जिस्म को बेइंतिहाँ उछाला मैंने
बिखरकर खुद को संभाला मैंने
.
बेदर्द का दिया दर्द सह नहीं पाया
पत्थर का एक ‘वजूद’ ढाला मैंने
.
किरदार छुपा लेते हैं एहसासों को
खुद को बना डाला रंगशाला मैंने
.
एहसास उनके रूबरू ही नही होते
न जाने कितनी बार खंगाला मैंने
.
अब क्या दिखेंगे जख्म के निशान
ओढ़ लिया है जबकि दुशाला मैंने
.
जब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
.
ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने
मन में उतर जाती हैं आपकी रचनाएं, यह रचना अपवाद कैसे होती...
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है...
भावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
very nice ghazal very nice.
ReplyDeleteइस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें /
ReplyDeleteZindagee ke behad qareeb!
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो
ReplyDeleteबहुत खूब सर जी ,आस्तीनों में साँपों को पाला मैंनें ,क्या लिखा है आपनें।
ReplyDeleteबेदर्द का दिया दर्द सह नहीं पाया
ReplyDeleteपत्थर का एक ‘वजूद’ ढाला मैंने
ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने
बहुत खूब ... खूबसूरत गजल
.
शुक्रवार के मंच पर, लाया प्रस्तुति खींच |
ReplyDeleteचर्चा करने के लिए, आजा आँखे मीच ||
स्वागत है-
charchamanch.blogspot.com
कविता की तरह ही आपके ग़ज़ल भी भीतर तक पहुच कर उद्वेलित करते हैं.. बढ़िया ग़ज़ल..
ReplyDeleteअब क्या दिखेंगे जख्म के निशान
ReplyDeleteओढ़ लिया है जबकि दुशाला मैंने... देखकर व्यर्थ की बातों से बचा लिया खुद को ...
एहसास उनके रूबरू ही नही होते
ReplyDeleteन जाने कितनी बार खंगाला मैंने
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति...आभार
.
ताकि ये किसी और को न डसें
ReplyDeleteआस्तीनों में साँपों को पाला मैंने
गज़ब कर दिया वर्मा जी………हर बार की तरह शानदार
वाह ! बहुत बढ़िया और शानदार ग़ज़ल लिखी है वर्मा जी .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...सीधे दिल को छूती रचना :)
ReplyDeleteSuperb !
ReplyDeleteमन को छूते गहन भाव ...
ReplyDeleteशंकर ने विष पी डाला सब,
ReplyDeleteनहीं मरेगा कहीं कोई अब।
किरदार छुपा लेते हैं एहसासों को
ReplyDeleteखुद को बना डाला रंगशाला मैंने ..
एक कडुवे सच कों उतारा है इस शेर में ...
सच है जीवन के अनेकों किरदार हों तो सच छुप जाता है ... लाजवाब लिखा है वर्मा जी ,...
बहुत उम्दा अशआरों से सजी बढ़िया गजल!
ReplyDeleteबहुत उम्दा अशआरों से सजी बढ़िया गजल!
ReplyDeleteबढ़िया गज़ल है। अंतिम दो शेर तो बेहतरीन बन पड़े हैं।
ReplyDeletebahut sunder rachna.....
ReplyDeletebahut acchhe link mile.
ReplyDeleteek ek aashar behtareen .
ReplyDeleteवाह वाह क्या खूबसूरत कतरे हैं वर्मा जी बहुत ही सुंदर बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeletewah ! bahut khoob
ReplyDeleteवाह क्या बात है
ReplyDelete(अरुन = arunsblog.in)
साँपों को पाला ...लाज़वाब ...
ReplyDeleteजब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
ReplyDeleteकांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
बहुत बढ़िया है
bahut hi acchi ghazal hai verma ji
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गजल .....
ReplyDeleteबहूत हि खुबसुरत और बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteजब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
ReplyDeleteकांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने.
रोज़मर्रा की अनुभवों पर आधारित कारगर नुस्खे एक सुंदर गज़ल के र्रोप में.
बधाई.
जब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
ReplyDeleteकांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने.
रोज़मर्रा की अनुभवों पर आधारित कारगर नुस्खे एक सुंदर गज़ल के र्रोप में.
बधाई.
किरदार छुपा लेते हैं एहसासों को
ReplyDeleteखुद को बना डाला रंगशाला मैंने
बेहतरीन ग़ज़ल का बेमिसाल शेर !
हर शेर को दुबारा पढ़ा मैंने।
बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत बढिया .....
ReplyDeleteबहुत खूब वर्मा जी ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू जाता है....
ReplyDeleteजब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
ReplyDeleteकांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने...
kante se kante wala nuskha wakah lajababa hai..sadar badhai
Great post. Check my website on hindi stories at http://afsaana.in/ . Thanks!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteAmazing lines
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