श्मशानी सफर और लोहबानी गन्ध
जिन्दगी के लिये मौत से अनुबन्ध
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रिसते हुए रिश्तों की खुलती है गाँठ
पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध
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सपने परोस दिया और क्या चाहिए
सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
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खोने को कुछ नहीं बेफ़िक्र हो जा
आज के भोजन का कर लो प्रबन्ध
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वहशीपन का दबदबा, शिकायत क्यूँ
तुमने ही तो चुना था उष्णकटिबन्ध
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निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
हमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
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सवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा
आज फिर करना है नया अनुबन्ध
वाह क्या खूब ! बहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...
सपने परोस दिया और क्या चाहिए
सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
सवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा
ReplyDeleteआज फिर करना है नया अनुबन्ध
आज की आपकी रचना तो मेरे मन को भा गई!
बहुत खूब वर्मा जी..एक बेहतरीन ग़ज़ल..समाज की सच्चाई को प्रस्तुत करती हुई....आभार
ReplyDeleteजबरदस्त भाई..गजब कर दिया. बहुत खूब!
ReplyDeleteनिर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
ReplyDeleteहमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
.... अदभुत ... बेहद प्रसंशनीय !!!
achhi rachna hai bhai...sadhuwad..
ReplyDeleteसपने परोस दिया और क्या चाहिए
ReplyDeleteसच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
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Behtareen Verma Sahaab !
सपने परोस दिया और क्या चाहिए
ReplyDeleteसच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
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Behtareen Verma Sahaab !
रिसते हुए रिश्तों की खुलती है गाँठ
ReplyDeleteपंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध...
तभी तो इतने वर्षों में भी गरीबी नहीं मिट सकी ...
निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
हमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
सहज भाव से स्वीकार कौन कर सकता है ...
खोने को कुछ नहीं बेफ़िक्र हो जा
ReplyDeleteआज के भोजन का कर लो प्रबन्ध
बेहतरीन
आम आदमी की कहानी है ये तो
विचारणीय रचना सार्थक सवाल /
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteधन्यवाद.
सुन्दर, सपाट व प्रभावी बातें ।
ReplyDeleteअच्छे ढंग से लिखी अच्छी रचना .....सम्पूर्ण रचना प्रभावशाली .....कुछ पंक्तिया लाजवाब
ReplyDeleteसपने परोस दिया और क्या चाहिए
ReplyDeleteसच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
सहज भाव से निकली एक सुन्दर अभिव्यक्ति....ये रचना बहुत कुछ कहती है...
शीर्षक ने ही मार डाला था..........
ReplyDeleteहाय............उम्दा रचना..........
निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
ReplyDeleteहमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
Jo boya,wo paya,
Gehun ke saath ghun bhi pisaya..
आपकी ग़ज़ल तो बहुत बढ़िया है..बधाई हो अंकल जी.
ReplyDelete..यहाँ अंडमान में तो खूब बारिश हो रही है. भीगने का मजा ले रही हूँ.
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'पाखी की दुनिया' में आज मेरी ड्राइंग देखें...
समाज की सच्चाई को प्रस्तुत करती हुई....आभार
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
ReplyDeleteवाह वर्मा जी ... कमाल की ग़ज़ल है ... हिन्दी भाषा में लिखी ये ग़ज़ब की ग़ज़ल ... हर शेर नवीनता लिए हुवे ...
ReplyDeleteसवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा
ReplyDeleteआज फिर करना है नया अनुबन्ध
बेहद उम्दा प्रस्तुति…………भावों को सुन्दरता से सहेजा है।
"पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर रचना....
wah sir....badhiya likha hai aapne!
ReplyDeleteस्वप्निल कुमार 'आतिश' said
ReplyDeleteMay 17, 2010 2:56 PM
श्मशानी सफर और लोहबानी गन्ध
जिन्दगी के लिये मौत से अनुबन्ध
shandar matla ...behad khubsurat
वहशीपन का दबदबा, शिकायत क्यूँ
तुमने ही तो चुना था उष्णकटिबन्ध
waaaaaaaahhhhhhhhhhh
mere hisaab se baith-ul-ghazal..kya shandsar sher hai ...
in total achhi ghazal kahi aapne...
कविता रावत
ReplyDeleteMay 17, 2010 5:11 PM said
रिसते हुए रिश्तों की खुलती है गाँठ
पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध
सपने परोस दिया और क्या चाहिए
सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
....... यथार्थपूर्ण सार्थक प्रस्तुति और
ब्लागिंग का एक बर्ष पूरा होने पर हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत खूब कहा है सर जी आपने
ReplyDeleteलाजवाब
कड़ा प्रहार
खोने को कुछ नहीं बेफ़िक्र हो जा
ReplyDeleteआज के भोजन का कर लो प्रबन्ध ॥
अतिसुन्दर!
निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
ReplyDeleteहमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
सच्चाई और बस सच्चाई ।
बहुत सुंदर वर्मा जी आप की यह गजल.
ReplyDeleteधन्यवाद
क्या कठिन रदीफ़ पर काफ़िया बैठाया है...
ReplyDeleteवाकई मुश्किल ज़मीन पर एक सहज ग़ज़ल...
शब्दों के बड़े अच्छे तालमेल से लिखी गई रचना । सुन्दर.....
ReplyDeleteरचना मन को भा गई.... बहुत अच्छी लगी.... और टेम्पलेट तो बहुत ही सुंदर है... टेम्पलेट भी मन को छू गया...
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ पढने के बाद रचना तथा भाव सौन्दर्यरा में मन ऐसे विमुग्ध हो जाया करता है कि कुछ कहने को शब्द ही नहीं ढूंढ पाती...
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध करती तथा झकझोरती बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना...
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ReplyDeleteसार्थक व्यंग्य। धारदार रचना।
ReplyDelete--------
क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
वाह जनाब, इस बार तो तेवर ही बदले हुए हैं. मैं तो बिलकुल स्तब्ध रह गया. बहुत मेहनत की है आपने इस रचना पर. मुझे तो नजर आ रहा है.
ReplyDeleteऐसी रचनाएँ लिखकर किसे पछाड़ने का इरादा है भाई?
जो करना है करो
ReplyDeleteपर प्रश्न मत करो
उत्तर नहीं पाओगे
और फिर निरुत्तर रहकर
ख़ुद ही पर झुंझलाओगे
...बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति..बधाई.
सवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा
ReplyDeleteआज फिर करना है नया अनुबन्ध.....
बहुत सुन्दर रचना ...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...