Sunday, May 30, 2010

एक दस्तक तुम्हारे दरवाजे के नाम ~~

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भेजा था मैनें,
उस दिन एक दस्तक
तुम्हारे दरवाजे के नाम
और तुम्हारा दरवाजा
अनसुना कर गया था;
तभी तो
खुलने से मना कर गया था.
मुझे पता है
यह हौसला
दरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों
तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
शायद उसने यह बात
तुमसे भी नहीं बतायी होगी
हताश-परेशान मेरे दस्तक ने
बिना मेरी अनुमति के
मेरी आँसुओं के चन्द कतरे
तुम्हारी ड्योढी पर रखा था.
चश्मदीदों ने बताया
तुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो
आज फिर एक दस्तक
तुम्हें चौकन्ना करने के लिये
कि आँसू के उन कतरों को
सहेजना मत,
वे सैलाब बन जायेंगे.
पड़े रहने देना तुम
वहीं ड्योढी पर
सूरज की तपिश
उन्हें भाप बना देगी,
या  फिर शायद
तुम्हारे दरवाजे की
ड्योढियों पर उगे पौधों की जड़ें
अवशोषित कर ले.
मेरे आँसुओं का मकसद
तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है.

54 comments:

  1. यह हौसला
    दरवाजे का नहीं हो सकता
    वह उन दिनों
    तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.

    बहुत कुछ कह गए वर्मा जी इन चन्द शब्दों के माध्यम से। वाह।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. मेरे नए ब्‍लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्‍ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया।

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. मेरे आँसुओं का मकसद तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है.
    बहुत सुन्दर

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  5. चश्मदीदों ने बताया

    तुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो

    आज फिर एक दस्तक

    तुम्हें चौकन्ना करने के लिये

    कि आँसू के उस कतरे को

    सहेजना मत,
    Dil kee gahree baat kah gaye Verma Sahab.

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  6. बहुत उम्दा रचना!

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  7. विचारणीय कविता जो हालात और उसके अंदरूनी द्वन्द को दिखा रही है |

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  8. ...अदभुत भाव ... बेहद प्रसंशनीय !!!

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  9. waah adbhut soch aur lajawaab kavita...

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  10. कुछ तो काम आयेंगे ये आंसू।
    बहुत बढ़िया ।

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  11. बहुत बढ़िया है भाई वर्मा जी ... क्या बात है !!

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  12. बहुत भावपूर्ण रचना.....

    आँसू के उस कतरे को
    सहेजना मत,
    वह सैलाब बन जायेगा

    बहुत गहरी बात कही है नज़्म में...सुन्दर

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  13. आंसुओं का हर कतरा सैलाब बनने की ताकत रखता है...

    बेहतर...

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  14. आज फिर एक दस्तक
    तुम्हें चौकन्ना करने के लिये
    कि आँसू के उस कतरे को
    सहेजना मत,
    वह सैलाब बन जायेगा.
    पड़े रहने देना तुम
    उसे वहीं ड्योढी पर
    सूरज की तपिश
    उसे भाप बना देगी,

    sahi kaha aapne...vo kahte hain na insaan tab tak nahi rota jb tak ki koi us se sahanubhuti k do bol na bol de...sahanubhuti insan k thehre hue jazbato ko kamjor kar deti hai...ye shabd isi vichar ko sudrad karte hai...bahut bhavukta se likhi rachna bhavuk kar gayi.

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  15. बहुत खूब ... पूरी रचना में ग़ज़ब का तारतम्य है ... अभिव्यक्ति बहुत ही सहज है ...

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  16. यह कविता हालात और उसके अंदरूनी द्वन्द को दिखा रही है। इस कविता की अभिव्यक्ति बहुत ही सहज है।

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  17. हताश-परेशान मेरे दस्तक ने

    बिना मेरी अनुमति के

    मेरी आँसुओं के चन्द कतरे

    तुम्हारी ड्योढी पर रखा था.

    चश्मदीदों ने बताया

    तुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो

    waah kya klhyal or kya bunai ..behad sindar.

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  18. आपकी अनुमति अपेक्षित है कविता को लिन्क कर दिया है
    यहां http://voi-2.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html

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  19. बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद

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  20. प्रथम पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति तक, परत दर परत अभिभूत करने वाली कविता.. किंतु एक त्रुटि खतक रही है लगातार.. आशा है क्षमा सहित कहने की अनुमति देंगेः
    आपने पूरी कविता में दस्तक को पुल्लिंग रूप में लिखा है जबकि यह शब्द स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होता है. हो सकता है यह मेरी भूल हो...

