इससे पहले कि
मेरे हौसले मन्द हों;
इससे पहले कि
लौह-कपाट बन्द हो
मैं प्रवेश कर जाना चाहता हूँ
उस तिलिस्मी दुनिया में ।
मुझे पता है
एक बार जाने के बाद
लौट पाना मुश्किल है;
मुझे पता है
पग-पग पर तैनात हैं वहाँ
अनाचार-व्यभिचार के तिलिस्म,
अलगनी से टंगे मिलेंगे
रक्तरंजित रक्तबीज,
मेरे पैरों में बाँध दी जायेगी
मायावी बेड़ियाँ,
कीलों की साजिश से
छलनी हो जायेंगी एड़ियाँ,
सांप तो कहीं;
सीढियां मिलेंगी,
कुछ लोगों के द्वारा;
कुछ लोगो के लिए
नकार दी गयीं
पीढियां मिलेंगी,
गुजरना होगा मुझको
त्रासदी के भयावह सिलसिले से ।
.
पर इससे पहले कि
मेरे हौसले मन्द हों;
इससे पहले कि
लौह-कपाट बन्द हो,
और सुरक्षित हो जाएँ वे
जो इन सबके संचालक हैं
मैं प्रवेश कर जाना चाहता हूँ
उस तिलिस्मी दुनिया में ।
गहरी कविता , तिलिस्म से बचते बचते कहाँ फिरा जायेगा?
ReplyDeleteकभी-कभी मन इसी तिलिस्म में जीवन जीना चाहता है।
ReplyDeleteयह कौन सी जगह है ..कौन स दयार है ?
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबस... वाह...वह...वाह...
ReplyDeleteऔर कुछ कहने को शब्द ढूँढने कहाँ जाऊं....?
सांप तो कहीं;
ReplyDeleteसीढियां मिलेंगी,
कुछ लोगों के द्वारा;
कुछ लोगो के लिए
नकार दी गयीं
पीढियां मिलेंगी,
तिलिस्मी दुनिया में प्रवेश का हौसला लिए गहन अभिव्यक्ति...!
bahut zaruri hai...
ReplyDeleteसीढियां मिलेंगी,
ReplyDeleteकुछ लोगों के द्वारा;
कुछ लोगो के लिए
नकार दी गयीं
पीढियां मिलेंगी,
गुजरना होगा मुझको
त्रासदी के भयावह सिलसिले से ।
-पूरी कविता आज के यथार्थ का प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण .बधाई !
तिलिस्मी दुनिया ..जिसका तोड़ न हो. बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteतिलिस्मी दुनिया ...
ReplyDeleteकहाँ है !
bahut gahan bhaavon ko sametti prastuti.
ReplyDeleteत्रासदी से मुकाबला करने के लिये हौसलों का बुलंद होना अत्यंत आवश्यक है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
bahut sundar......is duniya me pravesh asan hai par nikalna mushkil......satyakathan
ReplyDeleteएक अलग ही प्रभाव छोड़ती कविता...
ReplyDeleteवाह! वाह!
ReplyDeleteबाँध लेती है रचना...
सादर बधाई...
ये जानते हुवे भी की ये तिलिस्म है इससे बच पाना आसान नहीं होता ... बहुत गहरी अभिव्यक्ति है वर्मा जी ...
ReplyDeleteआशा और हौसला जगाती कविता
ReplyDeleteus tilasmi duniya tak kya koi khud pahunch sakta hai bina vaha ke sarankshkon ke ?
ReplyDeletesunder gehen abhivyakti.
लग रहा ही नर्क की बात चल रही है..कौन जीना चाहेगा वहाँ जहां किले साजिश करेंगी |
ReplyDeleteबहुत ही गहन चिंतन..
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द लाजवाब है!
ReplyDeleteजज्बाती प्रभाव छोडती रचना..बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteनये पोस्ट में स्वागत है,
wah....kamal ka likha.....
ReplyDeleteपर इससे पहले कि
ReplyDeleteमेरे हौसले मन्द हों;
इससे पहले कि
लौह-कपाट बन्द हो,
और सुरक्षित हो जाएँ वे. गहन अभिव्यक्ति.
बहुत गहन चिंतन...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteइससे पहले कि
ReplyDeleteमेरे हौसले मन्द हों;
इससे पहले कि
लौह-कपाट बन्द हो
मैं प्रवेश कर जाना चाहता हूँ
उस तिलिस्मी दुनिया में ।
Waah! Chah cheez hi aisi hai… us tilismi duniya ki chah le hi jaaegi dil ko wahan… shubhkamnaayen!!!
गहरी सोच लिए रचना ...
ReplyDeleteआभार ...
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ... नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 19-11-11 को | कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें...
ReplyDeleteहौसलों को मंद नहीं पड़ने देना चाहिए....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
तिलस्म जो बस तिलस्म है ..सच्चाई कहाँ ?..अच्छा लिखा है
ReplyDeleteअद्भुत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहौसला बुलन्दी तो है ही तभी तो भारी भरकम लोह कपाट वाली तिलिस्मी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं । वापसी का क्या ।
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
so deep n intense
ReplyDeleteawesome lines... I read around twice .
Nice read !!
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
पग-पग पर तैनात हैं वहाँ
ReplyDeleteअनाचार-व्यभिचार के तिलिस्म,
अलगनी से टंगे मिलेंगे
रक्तरंजित रक्तबीज,
सच्चाइयों से रूबरू कराती अच्छी कविता.... !!
प्रभावी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइससे पहले कि
ReplyDeleteमेरे हौसले मन्द हों;
इससे पहले कि
लौह-कपाट बन्द हो
मैं प्रवेश कर जाना चाहता हूँ
उस तिलिस्मी दुनिया में ।
aur dwaar khula hai....
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
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