Monday, May 17, 2010

पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध ~



श्मशानी सफर और लोहबानी गन्ध
जिन्दगी के लिये मौत से अनुबन्ध
.
रिसते हुए रिश्तों की खुलती है गाँठ
पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध
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सपने परोस दिया और क्या चाहिए
सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
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खोने को कुछ नहीं बेफ़िक्र हो जा
आज के भोजन का कर लो प्रबन्ध
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वहशीपन का दबदबा, शिकायत क्यूँ
तुमने ही तो चुना था उष्णकटिबन्ध
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निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
हमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
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सवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा
आज फिर करना है नया अनुबन्ध

40 comments:

  1. वाह क्या खूब ! बहुत सुन्दर रचना ...
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...
    सपने परोस दिया और क्या चाहिए
    सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध

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  2. सवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा
    आज फिर करना है नया अनुबन्ध

    आज की आपकी रचना तो मेरे मन को भा गई!

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  3. बहुत खूब वर्मा जी..एक बेहतरीन ग़ज़ल..समाज की सच्चाई को प्रस्तुत करती हुई....आभार

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  4. जबरदस्त भाई..गजब कर दिया. बहुत खूब!

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  5. निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
    हमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
    .... अदभुत ... बेहद प्रसंशनीय !!!

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  6. सपने परोस दिया और क्या चाहिए

    सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध

    .
    Behtareen Verma Sahaab !

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  7. सपने परोस दिया और क्या चाहिए

    सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध

    .
    Behtareen Verma Sahaab !

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  8. रिसते हुए रिश्तों की खुलती है गाँठ

    पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध...

    तभी तो इतने वर्षों में भी गरीबी नहीं मिट सकी ...

    निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो

    हमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध

    सहज भाव से स्वीकार कौन कर सकता है ...

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  9. खोने को कुछ नहीं बेफ़िक्र हो जा
    आज के भोजन का कर लो प्रबन्ध
    बेहतरीन
    आम आदमी की कहानी है ये तो

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  10. विचारणीय रचना सार्थक सवाल /

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  11. सुन्दर, सपाट व प्रभावी बातें ।

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  12. अच्छे ढंग से लिखी अच्छी रचना .....सम्पूर्ण रचना प्रभावशाली .....कुछ पंक्तिया लाजवाब

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  13. सपने परोस दिया और क्या चाहिए

    सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध


    सहज भाव से निकली एक सुन्दर अभिव्यक्ति....ये रचना बहुत कुछ कहती है...

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  14. शीर्षक ने ही मार डाला था..........

    हाय............उम्दा रचना..........

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  15. निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो

    हमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध
    Jo boya,wo paya,
    Gehun ke saath ghun bhi pisaya..

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  16. आपकी ग़ज़ल तो बहुत बढ़िया है..बधाई हो अंकल जी.
    ..यहाँ अंडमान में तो खूब बारिश हो रही है. भीगने का मजा ले रही हूँ.

    _______________
    'पाखी की दुनिया' में आज मेरी ड्राइंग देखें...

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  17. समाज की सच्चाई को प्रस्तुत करती हुई....आभार

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  18. हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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  19. वाह वर्मा जी ... कमाल की ग़ज़ल है ... हिन्दी भाषा में लिखी ये ग़ज़ब की ग़ज़ल ... हर शेर नवीनता लिए हुवे ...

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  20. सवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा

    आज फिर करना है नया अनुबन्ध
    बेहद उम्दा प्रस्तुति…………भावों को सुन्दरता से सहेजा है।

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  21. "पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध

    वाह ! बहुत सुंदर रचना....

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  22. wah sir....badhiya likha hai aapne!

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  23. स्वप्निल कुमार 'आतिश' said
    May 17, 2010 2:56 PM
    श्मशानी सफर और लोहबानी गन्ध
    जिन्दगी के लिये मौत से अनुबन्ध

    shandar matla ...behad khubsurat


    वहशीपन का दबदबा, शिकायत क्यूँ

    तुमने ही तो चुना था उष्णकटिबन्ध

    waaaaaaaahhhhhhhhhhh

    mere hisaab se baith-ul-ghazal..kya shandsar sher hai ...

    in total achhi ghazal kahi aapne...

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  24. कविता रावत
    May 17, 2010 5:11 PM said
    रिसते हुए रिश्तों की खुलती है गाँठ
    पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध
    सपने परोस दिया और क्या चाहिए
    सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
    ....... यथार्थपूर्ण सार्थक प्रस्तुति और
    ब्लागिंग का एक बर्ष पूरा होने पर हार्दिक शुभकामनाएँ

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  25. बहुत खूब कहा है सर जी आपने
    लाजवाब
    कड़ा प्रहार

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  26. खोने को कुछ नहीं बेफ़िक्र हो जा

    आज के भोजन का कर लो प्रबन्ध ॥
    अतिसुन्दर!

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  27. निर्गन्धी फूल देख असहज़ क्यूँ हो
    हमने ही तो चुराया है इनकी गन्ध

    सच्चाई और बस सच्चाई ।

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  28. बहुत सुंदर वर्मा जी आप की यह गजल.
    धन्यवाद

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  29. क्या कठिन रदीफ़ पर काफ़िया बैठाया है...
    वाकई मुश्किल ज़मीन पर एक सहज ग़ज़ल...

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  30. शब्दों के बड़े अच्छे तालमेल से लिखी गई रचना । सुन्दर.....

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  31. रचना मन को भा गई.... बहुत अच्छी लगी.... और टेम्पलेट तो बहुत ही सुंदर है... टेम्पलेट भी मन को छू गया...

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  32. आपकी रचनाएँ पढने के बाद रचना तथा भाव सौन्दर्यरा में मन ऐसे विमुग्ध हो जाया करता है कि कुछ कहने को शब्द ही नहीं ढूंढ पाती...

    मंत्रमुग्ध करती तथा झकझोरती बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना...

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  35. वाह जनाब, इस बार तो तेवर ही बदले हुए हैं. मैं तो बिलकुल स्तब्ध रह गया. बहुत मेहनत की है आपने इस रचना पर. मुझे तो नजर आ रहा है.
    ऐसी रचनाएँ लिखकर किसे पछाड़ने का इरादा है भाई?

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  36. जो करना है करो
    पर प्रश्न मत करो
    उत्तर नहीं पाओगे
    और फिर निरुत्तर रहकर
    ख़ुद ही पर झुंझलाओगे

    ...बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति..बधाई.

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  37. सवालिया निगाहों को फेर लो ज़रा
    आज फिर करना है नया अनुबन्ध.....

    बहुत सुन्दर रचना ...
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...

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