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तुम मुझे गोली मार दो
क्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता
मैं तो तभी मर गया था
जब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
और --
और मैनें प्रतिकार की जगह
परोस दी थी --
तुम्हारे सामने अपनी अस्मिता भी;
जब अपने वजूद की नींव पर
मैं तुम्हारी अट्टालिकाएँ बना रहा था
और खटकने लगी थी तुम्हें
मेरी झोपड़ी इसके बगल में;
मैं तब भी मरा था
जब तुमने
सूरज की रोशनी की आपूर्ति
मुझ जैसों के लिये
प्रतिबन्धित कर दी थी
और तुम्हारा कहा मानकर
सूरज तुम्हारे लिये ही रोशनी बिखेरने लगा था;
तुम समेटते रहे
मेरे अस्तित्व की तमाम संभावनाओं को
और मुझे मोम से ढक दिया था
अपलक देखते रहने को;
इससे पहले कि
हवाएँ भी तुम्हारे झाँसे में आकर
आक्सीजन की आपूर्ति बन्द कर दें
तुम मुझे गोली मार दो !
~~~
यह ताकत का खेल वर्तमान का सच है। आज गरीबी नहीं गरीब को समाप्त किया जा रहा है। बधाई अच्छी रचना के लिए।
ReplyDeleteविशद भाव को समेटे हुये रचना ........ आज की सच को आइना दिखा रही है ......सादर
ReplyDeleteओम आर्य
अच्छा लिखा है, विषय स्पष्ट है
ReplyDeletehttp://dunalee.blogspot.com/
बढिया!!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसच है, जिसने अस्मिता बेच दी, वो तो मरा हो ही गया!!
ReplyDeleteसच्चाई से रूबरू करती मार्मिक रचना. मरा हुआ फिर क्या मरेगा. बहुत गहरे भाव की रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा .. आजकल ताकतवालों की ऐसी जीत .. जंगलराज दिखाई देता है !!
ReplyDeletebahut hi achhi rachna.....shabd-shabd dahak rahe hain
ReplyDeleteverma ji,
ReplyDeletebahut hi sundar bhav. badhai to aapke ke liye banti hi hai vo bhi dil se.
मैं तो तभी मर गया था
ReplyDeleteजब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
bahut hi samvedanpoorn panktiyan hain.....
bahut hi bhaavpoorn shabdon ke saath likhi gayi ek sunder kavita....
तुम मुझे गोली मार दो
ReplyDeleteक्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता
वाह.....!
प्रजातन्त्र की प्रजा का
इससे बढ़िया चित्रण और क्या होगा!
सर्वप्रथम सबका आभार प्रेरणा प्रदान करने के लिये.
ReplyDeleteप्रेम जी ने मार्गदर्शन किया विशेष आभार.
"तुम मुझे गोली मार दो
ReplyDeleteक्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता"
बहुत ही रचना है ।
मैं तो तभी मर गया था
ReplyDeleteजब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
काश यह कविता मन्मोहन की सरकार मै बेठे नेता पढते जिन्होने गरीबो की रोटी छिन ली है.... या फ़िर वो नेता पढते जो स्विस बेंको मै अपने सात पुश्तो के लिये धन जमा करते है गरीबो के मुंह से कोर छीन कर
धन्यवाद
बहुत सुन्दर, मार्मिक कविता
ReplyDeleteजिन्होंने रोटी छीन ली वो शायद ऐसे कहेंगे: यह तो बहुत चालू मुर्दा है, देखो तो, मरा हुआ है फिर भी हमारा एक कारतूस खर्च कराने पर तुला है।
ReplyDeleteइसे कहते हैं शब्दों की जादूगरी..बहुत ही बढ़िया!!!
ReplyDeleteVARMA SAHAB AAPKI BAAT AUR JAJBAAT KA TARIKA BAHUT HI KHUB HAIN
ReplyDeleteबुंदेलखंड में घास की रोटियां खाने से बेहतर यही है एक बार गोली
ReplyDeleteखा ली जाए...
जय हिंद...
dhanyavaad
ReplyDeleteye goli...rooh tak pahunchti hai.
आज के जंगलराज पर दृष्टि दाल रही है
ReplyDeleteयह कविता ...
