Monday, April 2, 2012

अभिशप्त दायरा …..



कभी हतप्रभ
तो कभी हताश
ढूढता है वह
अपना आकाश.
यूं तो वह
अत्यंत सहनशील है;
पथप्रदर्शकों (?) द्वारा बताए मार्ग पर
निरंतर गतिशील है,
कोल्हू के बैल सा
वृत्ताकार मार्ग के
मार्ग-दोष से बेखबर
चलता ही जा रहा है;
या शायद
बेबस और लाचार
खुद को
छलता ही जा रहा है.
कदाचित उसे पता ही नहीं है
उसके श्रम का परिणाम
आश्रित है,
वेग और विस्थापन पर.
कितना भी चले वह
उनके बताए रास्ते पर
विस्थापन तो अंततः
शून्य ही रहेगा
.
निश्चित ही
अभिशप्त इस दायरे को तोड़कर
बाहर आने को ठानेगा,
जब भी वह
श्रम-साध्य पर सरल मार्ग के
सत्य को पहचानेगा

37 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना सर...

    वृत्ताकार मार्ग के
    मार्ग-दोष से बेखबर
    चलता ही जा रहा है;

    लाजवाब कल्पनाशीलता...

    साथ ही physics bhee yaad aayi...
    W= F X D
    :-)
    सादर.
    अनु

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  2. यही तो जीवन-दर्शन है ,पर समझना उतना ही कठिन !

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  3. बहुत खूब सर!

    सादर

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  4. निश्चित ही

    अभिशप्त इस दायरे को तोड़कर

    बाहर आने को ठानेगा,

    जब भी वह

    श्रम-साध्य पर सरल मार्ग के

    सत्य को पहचानेगा

    श्रम करने वाला हर दायरे को तोड़ सकता है ...सुंदर प्रस्तुति

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  5. विस्थापन तो अंततः

    शून्य ही रहेगा

    ... sahi darshan

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  6. श्रम का मार्ग ही असली मार्ग है ...
    इस जीवन दर्शन को समझने में बहुत समय लग जाता है ... गहरा चिंतन ...

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  7. बेहद गहन जीवन दर्शन

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  8. गहन भाव संजोये हुए बेहतरीन प्रस्‍तुति‍
    कल 04/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं .... ...

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  9. वृत्ताकार मार्ग के
    मार्ग-दोष से बेखबर
    चलता ही जा रहा है....

    अद्भुत बिम्ब लेकर सृजित रचना...
    सादर बधाई.

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  10. बहुत गहरी अभिव्यक्ति ... सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें .. !!

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  11. विस्थापन को जबरन शून्य से गुना किया जाता है ..

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  12. 'उसके श्रम का परिणाम
    आश्रित है,
    वेग और विस्थापन पर.
    कितना भी चले वह
    उनके बताए रास्ते पर
    विस्थापन तो अंततः
    शून्य ही रहेगा'

    वैज्ञानिक पद्धति से जीवन दर्शन का सत्यापन अद्भुत लगा. सुंदर प्रस्तुति.

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  13. सभी इस वृत्त से बाहर आना चाहते हैं, बस कोल्हू उतारकर फेंकना पड़ेगा।

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  14. सकारात्मक रचना !!

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  15. बहुत ही सुन्दर ....!

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  16. निश्चित ही

    अभिशप्त इस दायरे को तोड़कर

    बाहर आने को ठानेगा,

    जब भी वह

    श्रम-साध्य पर सरल मार्ग के

    सत्य को पहचानेगा....................वर्मा जी आपकी कविता और इस चित्र के माध्यम से जो बात आप समझाना चाह रहे हैं उस में आप कामयाब रहे हैं ......पर आज के वक्त के हालात बदल चुके हैं ...आज मजदूरी..मेहनत करने वाले को भी पता हैं कि उसे प्रतिघंटा मजूदरी के पैसे मिलंगे ...मध्य भारत के कुछ हिस्सों को छोड़ कर ...बाकि सब जगह हालात बदल चुके हैं (अगर कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा चाहूंगी )

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  17. बहुत सुन्दर ....!

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  18. This comment has been removed by the author.

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  19. bahut sundar bhavpoorn rachna..
    Welcome To My New Post: बलि

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  20. निश्चित ही

    अभिशप्त इस दायरे को तोड़कर

    बाहर आने को ठानेगा,

    जब भी वह

    श्रम-साध्य पर सरल मार्ग के

    सत्य को पहचानेगा

    ....गहन चिंतन...यही तो शाश्वत सत्य है जिसे हम समझ नहीं पाते...बहुत सुन्दर रचना....

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  21. निश्चित ही
    अभिशप्त इस दायरे को तोड़कर
    बाहर आने को ठानेगा...

    निश्चित ही बेहतर...

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  22. क्या बात है ..वर्मा जी ,गजब की बात कही है ..नि:शब्द करती है रचना ..सबसे अलग शायद इसीलिए कहते है जहाँ ना पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि..,,,,,,,,,,बधाई.

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  23. सुंदर और खूब कही है.

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  24. सुन्दर कल्पना की है आपने जीवन के इस दर्शन को समझने की कोशिश की है मेने इस माध्यम से ।

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  25. बहुत ही सुन्दर और गहरी सोच की बात है अपने जीवन के अभ्व्यक्ति के दायरे को तोड़ने की

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  26. सुन्दर एवं सहज रचना...हर आदमी इन वृत्तों से बाहर आना चाहता है..पर कुछ ही हैं जो इसके लिए श्रम कर पाते हैं...अगर मार्क्स भी आपकी कबिता को पढ़ते तो अभिभूत हो जाते...आभार !

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  27. निश्चित ही
    अभिशप्त इस दायरे को तोड़कर
    बाहर आने को ठानेगा,
    जब भी वह
    श्रम-साध्य पर सरल मार्ग के
    सत्य को पहचानेगा

    गहरे भाव, सुंदर अभिव्यक्ति।

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  28. बहुत सुंदर सकारात्मक रचना...बेहतरीन पोस्ट
    .
    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  29. विस्थापन तो अंततः

    शून्य ही रहेगा...
    sach hai

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  30. निश्चित ही

    अभिशप्त इस दायरे को तोड़कर

    बाहर आने को ठानेगा,

    जब भी वह

    श्रम-साध्य पर सरल मार्ग के

    सत्य को पहचानेगा....aakhir kab ..pahchaan kar bhee in haaloatom mein pahchaan nahi paayega

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