Sunday, January 10, 2010

नीला पड़ गया है शरीर ~~


****


परिन्दे यूँ ही नहीं चिल्ला रहे होंगे,


गिद्धों के काफ़िले नज़र आ रहे होंगे.


.



सिहर रही है शाखों की फुनगियाँ


लोग बेवजह पत्थर चला रहे होंगे.


.



नीला पड़ गया है शरीर इसका तो


यकीनन लोग ज़हर पिला रहे होंगे.


.image



बेरहमी से जिसने घायल किया है


वही अब दिलासा दिला रहे होंगे.


.



पत्थर भी तो दिख रहे है खौफ़जदा


संगतराशों को इर्द-गिर्द पा रहे होंगे.


.



यूँ ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते


इनकी जड़ों को कीड़े खा रहे होंगे.


.



ताश की महल सा हिलता है मकाँ


नींव को कुछ लोग हिला रहे होंगे

29 comments:

  1. पत्थर भी तो दिख रहे है खौफ़जदा
    संगतराशों को इर्द-गिर्द पा रहे होंगे

    वहुत बढ़िया!

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  2. यूं ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते
    इनकी जड़ों को कीड़े खा रहे होंगे.

    बहुत खूब .

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  3. बेरहमी से जिसने घायल किया----- और
    यूं ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते-----
    बहुत ही लाजाव रचना है बधाई

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  4. यूँ ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते इनकी जड़ों को कीड़े खा रहे होंगे. .

    सबसे बड़ा कीड़ा तो इंसान ही है, जो पर्यावरण को नष्ट किये जा रहा है।
    अच्छी रचना। आज ज़रा हमें भी दर्शन दें। कुछ अलग मिलेगा।

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  5. बेरहमी से जिसने घायल किया है वही अब दिलासा दिला रहे होंगे.

    बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ .... बहुत लाजवाब रचना....

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, खूबसूरत रचना

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  7. पत्थर हैं खौफज़दा ........ इसे समझना आम बात नहीं

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  8. नीला पड़ गया है शरीर इसका तो

    यकीनन लोग ज़हर पिला रहे होंगे.
    बहुत अच्छी रचना लिखी आप ने

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  9. har sher ek kahani kah raha hai.............kin shabdon mein tarif karoon.

    यूँ ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते
    इनकी जड़ों को कीड़े खा रहे होंगे
    ताश की महल सा हिलता है मकाँ
    नींव को कुछ लोग हिला रहे होंगे

    kya khoob likha hai ...........bejod.

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  10. यकीनन बहुत अच्छी गजल। दुष्यंत कुमार की याद हो आई।

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  11. नीला पड़ गया है शरीर इसका तो
    यकीनन लोग ज़हर पिला रहे होंगे....

    लाजवाब ग़ज़ल है वर्मा जी .......... हर शेर दास्तान लिए हुवे है ......... शशक्त .........
    लोगों का काम तो ज़हर पिलाना ही है ...... पर मज़ा शंकर बनने में ही है ..........

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  12. बेहतरीन ग़ज़ल...
    ज्ञानदत्त जी ने सही कहा...
    दुश्यंत सी रवानी के साथ...

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  13. ek ek sher mano kataaksh karta hua. bahut acchhi rachna.badhayi.

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  14. हर एक शेर लाजवाब है । बहुत ही सुंदर गजल कही है आपने ।

    ताश की महल सा हिलता है मकाँ
    नींव को कुछ लोग हिला रहे होंगे

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  15. यूं ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते
    इनकी जड़ों को कीड़े खा रहे होंगे.

    हर पंक्ति अपने साथ जाने कितनी सच्‍चाईयां समेटे हुये, बहुत ही अनुपम प्रस्‍तुति, आभार ।

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  16. नीला पड़ गया है शरीर इसका तो

    यकीनन लोग ज़हर पिला रहे होंगे.

    waah zabardast rachnaa!!! ninw ko hilaa rahe hain tabhi makaan hil raha hai!!!

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  17. बहुत अच्छी रचना.....

    ताश की महल सा हिलता है मकाँ

    नींव को कुछ लोग हिला रहे होंगे

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  18. बेहतरीन कविता या गजल वर्मा जी, लेकिन एक सजेशन भी ; इसमें से आप "होंगे " शब्द निकाल दे तो रचना और प्रभावशाली बन जायेगी ! जैसे मसलन रचना की पहली लाइन है "परिंदे यूँ ही नहीं चिल्ला रहे होंगे " इससे Future Tense का बोध होता है जबकि "सिहर रही है साखो फुनगियाँ " में Present tense का

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  19. परि‍न्‍दे यूं ही नहीं चि‍ल्‍ला रहे होंगे, बाज के दीदे नजर आ रहे होंगे... बड़ी खूबसूरती से भय बयान करता है।

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  20. हमेशा की तरह आपने बेहद ख़ूबसूरत रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है!

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  21. बहुत खूबसूरत काविश है . हर लफ्ज़, हर शे'र दिल को छूता हुआ लगा. श्री गोदियाल जी की बात भी सही है. ख़ासकर ग़ज़ल के एक ही शे'र में काल, क्रिया, वचन का ध्यान रखने से तग़ज़्ज़ुल में बहुत निखार आ जाता है. आपके तख़य्युल का तो वाक़ई जवाब नहीं.
    साधुवाद.
    महावीर शर्मा

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  22. गिद्धों के काफ़िले नज़र आ रहे होंगे. . सिहर रही है शाखों की फुनगियाँ लोग बेवजह पत्थर चला रहे होंगे. .
    अति उत्तम कभी आश्रम में आओ वत्स

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  23. गिद्धों के काफ़िले नज़र आ रहे होंगे. . सिहर रही है शाखों की फुनगियाँ लोग बेवजह पत्थर चला रहे होंगे. .
    अति उत्तम कभी आश्रम में आओ वत्स

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  24. यूं ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते
    इनकी जड़ों को कीड़े खा रहे होंगे.
    bahut badiya...kya baat hai :)

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  25. वर्मा जी,

    वैसे तो हर शेर उम्दा बना है किन्तु कुछ तो बेजोड़ हैं जैसे

    "बेरहमी से जिसने घायल किया है
    वही अब दिलासा दिला रहे होंगे. "

    पत्थर भी तो दिख रहे है खौफ़जदा संगतराशों को इर्द-गिर्द पा रहे होंगे


    वाह. सुन्दर ग़ज़ल है

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  26. लाजवाब ग़ज़ल है वर्मा जी .......... हर शेर दास्तान लिए हुवे है ......... शशक्त .........

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  27. यूं ही नहीं गिरते पेड़ों के हरे पत्ते
    इनकी जड़ों को कीड़े खा रहे होंगे.

    ahaaaaaaa



    ताश की महल सा हिलता है मकाँ
    नींव को कुछ लोग हिला रहे होंगे

    kya sher kahe hain
    bas man khush ho gaya
    likhte rahe
    likhte rahe bas likhte rahe

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  28. सिहर रही है शाखों की फुनगियाँ

    लोग बेवजह पत्थर चला रहे होंगे.
    Yahi nahi,saaree panktiyan dohrayi ja sakti hain...kya gazab pratibha payi hai aapne!

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