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अभी मैनें
प्रश्न किया भी नहीं था
कि
उत्तरों की फौज् ने आकर
अवरूद्ध कर दिया
मेरे हर संभावित प्रश्न की राह को
और ये उत्तर
प्रश्नों के ही लिबास में थे
नहीं छोड़ा
मेरे किसी भी प्रश्न को
दिमाग के गर्भ में
छत-विच्छत करने से.
मैं हतप्रभ हूँ
उन्हें कैसे पता चला
मेरे प्रश्नों के कद,
काठी और लिबास का;
उन्हें कैसे एहसास था
मेरे प्रश्नों के मर्मस्थल का;
उन्हें कैसे पता था
अजन्मे मेरे प्रश्नो के
पल-पल का.
शायद मेरा दिमाग
टेप किया जा रहा है;
या शायद
मेरे दिमाग का
क्लोन बना लिया गया है.
~~
मै हतप्रभ हूँ,
ReplyDeleteउन्हें कैसे पता चला
मेरे प्रश्नों के कद
काठी और लिबास का.............
सुन्दर भाव, वर्मा साहब !!
बहुत ही गहराई है आपकी इस रचना मे!
ReplyDeleteखुब्सूरत अभिव्यक्ति!
मैं हतप्रभ हूँ
ReplyDeleteउन्हें कैसे पता चला
मेरे प्रश्नों के कद,
काठी और लिबास का;
उन्हें कैसे एहसास था
मेरे प्रश्नों के मर्मस्थल का;
उन्हें कैसे पता था
अजन्मे मेरे प्रश्नो के
पल-पल का.
bahut hi gahri abhivyakti ke saath ek sunder rachna....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशुक्रिया आप सभी को
ReplyDeleteनहीं छोड़ा
ReplyDeleteमेरे किसी भी प्रश्न को
दिमाग के गर्भ में
छत-विच्छत करने से.
गहरे भावों की कविता
इसे टेलीपेथी या इंट्यूशन कहते होंगे:)
ReplyDeleteवर्मा साहब बहुत सुंदर रचना लिखी आप ने लगता है हर किसी का यही सवाल, यही प्रशन होगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
मैं हतप्रभ हूँ
ReplyDeleteउन्हें कैसे पता चला
मेरे प्रश्नों के कद,
काठी और लिबास का;
उन्हें कैसे एहसास था
मेरे प्रश्नों के मर्मस्थल का;
उन्हें कैसे पता था
अजन्मे मेरे प्रश्नो के
पल-पल का.
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।
बधाई!
फिक्र न करें उत्तरों की वर्षा जिज्ञासा को अवरुद्ध नहीं कर सकती।
ReplyDeleteमौन में भी बहुत प्रश्न होते हैं।
आह.....इन तूफानी हमलों में कुछ सोचने का अवसर नहीं होता,न कुछ जान पाने का.......
ReplyDeleteबस एक हताश स्थिति होती है.......
इस स्थिति का सही आकलन
गहरे भाव और खुबसूरत अभिव्यक्ति ...........
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावः --सुंदर अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteउन्हें कैसे पता था
ReplyDeleteअजन्मे मेरे प्रश्नो के
पल-पल का....खुब्सूरत अभिव्यक्ति!
itni khoobsoorat soch ko utni hi sundar rachna banane ke liye badhai sir, achchha laga aapki rachna ka Hindyugm par chayan hote dekhkar... Badhai.
ReplyDeleteJai Hind...
बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ है!
ReplyDeleteऔर ये उत्तर
ReplyDeleteप्रश्नों के ही लिबास में थे
मानसिक हलचल और प्रश्नों के उत्तर में सिर्फ प्रश्न मिलने का सुन्दर चित्रण. वाह!!
उन्हें कैसे पता था
ReplyDeleteअजन्मे मेरे प्रश्नो के ।
बहुत ही गहरे भावयुक्त रचना, आभार
अभी मैनें
ReplyDeleteप्रश्न किया भी नहीं था
कि
उत्तरों की फौज् ने आकर
अवरूद्ध कर दिया
मेरे हर संभावित प्रश्न की राह को
और ये उत्तर
प्रश्नों के ही लिबास में थे
नहीं छोड़ा
मेरे किसी भी प्रश्न को
दिमाग के गर्भ में
छत-विच्छत करने से.
bilkul sahi.........prashnajaal ki uljhan aur suljhan dono ka bahut hi khoobsoorti se prastutikaran kiya hai.
mere gazal ko nawazne ke liye aur mere blog per aane ke liye shukriya varma sahab!
ReplyDeleteaapki is sarthak kavita se mujhe bhi apna ak sher yad aa gaya-
ghar se aana nahi nika sahib
log kar jate hain qatal sahib
aapko aapse kahin jyada
janta hai wo aajkal sahib!-
ye sahi hai ak din aadmi dil ke sath ab dimag per bhi apna adhikar kho dega.
लाजवाब .. वर्मा जी बहुत खूब ......... सच में कभी कभी ये दुनिया प्रश्न करने से पहले ही बंद कर देती है सारे उत्तर ........ कमाल की कल्पना है ......
ReplyDeleteSUNDAR RACHNAA !!! PRASHNA KAHAAN ADHURE RAHTE HAI UTAR MIL HI JAATE HAIN!!!
ReplyDeleteशायद किसी बड़े षडयन्त्र का हिस्सा थे वे अवरुद्ध करने वाले प्रश्न …………सत्य का गर्भस्थल कब षडयन्त्रों के व्यूह से मुक्त रहा है ……..इतिहास साक्षी है ….!
ReplyDeleteसच है प्श्न के उत्तर में एक और प्रश्न यही फितरत है दुनिया की । बहुत ही गहरे पैठ कर लिखी है ये रचना ।
ReplyDeleteशायद मेरा दिमाग
ReplyDeleteटेप किया जा रहा है;
या शायद
मेरे दिमाग का
क्लोन बना लिया गया है.
बहुत सुन्दर गजब की अभिव्यक्ति...आभार
बहुत आगे की सोच.अतिउत्तम.
ReplyDeletebahut sahi likha hai apne.aaj zindagi time se pahle bhag rahi hai.aati sundar abhivyakti.
ReplyDeleteएकदम अनोखी कल्पना दर्शायी है आपने। बधाई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Swaal ye hai ki swaal kaun uthaata hai...
ReplyDeletemera blog achcha laga ...dhanyvaad!
Neelesh
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति................
ReplyDeleteबधाई....
प्रश्न बन खड़े हो जाते हैं जब अपने ही प्रश्नों के उत्तर, अच्छे नहीं लगते।
ReplyDelete--बेहतरीन कविता।
मैं हतप्रभ हूँ
ReplyDeleteउन्हें कैसे पता चला
मेरे प्रश्नों के कद,
काठी और लिबास का;
उन्हें कैसे एहसास था
मेरे प्रश्नों के मर्मस्थल का;
उन्हें कैसे पता था
अजन्मे मेरे प्रश्नो के
पल-पल का.
गहरे अर्थो को समेटे आपकी रचना बहुत भली लगी.
बेहद गहरी व उम्दा रचना. सवालों और जवाबों के बीच का द्वंद मन सामने रख दिया हो जैसे.
ReplyDelete--
महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
सौन्दर्य और दृश्य का चक्रवात सा जान पड़ता है
ReplyDelete---
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चाँद, बादल और शाम
दिमाग तो खुद टेप करता है जी वो सब जिसे कविता कहते हैं।
ReplyDeletemain hatprabh hoon ki aap itne sunder vichhar kaise likh dete hain itne sahaj dhang se
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