~~
जेबों में अपने हर सामान रखते हैं
दिल में ये लोग तो दुकान रखते हैं
शातिर मंसूबों का ज़ायजा क्या लेंगे
दुश्मनों के लिए ये गुणगान रखते हैं
बिखर कर भी जुड़ जाते है पल में
जिस्म में अपने सख्तजान रखते है.
मुआवजें जब शिनाख़्त पर होते हैं
थोड़ा सा जिस्म लहुलुहान रखते हैं
बिखर जायेंगे तुम्हारे हल्फिया बयान
वे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं
~~
बिखर जायेंगे तुम्हारे हल्फिया बयान
ReplyDeleteवे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं...
bahut gahri baat kah di hai aapne........
मुआवजें जब शिनाख़्त पर होते हैं
ReplyDeleteथोड़ा सा जिस्म लहुलुहान रखते हैं
sher bahut hi kamal ka hai. quotable hai. badhai!
Gajraula Times mein prakaashit hone ke liye aapko bahut bahut badhai.........
ReplyDeleteप्रेम जी धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद महफूज भाई
nice
ReplyDeleteaisa kaya ho gaya
अत्यंत भावपूर्ण, अर्थपूर्ण रचना है, गजरौला टाईम्स में प्रकाशन हेतू बहुत-बहुत बधाई !
ReplyDeleteबाज़ार है भीड भी बहुत है
ReplyDeleteक्या लोगो को पता नही यहाँ
सबकुछ बिकता है !बधाई!!!!!!!
बहुत ही उम्दा रचना है।बधाई।
ReplyDeleteबिखर जायेंगे तुम्हारे हल्फिया बयान
ReplyDeleteवे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं
AAPKE SHER JEEVAN KE SASCH KO HOOBHO BAYAAN KARTE HAIN .... BAHOOT HI LAJAWAAB....KAMAAL KI GAZAL HAI POORO GAZAL SAMAAJ KA AAINA HAI ....
आदमी की फ़ितरत कुछ ऐसी ही है..शानदार ग़ज़ल...हर पंक्ति लाज़वाब..बढ़िया लगा..धन्यवाद!!
ReplyDeleteEk behtareen ghazal.
ReplyDeletebahut khoob bhai saheb
ReplyDeletebadhaai !
Kis sher ki tareef kar doon Verma sir sabhi to ek se badh ke ek hain aur sabhi gahre tak dil me utar rahe hain... baki kuchh tareef karoonga to chhote muh badi baat hogi, abhi meri itni aukat nahin ki aapki gazal ki sameeksha kar sakoon.
ReplyDeleteJai Hind...
बिखर जायेंगे तुम्हारे हल्फिया बयान ...वे ऊँची जान पहचान रखते हैं ..
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत व्यंग्य से लबरेज शेर ...उम्दा गजल ...
बधाई व शुभकामनायें ..!!
कथ्य बेहतरीन है.... साधुवाद.....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह क्या बात है. आपकी भावनाओं को महसूस कर सकता हूं. बस यही कहना है कि दुकानदारों की बस्ती में अब भी कुछ इंसान बसते हैं.
ReplyDeleteवाह वर्मा जी बहुत ही उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई !
ReplyDeleteबिखर जायेंगे तुम्हारे हल्फिया बयान
ReplyDeleteवे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं....
दुनियावीं सच लिख दिया।
bahut khoob likha hai aur aaj ka sach likha hai.......badhayi
ReplyDeleteबिखर जायेंगे तुम्हारे हल्फिया बयान
ReplyDeleteवे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं
बेहतरीन पंक्तियाँ.
जेबों में अपने हर सामान रखते हैं
ReplyDeleteदिल में ये लोग तो दुकान रखते हैं
आज की कमर्शियल होती जा रही दुनिया का यही सच है..और फिर भी दिल माँगे मोर !!
मुआवजें जब शिनाख़्त पर होते हैं
थोड़ा सा जिस्म लहुलुहान रखते हैं
बहुत सटीक और सामयिक बात !!!
मुआवजे जब शिनाख्त पर होते है
ReplyDeleteथोडा सा जिस्म लहुलुहान रखते है !
बहुत सुन्दर बात कही आपने वर्मा साहब !
aapne bahut hi accha likha hai...mai shabdo ka chayan nahi kar pa rahi hu tarif ke liye...
ReplyDeleteजेबों में अपने हर सामान रखते हैं
ReplyDeleteदिल में ये लोग तो दुकान रखते हैं
एक बेहतरीन ग़ज़ल...
आज आपका ब्लाग देखा ब्लागिग की दूनिया में मै नयी हू लेकिन मै यह कहना चाहती हूं हमें ब्लाग के माध्यम से ही सही सार्थक प्रयास करने चाहिए जिससे उन बातों पर कुछ लगाम कसी सके जो दिन पर दिन भयावह होती जा रही है यदि कुछ कर सके किसी के लिए तो यह जीवन व्यर्थ न जायेगा .....
ReplyDelete