बहुरूपिये खयाल हैं
फेंकते जाल हैं
.
ज़मीर बेच दिया
अब ये मालामाल हैं
.
रोटियाँ उदास हैं
रूठ गये दाल हैं
.
फुसफुसा रहे दरख़्त
गहरी कोई चाल है
.
डूब गये खेत-घर
सूख गये ताल हैं
.
बेअसर हर बात से
बहुत मोटी खाल है
.
इंसान की फितरत
अनसुलझा सवाल है
~~
ज़मीर बेच दिया
ReplyDeleteअब ये मालामाल हैं
वर्मा जी बहुत ही सुंदर कविता ओर सच से भरपुर.
धन्यवाद
ज़मीर बेच दिया
ReplyDeleteअब ये मालामाल हैं .
वाह वर्मा जी, सही व्यंग कसा है।
सामयिक रचना।
दीवाना आदमी को बनाती है रोटियां
ReplyDeleteअब चांद पर भी नज़र आती है रोटियां
ज़मीर बेच दिया अब ये मालामाल हैं . रोटियाँ उदास हैं रूठ गये दाल हैं .
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर और सामयिक रचना....
इंसान की फितरत अनसुलझा सवाल है
ReplyDeletesirf ek shabd-----------umda.
सूरज ज़रा, आ पास आ
ReplyDeleteआज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ
चूल्हा है ठंडा पड़ा
और पेट में आग़ है
गर्मागर्म रोटियां
कितना हसीं ख्वाब है
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम...
जय हिंद...
shukria'
ReplyDeletedil ko sparsh kar gayin ......rotiyan aur sparsh.
आपने बहुत ही सुन्दरता से सच्चाई को बयान करते हुए उम्दा रचना लिखा है! बहुत अच्छी लगी आपकी ये शानदार रचना !
ReplyDeleteवर्मा जी ,
ReplyDeleteबड़ा साधा हुआ व्यंग है..मजा आ गया...पूरी की पूरी कविता दिल को भा गयी है...साधू !
बहुत करारा प्रहार है जी!
ReplyDeleteजिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है।
साज और संगीत, रोटी में छिपा है।।
रोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब,
रोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब।
कीमती सोना व चाँदी, तब तलक,
रोटियाँ संसार में हैं, जब तलक।
खेत और खलिहान सुन्दर, तब तलक,
रोटियाँ उनमें छिपी हों, जब तलक।
झूठ, मक्कारी, फरेबी, रोटियों के रास्ते हैं,
एकता और भाईचारे, रोटियों के वास्ते हैं।
हम सभी यह जानते है, रोटियाँ इस देश में हैं,
रोटियाँ हर वेश में है, रोटियाँ परिवेश में है।
रोटियों को छीनने को , उग्रवेशी छा गये हैं,
रोटियों को बीनने को ही, विदेशी आ गये हैं।
याद मन्दिर की सताती, रोटियाँ जब पेट में हों,
याद मस्जिद बहुत आती, रोटियाँ जग पेट में हों।
राम ही रोटी बना और रोटिया ही राम हैं,
पेट की ये रोटियाँ ही, बोलती श्री-राम हैं।
रोटियों से, थाल सजते, आरती के,
रोटियों से, भाल-उज्जवल भारती के।
रोटियों से बस्तियाँ, आबाद हैं,
रोटियाँ खाकर, सभी आजाद हैं।
प्यार और मनमीत, रोटी में छिपा है।
जिन्दगी का गीत, रोटी मे छिपा है।।
बहुत बेहतरीन और सटीक...
ReplyDeleteशास्त्री जी ने चार चांद लगा दिये.
रचना जीवन की अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteजमीर बेच कर मालामाल हुए इंसान की फितरत को तो अनसुलझा सवाल होना ही है ....!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया , वर्मा साहब , एक-एक शब्द गहरे दर्द को समेटे हुए है !
ReplyDeleteअच्छा प्रहार
ReplyDeleteरोटियों की उदासी और दाल का रूठना......
ReplyDeleteज़िन्दगी के अनसुलझे ख्याल ही हैं.......वाह !
waah !!
ReplyDeletebahut sadha hua vyangye...zameer bik jane ke baad kuchh bhi mehetevpoorn kaise reh sakta hai.
ReplyDeleteJameer bech dia ,ab ye malamal hain..
ReplyDeletebahut sateek .
क्या सशक्त प्रतीक हैं और क्या गहरे भाव! मान गये!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव लगे इस के बेहतरीन रचना शुक्रिया
ReplyDeleteरोटियाँ उदास हैं
ReplyDeleteरूठ गए दाल हैं
फूस फुसा रहे दरख्त
गहरी कोई चल है ...
ये मयंक जी जो सारी रोटियाँ पका गए ....कहीं ये उदासी इस वजह से तो नहीं .....?
"zindagee ke ansulajhe khayalat..." zindagee ko kaun samajha..jo zameer bechte hain...malamal bante hain,wo to kabhi nahi..! Behtareen rachna hai!
