शनिवार, 16 मार्च 2019

धुप्प अँधेरे में


धुप्प अँधेरे में
खुद को तलाशने की कोशिश में
स्वयं के एहसासों के अवशेषों से
कई बार टकराया
निःशब्द स्व-श्वासों की आहट से
कई बार चकराया

दिग्भ्रमित करने के लिए
तैनात हो गए  
मेरे ही खंडित सपने
आक्रोशित से खड़े मिले
तथाकथित मेरे अज़ीज़, मेरे अपने
सबने मेरी गुमशुदगी का इल्जाम
मुझ पर ही लगाया

मकड़ी के उलझे जालों के बीच से;
अवगुंठित अनगिन सवालों के बीच से,
खुद का हाथ पकड़कर
खुद के करीब लाया  
खुद को फिर भी प्रतिपल
खुद से और दूर पाया

6 टिप्‍पणियां:

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  2. आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 20 मार्च 2019 को साझा की गई है..
    http://halchalwith5links.blogspot.in/
    पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।

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  3. जीवन की कशमकश कहाँ दूर होती है ...
    अभी लगता है हम करीब हैं दुसरे पर मुद्दतों दूर हो जाते हैं ...
    मन के भावों की गहरी अभिव्यक्ति ...

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  4. तथाकथित मेरे अज़ीज़, मेरे अपने
    सबने मेरी गुमशुदगी का इल्जाम
    मुझ पर ही लगाया

    बड़ी गहरी जज्बात ,बहुत खूब ,होली की हार्दिक शुभकामनाये

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  5. गहन एवं गूढ रचना...बहुत सुन्दर..।

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  6. मन के भावों की गहरी अभिव्यक्ति .
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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