एक–दो–तीन
अपनी रोटी छीन
.
बाजुएँ उठा
क्यूँ है तूँ दीन
.
बिखर गये हैं
फिर से उनको बीन
.
नज़रें तूँ खोल
मत हो इतना लीन
.
खिसकने न दे
पैरों तले की जमीन
.
सच्चाई देख
तुम भी हो ज़हीन
.
सुलझाओ उलझन
मन ना कर मलीन
.
नागों के दंश
उठा लो अपनी बीन
.
एक–दो–तीन
अपनी रोटी छीन
यूँ तो मिलने से रहा हक...अब छीनना ही होगा.
ReplyDeleteबढ़िया रचना.
बहुत बढ़िया ... छोटी छोटी पंक्तियों से बड़ी बड़ी बातें !
ReplyDeleteवाकई में हक तो अब छीनना ही पड़ेगा.... दो लाइना में बहुत सुंदर कविता....
ReplyDeleteबिखर गये हैं
ReplyDeleteफिर से उनको बीन
बहुत अच्छे,
लाजवाब! बेहतरीन!!
शब्दों की कंजूसी पर भावों की दरियादिली
ReplyDeleteshandar naujavano ki aaj ki sthti ko dekhte hue likhi gyiiiii rachna
ReplyDeleteनागों के दंश
ReplyDeleteउठा लो अपनी बीन ..
Hameshaki tarah gazab dhaya hai!
बढिया है... हम मांगे मिलता नहीं छीन सके तो छीन....
ReplyDeleteनए अंदाज़ में बढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteहक़ तो ऐसे ही मिलता है।
छोटी बंदिश में एक बड़ी रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन...
bada badhiya tuktak sirji...
ReplyDeleteवो दिन दुर नही....
ReplyDelete.... बेहतरीन व प्रसंशनीय रचना !!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना...सन्देश देती हुई...छोटी छोटी पंक्तियों में गज़ब की प्रस्तुति है
ReplyDeleteaaj ka sach he ye
ReplyDeletebahtrin
bahut badhai
shekhar kumawat
इसे कहते हैं रचना।
ReplyDeleteरोटियों की संख्या बढ़ भी सकती है। एक-दो तीन चार, अपनी रोटी गिन यार।
श्रेष्ठ सीपिकाएँ!
ReplyDeleteसच्चाई देख
ReplyDeleteतुम भी हो ज़हीन
बेहतरीन व प्रसंशनीय रचना ...............
.
sundar sandesh.
ReplyDeleteएक बेहतरीन रचना
ReplyDeleteकाबिले तारीफ़ शव्द संयोजन
बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति
सुन्दर भावाव्यक्ति .साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteयही ज्योति जलाते चलो भाई जी ! शुभकामनायें
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी पंक्तियाँ, सच तो यही है .यही है आज के जीवन का यथार्थ
ReplyDeleteएक दो तीन ...अपनी रोटी छीन ...
ReplyDeleteएक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही है ...
जिंदगी भीख में नहीं मिलती ...
अपना हक संगदिल ज़माने से छीन पो तो कोई बात बने ...!!
बहुत ही लाजवाब ... छोटे छोटे बँध में बाँध कर लंबी बात कह दी है वर्मा जी ....
ReplyDeleteachha prayog hai ..teesre couplette me.. :been " jaise anchalik shabd ka prayog achha laga
ReplyDeleteek do teen ,mehnat majduri kar apni
ReplyDeleteroti kama
एक–दो–तीन
ReplyDeleteअपनी रोटी छीन
...लाजवाब! बेहतरीन!!
'एक–दो–तीन
ReplyDeleteअपनी रोटी छीन '
- बिन मांगे मां भी अपनी संतान को दूध नहीं पिलाती.
बहुत सुंदर कविता ! हमारे देश से भूखमरी कब जाएगी !कमाल की भाषा है गोली की तरह छूटने के बाद सीधे मर्म पर लगती है ! आभार !
ReplyDeletesara chakkar roti kaa hi hai ....hame bhi usaki bhookh hai
ReplyDeletehttp://athaah.blogspot.com/
रजिया जी के शब्दों को दोहराऊॅगा-
ReplyDeleteशब्दों की कंजूसी पर भावों की दरियादिली
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...अंतर्मन के भाव !!
ReplyDelete____________________
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com
Lajawaab kar diya
ReplyDeleteएक–दो–तीन
ReplyDeleteअपनी रोटी छीन
बाजुएँ उठा
क्यूँ है तूँ दीन
..घुटकर, शोषित पीड़ित बनकर जीना भी क्या जीना ..
अपने अन्दर की शक्ति को पहचान कर अपनी दीनता त्याग कर मुशिबतों का डटकर सामना करने की प्रभावशाली प्रस्तुति .......
हार्दिक शुभकामनाएँ
वाह कमाल कविता.... बधाई.
ReplyDeleteइतनी कम पंक्तियों में इतनी गहरी बात...बहुत खूब
ReplyDeleteजागो.....
ReplyDeleteस्पष्ट सन्देश!
साधुवाद!
kam shabdon men kafi kuchh kah dia aapne.
ReplyDeletebadhiya rachna.
pahli baar aap ke blog par aaya hun par maja pura paya hun. badiya.
ReplyDeleteअच्छी अलख जगाई आपने इस कविता के माध्यम से।
ReplyDeleteबढ़िया रचना...
ReplyDeleteEk iltija hai..Apne blog,"Simte Lamhen" pe maine ek dil dahlane wali aap beeti post kee hai..matru diwas ke awsarpe...aap gar padhen to khushi hogi..
ReplyDeletenirashaa ko todti hui rachna .sundar
ReplyDeleteकम लफ्जों में बहुत गहरी बात का दी है आपने ..बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ही सरल ढंग से जीवन के सत्य को उद्घाटित कर दिया आपने। बधाई।
ReplyDelete--------
बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?