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
सब कुछ सवाल है,
ReplyDeleteपर कविता बेमिशाल है,
खूबसूरत संदेश है,
शब्द भी कमाल है,
बहुत बहुत धन्यवाद
रोटियों को लेकर अलग अलग बिम्बों मे अनेक कविताये रची गई है लेकिन निर्जीव रोटी के भीतर सम्वेदना महसूस करते हुए उसे यह उदासी का बिम्ब देना बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteइंसान की फितरत
ReplyDeleteअनसुलझा सवाल है
बहुत खूबसूरत शब्दों में व्यंगय किया गया है. आभार
हर शब्द दिल को छूता हुआ, सत्यता के बेहद निकट यह अभिव्यक्ति बहुत ही बेहतरीन, आभार ।
ReplyDeleteरोटियाँ उदास हैं
ReplyDeleteरूठ गये दाल हैं
फुसफुसा रहे दरख़्त
गहरी कोई चाल है ....
आपने तो छोटी बहर को भी बाखूबी निभाया है वर्मा जी .... और कमाल के शेर कहे हैं ...... रोजमर्रा के जीवन की सत्य घटनाओं से निकली हुई रचना है ...... बेमिसाल ..........
वर्मा जी, बहुत खूब.
ReplyDeleteसत्य!
वाह वाह!!
(शास्त्री जी की रोटी महिमा लुभा गयी)
-Sulabh Jaiswal
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं , धन्यवाद !
ReplyDeleteहाँ हमारी तरह गालियाँ ये कहाँ से पाएंगे
ReplyDeleteआप चाहें तो उन्हे कुछ सिखला सकते हैं
एक बात की तारीफ तो करनी ही पड़ेगी कि
इतनी गालियाँ देने के बाद भी वे लोग आपस में
लड़ते नहीं हैं।
छोटी बहर की अच्छी ग़ज़ल
ReplyDeleteजीवन की स्थितियों पर तीखा व्यंग्य किया है आपने।
ReplyDelete------------------
सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?
बेअसर हर बात से बहुत मोटी खाल है . इंसान की फितरत अनसुलझा सवाल है ~~वाह!वाह!वाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता...पर सच यही है...
ReplyDeleteबेअसर हर बात से
बहुत मोटी खाल है
बहुत खूब लिखा है !
ReplyDeleteकहीं कहीं कुछ अखर रहा है जैसे "रूठ गये दाल हैं" ... दाल मेरी समझ के अनुसार स्त्रीलिंग है !
रचना शानदार है!
डूब गये खेत-घर
ReplyDeleteसूख गये ताल हैं .
ज़मीर बेच दिया
अब ये मालामाल हैं .
itne km shabdoN meiN
itni gehree aur sachchee baateiN
keh daali haiN...
waah !!
बहुरूपिये खयाल हैं
ReplyDeleteफेंकते जाल हैं
डूब गये खेत-घर
सूख गये ताल हैं
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं, श्रीमन.. धन्यवाद
आपको अपने ब्लॉग पर भी जोड़ रहा हूँ
- पीयूष
रोटियाँ उदास हैं
ReplyDeleteरूठ गये दाल हैं .
फुसफुसा रहे दरख़्त
गहरी कोई चाल है
बहुत सुन्दर पंक्तियां----खूबसूरत शब्दों में लिखी गयी।
हेमन्त कुमार
Atisundar saarthak prabhaavshalee abhivyakti.....
ReplyDeleteMugdh kar liya aapki is rachna ne....Waah !!!
बहुत खूब प्रशंसनीय.
ReplyDeleteजो बचा हुआ कुछ अनाज है
बनानी उसकी अब शराब है
ठेका उनको मिल गया है
सब उनके ही रिश्तेदार हैं
दाने दाने पर लिखा है
पीने वाले का जो नाम है
ज़मीर बेच दिया
ReplyDeleteअब ये मालामाल हैं
बहुत ही अच्छी रचना, सच्चाई को लफ्ज़ लफ्ज़ बयां करती हुई...बधाई...
नीरज
इंसान की फितरत
ReplyDeleteअनसुलझा सवाल है
बहुत खूबसूरत शब्दों में व्यंगय किया गया है. आभार
बहुत बढिया व्यंग । और ये तो बहुत ही......बढिया
ReplyDeleteज़मीर बेच दिया
अब ये मालामाल हैं ।
bhut hi behtreen yek vyangatmak rachna aaj ke samaaj par aur uske ansuljhe pahlu par meri badhaayi swikaar kare
ReplyDeletesaadar
praveen pathik
9971969084
बहुत सटीक रचना सर आभार
ReplyDeleteek sach bayan karti ,manko chu lete hain yeh bhav ,shubhkamnayen
ReplyDeleteक्या अंदाज़ है साहब! बहुत खूब!लिखते रहिये, कहते रहिये
ReplyDeleteक्म शब्दो मे गहरी बात।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत-२ आभार
बहुत ख़ूबसूरत रचना अभिव्यक्ति . बधाई
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना अभिव्यक्ति . बधाई
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