Friday, April 16, 2010

चमक अन्धेरों की ~~

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हाँ देखा है मैनें

धुन्धलाते उजाले;

चमक अन्धेरों की

कौतूहल, जिज्ञासा

आंसू और दिलासा

जानता है पर

मानता कौन है !!

राजनीति के रिश्ते

रिश्तों की राजनीति

मजहब, सम्प्रदाय

चुस्कियाँ और चाय

भागते दिन

ठहरती रात

शुरू भी नहीं होती कि

खत्म हो जाती बात

दिखने को

खून के रिश्ते

पर पल पल

रिश्तों का खून

चमचमाते खंजर

श्मशानी मंजर

आस्तीन के साँप

साँपों के दंश

पलांश में मिटते

वंश के वंश

जमीं पर पांव

पांव में छाले

हाँ देखा है मैने

धुन्धलाते उजाले !

30 comments:

  1. आस्तीन के साँप
    साँपों के दंश
    पलांश में मिटते
    वंश के वंश

    आँखों ने देख लिए बहुत ऐसे मंजर ....

    जमीं पर पांव
    पांव में छाले
    हाँ देखा है मैने
    धुन्धलाते उजाले !

    उजालों पर मायूसियों की धुन्ध गहराई ...
    जल्दी ही यह अँधेरा छंटे ...

    अच्छी कविता ...आभार ....!!

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  2. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. जमीं पर पांव

    पांव में छाले

    हाँ देखा है मैने

    धुन्धलाते उजाले

    -गजब वर्मा जी..बहुत खूब!!

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  4. भागते दिन
    ठहरती रात
    शुरू भी नहीं होती कि
    खत्म हो जाती बात

    शब्द शब्द गहराई, बहुत उम्दा रचना

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  5. राजनीति के रिश्ते
    रिश्तों की राजनीति
    मजहब, सम्प्रदाय
    चुस्कियाँ और चाय

    बहुत सुन्दर कविता है ! बधाई ! शब्दों के खेल में तो आप माहिर खिलाडी हैं ही, जज़्बात को भी क्या खूब पिरोये हैं कविता में !

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  6. राजनीति के रिश्ते
    रिश्तों की राजनीति
    ...बहुत खूब, प्रसंशनीय रचना !!!

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  7. waah verma ji sach kah dala kuch panktiyon me hi...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  8. धुँधलाते उजाले का
    बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने!

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  9. बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  10. राजनीति के रिश्ते

    रिश्तों की राजनीति

    सच आज हर रिश्ते में राजनीति हो रही है..

    बहुत गज़ब कि है ये धुंधलाते उजाले

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  11. दिखने को

    खून के रिश्ते

    पर पल पल

    रिश्तों का खून
    क्या बात है! ग़ज़ब की अभिव्यक्ति!!

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  12. रिश्तों का खून

    चमचमाते खंजर

    श्मशानी मंजर

    आस्तीन के साँप

    साँपों के दंश

    पलांश में मिटते

    वंश के वंश

    जमीं पर पांव

    पांव में छाले

    हाँ देखा है मैने
    haan dekha hai

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  13. राजनीति के रिश्ते रिश्तों की राजनीति मजहब, सम्प्रदाय चुस्कियाँ और चाय भागते दिन ठहरती रात शुरू भी नहीं होती कि खत्म हो जाती बात दिखने को खून के रिश्ते पर पल पल रिश्तों का खून चमचमाते खंजर श्मशानी मंजर.......

    क्या बात है....खूब कही ....बढ़िया रचना..धन्यवाद वर्मा जी

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  14. जमीं पर पांव

    पांव में छाले

    हाँ देखा है मैने

    धुन्धलाते उजाले !!!!

    अंतर्मन के गहरे भाव को अभिव्यक्त करती कविता !

    उजला दिखने वाला उजला ही नही होता ! आभार !!

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  15. गहरे भाव उड़ेलती रचना ।

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  16. पसंद आई आपकी लिखी यह रचना शुक्रिया

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  17. शब्दों का प्रयोगात्मक उपयोग बढ़िया लग रहा है । सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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  18. शब्दों का प्रयोगात्मक उपयोग बढ़िया लग रहा है । सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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  19. शब्दों का प्रयोगात्मक उपयोग बढ़िया लग रहा है । सुन्दर भावपूर्ण रचना।

    ReplyDelete
  20. शब्दों का प्रयोगात्मक उपयोग बढ़िया लग रहा है । सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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  21. अच्छा लिखते हैं आप

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  22. पलांश में मिटते

    वंश के वंश

    जमीं पर पांव

    पांव में छाले

    हाँ देखा है मैने

    धुन्धलाते उजाले !
    bahut hi shaandaar ,har shabd laazwaab ,gazab ki rachna hai ye ,behad pasand aai .

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  23. भई वाह...
    क्या खूब लिखा....

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  24. गहरी संवेदनाएँ लिए ... शशक्त रचना ... लाजवाब बिंब ....

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  25. रिश्तों का खून
    चमचमाते खंजर
    श्मशानी मंजर
    आस्तीन के साँप
    साँपों के दंश
    पलांश में मिटते
    वंश के वंश
    जमीं पर पांव
    पांव में छाले
    हाँ देखा है मैने
    ...bahut gambhir bhavpurn rachna..
    Haardik shubhkamna

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  26. रिश्तों का खून
    चमचमाते खंजर
    श्मशानी मंजर
    आस्तीन के साँप
    साँपों के दंश
    पलांश में मिटते

    जी ....हम इन्हीं खंजर खून और दंश के बीच ही तो जीना सीखते हैं ......!!

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  27. कविता या नदी का प्रवाह. शब्द या सत्य की अग्नि. भाव या मनोविश्लेषण. कमाल कर दिया. इतनी धीमी रफ्तार से कविता दिमाग में दाखिल होती है कि शुरू में तो पता ही नहीं चलता. आधी होने के बाद जब एहसास होता है तो दुबारा, नए सिरे से पढ़ना आरम्भ होता है. कविता समाप्त होने के बाद एक बार फिर पढ़ने को उद्वेलित कर देती है.
    आखिर में यही सोचना पड़ता है कि ऐसा मैं कब लिख सकूंगा.

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  28. कुछ तो बाकी छोड़ जाते..अगली बार के लिए, और कुछ हमारे लिए।

    श्रीमान एम वर्मा जी ने जज्बाती होकर बहुत कुछ कह दिया।

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  29. shrimaan ji aapki apni ek kahaani rakho, makaan bikne wala hai, chamak andheron ki rachnaayein kaafi achhi hai.

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