अपने वजूद से जुड़ा
निश्चल;
निर्विकार
मैं बिजूका ......
नेता लोग जरूर पढ़ें ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रतीक का चयन ... आज के हालात का सटीक चित्रण
ReplyDeleteसुन्दर कविता
अपने उत्तरदायित्वबोध से गर्वित ,बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
उम्दा रचना!
ReplyDeleteबजुका की जगह भारतीय नेता लिख देते तो भी एकदम सही होता ! बहुत ही बढ़िया व्यंग्य !
ReplyDeleteएक नया पन और नई अंदाज में लिखी गई कविता दिल जीत लेती है...वर्मा जी बेहतरीन अभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें
ReplyDeletehar chaurahe par khade ye nischal nirviaar bajuke ...
ReplyDeletesirf chunav se pahle kuch samay tak inme aa jati hai jaan ...
marmsparshi rachna !
उत्तरदायित्व और स्थानमुग्धता, दोनों के अन्तर्द्वन्द को उभार दिया है ।
ReplyDeleteघुमाकर बहुत गहरी बात कह गए वर्मा जी ।
ReplyDeleteअति सुन्दर ।
प्रतीक भी सही चुना और व्यंग भी करारा है ।
ReplyDeleteShayad ham sabhi apne jeevan me kabhi na kabhi,anchahe sahi,bajuka ban jate hain! Aapne ekdam se aanken khol deen...!
ReplyDeleteयह रचना हर उस व्यक्ति को इंगित करती है जो बिजूका बन किसी भी घटना से विचलित नहीं होता...सुन्दर प्रतीकात्मक रचना...
ReplyDeleteमैं अविचल खड़ा हो गया बाहें पसारे; तत्पर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आज भी मैं खड़ा हूँ निर्विकार
ReplyDeleteअपने स्थान पर
अपने उत्तरदायित्वबोध से गर्वित
हिल न सकने की हद तक
अपने वजूद से जुड़ा
निश्चल;
निर्विकार
मैं बजूका ......
बहुत खूब । अच्छी रचना के लिये बधाई।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteक्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलन के नए अवतार हमारीवाणी पर अपना ब्लॉग पंजीकृत किया?
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वाह्……………गज़ब की प्रस्तुति।
ReplyDeleteआप ने बहुत सही लिखा अपनी कविता मै आज के भारत के हालात.....
ReplyDeleteहर बिजूका को इंगित करती रचना ..बहुत उम्दा.
ReplyDeletebahut hi umda rachna !
ReplyDeletekamaal ki rachna !
बहुत बढ़िया बहुत पसंद आई यह ..
ReplyDeleteसरोकारों के साथ खड़ी पंक्तियां...
ReplyDeletebahut hi sundar rachna!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा सोच.. कविता के माध्यम से ध्यान आकर्षित किया इस मुद्दे की तरफ भी..
ReplyDeleteयह कविता काफी मर्मस्पर्शी बन पड़ी है । बिम्ब पारम्परिक नहीं है – सर्वथा नवीन। इस कविता की अलग मुद्रा है, ये करूणा के स्वर नहीं है । यह प्रस्तुत करने का अलग और नया अंदाज है।
ReplyDeleteप्रतीक-बिम्ब के माध्यम से सुन्दर बात कहती कविता..साधुवाद.
ReplyDeleteप्रतीक चयन लाजवाब है....बड़ा ही सटीक चित्रण किया है आपने...
ReplyDeleteसुन्दर कविता...सटीक चित्रण...
ReplyDeleteबिजूका के बहाने सटीक व्यंग्य।
ReplyDelete---------
किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?
बढ़िया प्रतीकात्मक रचना ! बिजुका से सुनना अच्छा लगा ! शुभकामनायें भाई जी
ReplyDeleteभावनात्मक वर्णन किया है आपने ... एक हारे हुवे इंसान का ... जो चाहता तो है पर कुछ कर नही पाता ... बिजूका हमारे ही मन में है .... हमारी आत्मा में है ....