पर कुछ नकारात्मक सन्देश भी दे रही है...!!
अपना हक संगदिल ज़माने से छीन पाओ तो कोई बात बने ...हमारा तो आदर्श वाक्य यही है ..!!
ये जीना भी कोई जीना है ।
ReplyDeleteदर्दनाक
ReplyDeleteहाँ आज भी यही है हमारे समाज का सच
सफल अभिव्यक्ति
बहत ही खूबसूरत दर्द है आपकी पंक्तियों में
ReplyDeleteन हन्यते हन्यमाने शरीरे!
ReplyDeletehar sadharan nagrik(comman man) ka dard likh diya aapne...
ReplyDeletelajawab..
Jai Hind
मरे हुए को मारें
ReplyDeleteदीवाने तो हैं
पर इतने दीवाने भी नहीं ...
वैसे पहले से मरा हुआ
बार बार मरता जाए
और मारने वाले को बुलाता जाए
मारने वाला खुद ही न मर जाएगा
खुदा न सही
यमराज का काम आसां हो जाएगा।
yah vartmaan ka sach hai ....... log gandhi ji ke marg par chalte chalte ahinsa ke gun gaate gaate kab napunsak ho gaye pata hi nahi chala ........... virodh bagavat sab gayab ho gaye
ReplyDeleteaur dusre log uska faayda uthate chale gaye .....
बधाई अच्छी रचना ...
ReplyDeleteअसीम गहराई समेटे सुन्दर रचना…
ReplyDeleteसत्य को आईना दिखा दिया………………………तारीफ़ के लिये शब्द कम पड रहे है।
ReplyDeleteapki sabhi rachnaye bahut achchi hai . uaha gaur
ReplyDeleteगहरे जज्बात हैं वर्मा जी .......... सच में मजबूर इंसान तो उस वक़्त ही मर जाता है जब उसकी मजबूरी का सौदा हो जाता है ........ बहूत ही गहरी संवेदना है आपकी रचना में ......
ReplyDelete" tarif ke liye alfaz nahi ...bahut hi umda , behtarin "
ReplyDelete----- eksacchai{ aawaz }
http://eksacchai.blogspot.com
सुन्दर भाव को समेटे हुए एक सार्थक रचना.. बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमै तो तभी मर गया था
ReplyDeleteजब तुमने मेरे हक़ की रोटी पर कब्जा किया था !
बेहतरीन शब्द !
man ko chu jaataa hai aaj ki yeh dard bharee sachai sunder rachna.
ReplyDeletevery good poem, emotional and deep.
ReplyDeleteतुम मुझे गोली मार दो
ReplyDeleteक्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता
बहुत सही
जिन्दा इन्सानो मे वो गरूरत नहीम
तू जी कर भी है मरा हुया
मौत ढूढने की जरूरत नहीं
बहुत सही और सटीक अभिव्यक्ति है आज की व्यवस्था पर बधाई
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने !
ReplyDeleteइतने क्रांतिकारी विचार सुनकर स्तब्ध हूं।
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
इससे पहले कि
ReplyDeleteहवाएँ भी तुम्हारे झाँसे में आकर
आक्सीजन की आपूर्ति बन्द कर दें
तुम मुझे गोली मार दो !
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ !
shukriya !
ReplyDeleteइससे पहले कि
हवाएँ भी तुम्हारे झाँसे में आकर
आक्सीजन की आपूर्ति बन्द कर दें
तुम मुझे गोली मार दो !
yatharth ko bayan karti rachna
मैं तो तभी मर गया था
ReplyDeleteजब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
और --
और मैनें प्रतिकार की जगह
परोस दी थी --
तुम्हारे सामने अपनी अस्मिता भी;
Masterstroke !!
Flawless !!
Dost bahut accha likha hai aapne . Aur ye baat aao bhi jaante hain...
...nahi to jaan lijiye !!
Aur kahi prakashit karwaien isko !!
ग़रीबी अभिशाप है .अमीरी क्या है , यह आपने कविता में बता ही दिया है .यह वक्त की हक़ीकत है . पर वह सुंदर समय भी आयेगा जब सब बराबर होंगे .
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मार्मिक भी ।
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