
भेजा था मैनें,
उस दिन एक दस्तक
तुम्हारे दरवाजे के नाम
और तुम्हारा दरवाजा
अनसुना कर गया था;
तभी तो
खुलने से मना कर गया था.
मुझे पता है
यह हौसला
दरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों
तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
शायद उसने यह बात
तुमसे भी नहीं बतायी होगी
हताश-परेशान मेरे दस्तक ने
बिना मेरी अनुमति के
मेरी आँसुओं के चन्द कतरे
तुम्हारी ड्योढी पर रखा था.
चश्मदीदों ने बताया
तुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो
आज फिर एक दस्तक
तुम्हें चौकन्ना करने के लिये
कि आँसू के उन कतरों को
सहेजना मत,
वे सैलाब बन जायेंगे.
पड़े रहने देना तुम
वहीं ड्योढी पर
सूरज की तपिश
उन्हें भाप बना देगी,
या फिर शायद
तुम्हारे दरवाजे की
ड्योढियों पर उगे पौधों की जड़ें
अवशोषित कर ले.
मेरे आँसुओं का मकसद
तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है.
यह हौसला
ReplyDeleteदरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों
तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
बहुत कुछ कह गए वर्मा जी इन चन्द शब्दों के माध्यम से। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मेरे नए ब्लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमेरे आँसुओं का मकसद तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
चश्मदीदों ने बताया
ReplyDeleteतुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो
आज फिर एक दस्तक
तुम्हें चौकन्ना करने के लिये
कि आँसू के उस कतरे को
सहेजना मत,
Dil kee gahree baat kah gaye Verma Sahab.
बहुत उम्दा रचना!
ReplyDeleteविचारणीय कविता जो हालात और उसके अंदरूनी द्वन्द को दिखा रही है |
ReplyDelete...अदभुत भाव ... बेहद प्रसंशनीय !!!
ReplyDeletewaah adbhut soch aur lajawaab kavita...
ReplyDeleteकुछ तो काम आयेंगे ये आंसू।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ।
बहुत बढ़िया है भाई वर्मा जी ... क्या बात है !!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteआँसू के उस कतरे को
सहेजना मत,
वह सैलाब बन जायेगा
बहुत गहरी बात कही है नज़्म में...सुन्दर
आंसुओं का हर कतरा सैलाब बनने की ताकत रखता है...
ReplyDeleteबेहतर...
आज फिर एक दस्तक
ReplyDeleteतुम्हें चौकन्ना करने के लिये
कि आँसू के उस कतरे को
सहेजना मत,
वह सैलाब बन जायेगा.
पड़े रहने देना तुम
उसे वहीं ड्योढी पर
सूरज की तपिश
उसे भाप बना देगी,
sahi kaha aapne...vo kahte hain na insaan tab tak nahi rota jb tak ki koi us se sahanubhuti k do bol na bol de...sahanubhuti insan k thehre hue jazbato ko kamjor kar deti hai...ye shabd isi vichar ko sudrad karte hai...bahut bhavukta se likhi rachna bhavuk kar gayi.
बहुत खूब ... पूरी रचना में ग़ज़ब का तारतम्य है ... अभिव्यक्ति बहुत ही सहज है ...
ReplyDeleteयह कविता हालात और उसके अंदरूनी द्वन्द को दिखा रही है। इस कविता की अभिव्यक्ति बहुत ही सहज है।
ReplyDeleteहताश-परेशान मेरे दस्तक ने
ReplyDeleteबिना मेरी अनुमति के
मेरी आँसुओं के चन्द कतरे
तुम्हारी ड्योढी पर रखा था.
चश्मदीदों ने बताया
तुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो
waah kya klhyal or kya bunai ..behad sindar.
आपकी अनुमति अपेक्षित है कविता को लिन्क कर दिया है
ReplyDeleteयहां http://voi-2.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteप्रथम पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति तक, परत दर परत अभिभूत करने वाली कविता.. किंतु एक त्रुटि खतक रही है लगातार.. आशा है क्षमा सहित कहने की अनुमति देंगेः
ReplyDeleteआपने पूरी कविता में दस्तक को पुल्लिंग रूप में लिखा है जबकि यह शब्द स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होता है. हो सकता है यह मेरी भूल हो...
कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जो अपनी अभिव्यक्ति लगती है...पूरे एहसास अपने से लगे
ReplyDeleteसुंदर रचना है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteसही!! बढ़िया
ReplyDeleteआपने बहुत शानदार लिखा
http://mydunali.blogspot.com/
बहुत सुंदर भाव लिये हुए लिखा गया है।
ReplyDeleteमस्त, एकदम मस्त।
आपने तो कर बार की तरह निःशब्द कर दिया ...... ग़ज़ब की शानदार पोस्ट....