ReplyDeleteबिजूका अपने आप मे एक सशक्त बिम्ब है \ मैने इसका उपयोग भूकम्प से सम्बन्धित एक कविता मे किया है कभी अवसर आया तो ब्लॉग पर दूंगा । यह अच्छा लगा
ReplyDeleteek bijooka ke madhyam se aadmi ki akarmyadta pe ek bada prahar kiya aapne..behad shandar lagi yah rachna aapki ..
ReplyDeleteNaman sweekar karein!
ReplyDeleteAshish :)
good poem, it's good to read this poem it trully shows the presents condition whats going on around us it's really a good poem....
ReplyDeleteit's such a nice poem. it really shows the current condition of politics whats going on around us it's really a good poem...
ReplyDeleteSach ke behad kareeb.
ReplyDelete---------
चिर यौवन की अभिलाषा..
क्यों बढ रहा है यौन शोषण?
यह कैसी मजबूरी और लाचारी?... शायद हमारी सभी की कहानी कुछ कुछ ऐसी ही है!... अति सुंदर भाव!
ReplyDeleteआज हम भी तो विजुका ही बन कर रह गए हैं.
ReplyDeleteshabd sanyojan ati sundar.......badhai
ReplyDeleteबिजूका जैसे अछूते शब्द को भी नही छोड़ा!
ReplyDelete--
बहुत सुन्दर!
assahaayataa kee hataashaa ko ingit krtee khoobsoorat kavitaa !
ReplyDeletebahut hi satik avam prabhav shali prastutikaran.
ReplyDeletepoonam
आज भी मैं खड़ा हूँ निर्विकार
ReplyDeleteअपने स्थान पर
अपने उत्तरदायित्वबोध से गर्वित
हिल न सकने की हद तक
अपने वजूद से जुड़ा
निश्चल;
निर्विकार
मैं बिजूका ...
बहुत-बहुत सुन्दर.
कृपया इस शमा को जलाए रखें।
ReplyDelete--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
Kitna sach hai...jab kabhi khud ko pahchaan jane ki koshish karte hain,swayam ko bauna pate hain! Kis qadar khoobi se aapne rachana rachi hai!
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteशिनाख्त की कवायद की कहानी है यह कविता....लम्बी कविता में तारतम्यता बनाये रखना हमेशा ही कठिन होता है मगर आपने पूरी कविता में विषय के साथ ले बरकरार रखी है.......वाकई शानदार कविता है.
ReplyDeleteनए तरह के बिम्ब का प्रयोग करते हैं आप! बिम्ब भी बिलकुल शहर के बीच से उठाते हैं और बहुत कुछ कह जाते हैं ! सुंदर कविता
ReplyDeleteशायद मेरे भय ने मुझे जड़ बना दिया था, आज भी मैं खड़ा हूँ निर्विकारअपने स्थान परअपने उत्तरदायित्वबोध से गर्वितहिल न सकने की हद तकअपने वजूद से जुड़ा निश्चल;निर्विकार मैं बिजूका ..
ReplyDelete........ek antheen sangharsh karta bijuka ke manodasha ka samvedansheel chitran ke liye aabhar
बहुत बढ़िया कविता ....
ReplyDeletebahut hi saty kaha hai aapne
ReplyDeleteshinakht to karni hi padegi.
bahut achha likha aapne..
ReplyDeleteaaj ke waqt or halaat ke upar likha hai...
Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteबिजूका उर्फ कागभगोड़ा के माध्यम से आपने राजनैतिक विसंगितयों ओर राजनीतिज्ञों की विडम्बनाओं को बहढत्रया अंदाज में प्रस्तुत किया है। बधाई!
अपनी रचना के लिए काग भगोड़ा उर्फ बिजूका के लिए नेट में चित्र खोजते हुए आपके ब्लाग में पहुंचा। आपके चित्र ले रहा हूं। घटनोत्तर स्वीकृति प्रदान करें।