मत करो प्रश्न
उत्तर नहीं पाओगे
और फिर निरुत्तर रहकर
ख़ुद ही पर झुंझलाओगे
प्रतिउत्तर में आएंगे
सैकड़ो प्रश्नों के जाल
और फिर तुम्हारा अस्तित्व ही
बन जाएगा एक सवाल
क्या हुआ गर प्रहरी सो गया
मत ढूढो गर तुम्हारा कुछ खो गया
बचा सको तो बचा लो
तुम्हारे पास जो कुछ बचा है
खोये को ढूढ़ते ढूढ़ते तुम
बचे को भी खो दोगे
अपने हालात पर फिर
फूट फूट कर रो दोगे
रुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
जब दिलासे की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले
नमक मल देंगे वे
गर दिखलाओगे छाले
अपने ज़ख्म मत दिखलाओ
उँगलियॉ बेचैन हैं
ज़ख्म कुरेदने वालों की
जो करना है करो
पर प्रश्न मत करो
उत्तर नहीं पाओगे
और फिर निरुत्तर रहकर
ख़ुद ही पर झुंझलाओगे
बहुत ही सुन्दर, मार्मिक और सठिक रचना ! हर एक शब्द दिल को छू गयी!
ReplyDeleteरुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासा की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.....प्रेरणाप्रद
उत्तम रचना...सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई ..नमस्कार चाचा जी
ReplyDeletewaah sahi kaha...zakhmo pe kahan koi marham lagata hai...kuredne waale hazaaro hai...
ReplyDeleteजो करना है करो
ReplyDeleteपर प्रश्न मत करो
उत्तर नहीं पाओगे
और फिर निरुत्तर रहकर
ख़ुद ही पर झुंझलाओगे
अरे वाह!
सवाल के साथ जवाब भी!
सुन्दर रचना!
बहुत सटीक रचना!
ReplyDelete...निरुत्तर ... अदभुत भाव ... सारगर्भित रचना!!!
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteरुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासा की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले
नमक मल देंगे वे
गर दिखलाओगे छाले
अपने ज़ख्म मत दिखलाओ
उँगलियॉ बेचैन हैं
ज़ख्म कुरेदने वाले
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !सच ही है कि यहाँ मानसिकता इस कदर बदल चुकी है कि किसी को तकलीफ हो तो लोगों को संवेदना के वजाय खुशी होती है ...
रुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासा की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले
behatareen
बचा सको तो बचा लो
ReplyDeleteतुम्हारे पास जो कुछ बचा है
खोये को ढूढ़ते ढूढ़ते तुम
बचे को भी खो दोगे
अपने हालात पर फिर
फूट फूट कर रो दोगे
वाह , क्या बात कही है ।
बढ़िया वर्मा जी ।
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय,
ReplyDeleteसुन अठलहियें लोग सब, बाँट न लहियें कोय ।
रहीमदास जी के बाद पहली बार यह भाव इतने सशक्त शब्दों में सुन रहा हूँ ।
अपने ज़ख्म मत दिखलाओ
ReplyDeleteउँगलियॉ बेचैन हैं
ज़ख्म कुरेदने वाले
बिलकुल सच...निज मन की व्यथा मन में ही रखनी ही बेहतर ....बहुत ही सुन्दर कविता
तुम्हारे पास जो कुछ बचा है
ReplyDeleteखोये को ढूढ़ते ढूढ़ते तुम
बचे को भी खो दोगे
अपने हालात पर फिर
फूट फूट कर रो दोगे
कमोवेश यही सच्चाई है.......
हम सब इसी जद्दोजहद में जी रहे हैं.....बहुत सुन्दर भावों को उकेरा है आपने.....!
सुन्दर , मन जैसे खुद से बातें कर रहा हो ।
ReplyDeleteजब दिलासा की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
माफ़ कीजियेगा , वर्मा जी , इन पंक्तियों को जब दिलासे की थपथपाहट मिले ...दर्द को बयां तब करो ..होना चाहिए ..शायद ?
ज़ख्म कुरेदने वाले ..ज़ख्म कुरेदने वालों की ..शायद आप यही कहना चाहते हैं ?
दर्द का बयां तब करो
ReplyDeleteजब संवेदना की आहट मिले
bahoot khoob dard badhta hi jata hai yoon dawa karne par.
अति उत्तम ओर सुंदर रचना धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteDERI SE AANE KI MAFI CHAHTA HOON
ReplyDeleteआपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
ReplyDeleteक्या बात है...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
sartahk aur chintan ko prerit kar rahi rachna... kuch achhe vimb bhi hai... kai saare sawal chhodti kavita..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवर्मा जी! आपका टिपणी पढकर (अलग अलग पोस्ट पर) जो आपका बारे में हम राय बनाए थे, ऊ आज आपका कबिता पढ़कर और मजबूत हो गया... वास्तविकता से भरपूर है आपका कबिता.. रहीम का दोहा याद आ गया..
ReplyDeleteरहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय
सुन इठलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय.
बहुत भावपूर्ण है ये भी.. सच है जख्म कुरेदने को फिरती है दुनिया..
ReplyDeleteरुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासे की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले
नमक मल देंगे वे
गर दिखलाओगे छाले
अपने ज़ख्म मत दिखलाओ
उँगलियॉ बेचैन हैं
ज़ख्म कुरेदने वालों की
aapki kavita ko maine jaane kitni baar padha..... bahut hi satik likha hai aapne.....
रुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासे की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले ..
बहुत ही लाजवाब ... सच है जब इंसान कुछ कर नही पाता खुद पर ही झुंझलाता रहता है .... सटीक ....
रुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासे की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले !!!
कितना सही कहा आपने....
बहुत ही सार्थक सुन्दर मनमोहक रचना...
bahu hi sundar shadon ka prayoog kiy hai..
ReplyDeleteरुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासा की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले
dil ko sparsh kar gaye shabd saare ati uttam
मर्म स्पर्शी रचना
ReplyDeleteसच तो सच ही है
ReplyDeleteलिस्ट में अभी बहुत कुछ डालना है...
ReplyDelete_________________
'पाखी की दुनिया' में 'सपने में आई परी' !!
Zazbat......
ReplyDeleteBahut achee rachna hai.
Dil ko choo lene vali.
Hadeep
pooree kavita bahut sashakt abhivykti hai ...........
ReplyDeletejindgee aise hee chaltee rahatee hai kabhee ghisattee kabhee thamtee aur kabhee lahratee..............
जो करना है करो
ReplyDeleteपर प्रश्न मत करो
उत्तर नहीं पाओगे
और फिर निरुत्तर रहकर
ख़ुद ही पर झुंझलाओगे......
सुन्दर रचना........
अपने जख्म दिखाओगे तो और अकेले रह जाओगे ...!
ReplyDeleteनमक मल देंगे वे
ReplyDeleteगर दिखलाओगे छाले
अपने ज़ख्म मत दिखलाओ
उँगलियॉ बेचैन हैं
ज़ख्म कुरेदने वालों की
कितनी गहरी बात कह दी।
रुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
ReplyDeleteजब दिलासे की थपथपाहट मिले
दर्द का बयां तब करो
जब संवेदना की आहट मिले ... per kabhi kabhi ... nahi kai baar akulahat me aahten dhokha ker jati hai , aur yah bhi yaad nahin rahta ki suni ithlaihen log sab baant na laihen koi
Great post. Check my website on hindi stories at afsaana
ReplyDelete. Thanks!