ReplyDeleteइस कमाल की सोच को सलाम सर..
ReplyDeleteयह हौसला
ReplyDeleteदरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों
तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
क्या बात है वर्मा जी. बहुत सुन्दर. इतने संजीदा भाव, इतनी खूबसूरती से कविता में उतारे है आपने कि तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास. ये पंक्तियां तो कमाल की हैं.
BHai ye dastak to sedhe dil ke darwaje par huyi hai
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट ... http://ghazal-geet.blogspot.com/2010/05/blog-post_24 चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
यह हौसला
ReplyDeleteदरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों
तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
पूरी कविता ही अद्भुत भाव लिए हुआ है...बहुत ही सुन्दर नज़्म..
ek nayapan liye sundar rachna!
ReplyDeletekaise likh lete hain aap itna gahra
ReplyDelete....... dastak suni nahi ..... aansun ab sahejna nahi sialaab ban jaayega ...... ped avshoshit kar lenge
aur sukh hi to pahunchana hai
kis pankti ko kam kahun nahi pata
सुन्दर भाव बेहतरीन शब्द संयोजन. बेहतरीन अभिव्यक्ति हर बात दिल को छूती हुई दिल के करीब ले जाती है अहसासों से भरपूर प्रेमाहुती देने को तत्पर
ReplyDeleteआभार
वत्स
ReplyDeleteसफ़ल ब्लागर है।
आशीर्वाद
आचार्य जी
भेजा था मैनें,
ReplyDeleteउस दिन एक दस्तक तुम्हारे दरवाजे के नाम
और तुम्हारा दरवाजा अनसुना कर गया था;
तभी तो
खुलने से मना कर गया था.
मुझे पता है यह हौसला दरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
शायद उसने यह बात तुमसे भी नहीं बतायी होगी हताश-परेशान मेरे दस्तक ने बिना मेरी अनुमति के मेरी आँसुओं के चन्द कतरे तुम्हारी ड्योढी पर रखे थे.
चश्मदीदों ने बताया तुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो
आज फिर एक दस्तक तुम्हें चौकन्ना करने के लिये कि आँसुओं के उन चाँद कतरों को सहेजना मत,वो सैलाब बन जायेंगे.
पड़े रहने देना तुम उन्हें वहीं ड्योढी पर सूरज की तपिश उन्हें भाप बना देगी, या फिर शायद तुम्हारे दरवाजे की ड्योढियों पर उगे पौधे की जड़ें अवशोषित कर लें.
मेरे आँसुओं का मकसद
तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है.
अपनी इस कविता को मेरी नज़र से पढ़ कर देखें.आपकी कविता बहुत अच्छी है.
इतनी सुन्दर कविता कि दिल थाम के रह गया ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता लिखी अंकल जी...
ReplyDelete_________________
'पाखी की दुनिया' में ' अंडमान में आया भूकंप'
यह हौसला
ReplyDeleteदरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों
तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
ये शब्द दिल को छु गये, बेहतरीन रचना, प्रस्तुति के लिये आभार ।
आँसुओं का मकसद तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है........बेहतरीन रचना, प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteक्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।
ReplyDeleteआइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !
SHAANDAR .................. KHUBSURAT
ReplyDeleteदस्तक के मानवीकरण ने अभूतपूर्व अहसास भरी मार्मिकता पैदा कर दी है नए बिम्बों के साथ। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeletebahut bahut achha...agar ek baat ki tareef karni ho to yehi kahoonga ki har shabd har pankti kamaal ki lagti hai...
ReplyDeletedarwaja dastak aur aap
ReplyDeleteaccha hai
आपकी ये दस्तक तो काफी अच्छी लगी..कई बार दिल के करीब.
ReplyDeletebahut gahre ehsaso ke motiyo se goontha hai is kavita ko jitni prashansa karu kam hai. aabhar.
ReplyDeleteबेहद स्तरीय और सशक्त रचना ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteमैनें सहेज लिया है
ReplyDeletevery good.
बहुत ही बढ़िया रचना बहुत पसंद आई यह शुक्रिया
ReplyDeleteBahut sunder rumani kawita.
ReplyDeleteचन्द शब्दों के द्वारा .. बहुत कुछ कह गए सर जी .बिंदास पोस्ट आभार...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDelete