आज वह मर गया;
ऐसा नहीं कि
पहली बार मरा है
अपने जन्म से
मृत्यु तक
होता रहा तार-तार;
और मरता रहा
हर दिन कई-कई बार,
उसके लिए
रचे जाते रहे चक्रव्यूह,
और फिर
यह जानते हुए भी कि
वह दक्ष नहीं है
- चक्रव्यूह भेदनकला में,
उसे ही कर्तव्यबोध कराया गया;
और उतारा गया
बारम्बार समर में,
हर बार उसके मृत्यु पर
विधिवत निर्वहन हुआ
शोक की परम्परा का भी,
और फिर आंसुओं का सैलाब देख
वह पुन: पुनश्च,
उठ खड़ा होता रहा.
.
पर आज जबकि
वह फाइनली मर गया है,
रचा गया है
फिर एक नया चक्रव्यूह
उस जैसे किसी और के लिए.
गहन भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई बहुत अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteजीवन के कुरूक्षेत्र में परिवार के किसी न किसी सदस्य को तो बार-बार मरने का बीड़ा उठाना ही पड़ता है। कविता हमे आईना दिखाती है कि पहचान लो अपना चेहरा और तय कर लो अपनी भूमिका ! आखिर कौन हो तुम ?
ReplyDeleteन जाने कितने चक्रव्यूह हैं जो ऐसे ही मौत देते हैं ... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteयहाँ हर पग पर जयद्रथ खड़े हैं, अभिमन्यु पर घात लगाने के लिये।
ReplyDeleteये अभिमन्यु का प्रारब्ध
ReplyDeleteचक्रव्यूह मे फंसा स्तब्ध
लौट लौट फिर आना है
उसको लड़ते जाना है....
अच्छी प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंसान का ईमान भी ऐसे ही बार बार मरता है .
ReplyDeleteहर रोज नए चक्रव्यूह रचे जाते हाँ और नए अभिमन्यु की तलाश होती है ... कुरुक्षेत्र कभी खत्म नहीं होता ...
ReplyDeleteजीवनरूपी चक्रव्यूह मे आज हर अभिमन्यु का यही हाल है……………बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteयह भी जीवन का एक रूप है, गहन भावव्यक्ति...
ReplyDeleteसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअगला भी वैसा ही शिकार होता रहेगा...
ReplyDeletebahut achchhi kavita hai. badhai
ReplyDeletebachut hi pyari kavita hai,badhai
ReplyDeletehota rahega chakravyuh taiyaar - her baar
ReplyDeleteकितनी सहजता से बयाँ करी आपने चक्र्व्यूह की निरंतरता! वाह!
ReplyDeleteगहन ...... विचारणीय भाव......
ReplyDeleteबहुत गहन भाव............
ReplyDeleteजीवन रुपी युद्ध में पल-पल शिकस्त होती है मानव की...तिलतिल मरता है..............
बहुत खूब सर.
गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteइस महासमर के महारथी छल के वार करने में आगा-पीछा कहाँ देखते हैं !
ReplyDeleteगहन भाव
ReplyDeleteअभिमन्यु की नियति यही है इस क्रूर विश्व के लिए ....
ReplyDeleteशुभकामनायें भाई जी !
हर दौर के अभिमन्यु ऐसे ही छले जते रहे हैं।
ReplyDeleteyahi to bidambana hai
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