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  21. कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जो अपनी अभिव्यक्ति लगती है...पूरे एहसास अपने से लगे

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  22. बहुत सुन्दर भाव के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  23. सही!! बढ़िया
    आपने बहुत शानदार लिखा

    http://mydunali.blogspot.com/

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  24. बहुत सुंदर भाव लिये हुए लिखा गया है।

    मस्त, एकदम मस्त।

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  25. आपने तो कर बार की तरह निःशब्द कर दिया ...... ग़ज़ब की शानदार पोस्ट....

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  26. इस कमाल की सोच को सलाम सर..

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  27. यह हौसला

    दरवाजे का नहीं हो सकता

    वह उन दिनों

    तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.

    क्या बात है वर्मा जी. बहुत सुन्दर. इतने संजीदा भाव, इतनी खूबसूरती से कविता में उतारे है आपने कि तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास. ये पंक्तियां तो कमाल की हैं.

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  28. BHai ye dastak to sedhe dil ke darwaje par huyi hai

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  29. आपकी यह पोस्ट ... http://ghazal-geet.blogspot.com/2010/05/blog-post_24 चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  30. यह हौसला
    दरवाजे का नहीं हो सकता
    वह उन दिनों
    तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
    पूरी कविता ही अद्भुत भाव लिए हुआ है...बहुत ही सुन्दर नज़्म..

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  31. kaise likh lete hain aap itna gahra
    ....... dastak suni nahi ..... aansun ab sahejna nahi sialaab ban jaayega ...... ped avshoshit kar lenge
    aur sukh hi to pahunchana hai
    kis pankti ko kam kahun nahi pata

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  32. सुन्दर भाव बेहतरीन शब्द संयोजन. बेहतरीन अभिव्यक्ति हर बात दिल को छूती हुई दिल के करीब ले जाती है अहसासों से भरपूर प्रेमाहुती देने को तत्पर
    आभार

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  33. वत्स
    सफ़ल ब्लागर है।
    आशीर्वाद
    आचार्य जी

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  34. भेजा था मैनें,
    उस दिन एक दस्तक तुम्हारे दरवाजे के नाम
    और तुम्हारा दरवाजा अनसुना कर गया था;
    तभी तो
    खुलने से मना कर गया था.
    मुझे पता है यह हौसला दरवाजे का नहीं हो सकता
    वह उन दिनों तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
    शायद उसने यह बात तुमसे भी नहीं बतायी होगी हताश-परेशान मेरे दस्तक ने बिना मेरी अनुमति के मेरी आँसुओं के चन्द कतरे तुम्हारी ड्योढी पर रखे थे.
    चश्मदीदों ने बताया तुम उसे सहेजने की फ़िराक में हो
    आज फिर एक दस्तक तुम्हें चौकन्ना करने के लिये कि आँसुओं के उन चाँद कतरों को सहेजना मत,वो सैलाब बन जायेंगे.
    पड़े रहने देना तुम उन्हें वहीं ड्योढी पर सूरज की तपिश उन्हें भाप बना देगी, या फिर शायद तुम्हारे दरवाजे की ड्योढियों पर उगे पौधे की जड़ें अवशोषित कर लें.
    मेरे आँसुओं का मकसद
    तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है.

    अपनी इस कविता को मेरी नज़र से पढ़ कर देखें.आपकी कविता बहुत अच्छी है.

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  35. इतनी सुन्दर कविता कि दिल थाम के रह गया ...

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  36. बहुत बढ़िया कविता लिखी अंकल जी...
    _________________
    'पाखी की दुनिया' में ' अंडमान में आया भूकंप'

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  37. यह हौसला
    दरवाजे का नहीं हो सकता
    वह उन दिनों
    तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.

    ये शब्‍द दिल को छु गये, बेहतरीन रचना, प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  38. आँसुओं का मकसद तुम्हें ठंडक पहुँचाना ही तो है........बेहतरीन रचना, प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  39. क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।

    आइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !

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  40. दस्तक के मानवीकरण ने अभूतपूर्व अहसास भरी मार्मिकता पैदा कर दी है नए बिम्बों के साथ। बहुत-बहुत बधाई।

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  41. bahut bahut achha...agar ek baat ki tareef karni ho to yehi kahoonga ki har shabd har pankti kamaal ki lagti hai...

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  42. darwaja dastak aur aap
    accha hai

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  43. आपकी ये दस्तक तो काफी अच्छी लगी..कई बार दिल के करीब.

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  44. bahut gahre ehsaso ke motiyo se goontha hai is kavita ko jitni prashansa karu kam hai. aabhar.

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  45. बेहद स्तरीय और सशक्त रचना ... बहुत सुंदर

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  46. मैनें सहेज लिया है
    very good.

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  47. बहुत ही बढ़िया रचना बहुत पसंद आई यह शुक्रिया

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  48. चन्द शब्दों के द्वारा .. बहुत कुछ कह गए सर जी .बिंदास पोस्ट आभार...

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  49. सुन्दर अभिव्यक्ति !

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