आईने के सामने बैठ
खुद को पहचानने की कोशिश में
रूबरू हो गए
मेरे समस्त अन्तर्निहित
और अनाहूत किरदार.
मेरे वजूद की धज्जियाँ उड़ाते
कुछ थे रंगदार;
तो कुछ स्वयम्भू सरदार,
कोई धारदार हथियारों से लैस था;
तो किसी की निगाहों में
बेवजह तैस था,
कुछ न जाने क्या गा रहे थे;
तो कुछ लगातार खा रहे थे,
कुछ अनाचारी;
तो कुछ थे व्यभिचारी,
यही नहीं इन्हीं के बीच
अट्टहास लगाता फिर रहा था
एक किरदार बलात्कारी.
.
आईने
झूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
मुस्कराते हुए;
खुशनुमा मुखौटों के बीच
इससे पहले कि
ये किसी और को नज़र आयें.
.
जी हाँ ! मैं इन्हें छुपा लूंगा.
kya bat hai aaine ka sahi rup prastut kiya hai badhai
ReplyDeleteबहुत सही ..बेहतरीन
ReplyDeleteआईने
ReplyDeleteझूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
मुस्कराते हुए;
खुशनुमा मुखौटों के बीच
इससे पहले कि
ये किसी और को नज़र आयें.
भावमय करते शब्द ।
badhiya rachnas.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, अफ़सोस कि इन दुराचारियों को आप वहां जाने से नहीं रोक सकते, दो सभाएं है एक से नहीं घुसे तो दूसरी से घुस जायेंगे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletenice :)
ReplyDeletebehtareen abhivyakti
ReplyDeleteउम्दा और बेहतरीन
ReplyDeleteGyan Darpan
..
आईने से क्या क्या छिपाया जाये भला..
ReplyDeleteइन्सान के भी कई भयानक चेहरे होते हैं ।
ReplyDeleteलेकिन लोग आईना देखते ही कहाँ हैं ।
बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई वर्मा जी ।
सुन्दर!
ReplyDeletebehtarin rachana hai...
ReplyDeletebehtarin rachana hai...
ReplyDeletebehatarin abhivykti...
ReplyDeleteसही कहा आपने. आईने झूठ नही बोलते है.
ReplyDeleteबेहतरीन भावमयी प्रस्तुति.
आईने
ReplyDeleteझूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
लाजवाब रचना...
सादर.
लाज़वाब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआईने के सामने खुद का विश्लेषण यूँ भी होता है .. गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteman ko chhu gayi aap kii racna
ReplyDeletebadhai
behtareen....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
bhawpoorn......
ReplyDeleteबहुत शशक्त ... लाजवाब ... सोचने को मजबूर करती है रचना ...
ReplyDeletesach kaha vo in sab kirdaron ko chhupa lega aur ek bar fir janta ko ullu bana lega....yahi to uska maksad hai.
ReplyDelete"मैं इन्हें छुपा लूँगा" बेहतरीन पंक्तियाँ हैं | और यही तो हमारे देश का दुर्भाग्य है कि सब जानते हुए भी कुछ कर नहीं पा रहें हैं हम |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteपोस्ट में आने के लिए आभार,...इसी तरह स्नेह बनाए रखे,...धन्यबाद
बेहतरीन...
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति
सादर.
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
ReplyDeleteएक भाव पूर्ण रचना....सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआईना झूठ नहीं बोलता...
ReplyDeleteअंदर झांकने को प्रेरित व्यंग्य...
आईने
ReplyDeleteझूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
मुस्कराते हुए;
खुशनुमा मुखौटों के बीच
इससे पहले कि
ये किसी और को नज़र आयें.
बेहतरीन पंक्तियाँ.
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
बेहद ही गहन भाव युक्त शसक्त रचना
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ...
ReplyDeleteछिपाना भी क्या इतना आसान हो पायेगा??
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeletevikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
सुंदर अभिव्यक्ति अच्छी रचना,..
ReplyDeleteNEW POST --26 जनवरी आया है....
is hunar me to aaj sabhi ek se badh kar ek hain.
ReplyDeletesunder sateek vyangy.