कभी सर्द हवाओं;
तो कभी
गर्म थपेड़ों के बहाने
उसके इर्द-गिर्द
खड़ी कर दी गई
बिना छत की दीवारें ।
वह विभेद करता रहा,
उन दीवारों से कान सटाकर
अट्टहास और चीत्कार में ।
अक्सर रात में
उसे दिखाये गये
चमकदार तारें;
आक्सीजन के नाम पर
उसे दिया गया निरंतर
आश्वासनों का अफीम ।
वह खुद ही में खोया,
कभी खुद ही को ढोया
और फिर
फूट-फूट कर रोया ।
.
मुझे पता है अब वह
खुद को भरमायेगा;
दीवारों से सर टकरायेगा
और फिर अंततोगत्वा
वहीं मर जायेगा ।
शायद वह जानता ही नहीं
साजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
शानदार रचना
ReplyDeleteGyan Darpan
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न जाने ऐसी कितनी ही दीवारें खड़ी कर ली हैं हमने अपने चारों ओर।
ReplyDeleteजाने कितने दर्द बयाँ कर रही है यह गूढ़ रचना ।
ReplyDeleteमहंगाई और भ्रष्टाचार रुपी साजिशों की दीवारों में घिरा इंसान आज यूँ ही तड़प तड़प कर मर रहा है ।
गहन अर्थ लिए हुए खूबसूरत रचना
ReplyDeleteऔर फिर अंततोगत्वा
ReplyDeleteवहीं मर जायेगा ।
शायद वह जानता ही नहीं
साजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
Uff!
•आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...कल शनिवार (५-११-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ......कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें .....!!!धन्यवाद.
ReplyDeleteबिना छत की दीवारें और साजीशों का भंवर... अंततोगत्वा मिटा ही तो देता है!
ReplyDeleteगहन रचना!
गहन भावों की अभिव्यक्ति दीवारों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया आपने ...
ReplyDeleteसाजिशों से बनी दीवारें टूटा नहीं करती ...
ReplyDeleteबेहतरीन !
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसादर...
साजिशों से बनी दीवारें टूटती नहीं
ReplyDeleteतोड़ देती हैं ....
अच्छी रचना,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
शायद वह जानता ही नहीं
ReplyDeleteसाजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
Ekdam sachch, shaandaar rachnaa.
जबर्दस्त कविता लिखी है।
ReplyDeletebehatareen bhaavon se saji sundar kavita
ReplyDeleteभावमय करती प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसाजिशे है हर तरफ़
ReplyDeleteहै मगर अचरज फिर भी
घर बसे हैं, घर बचे हैं
--ऋषभ देव शर्मा [‘ताकि सनद रहे’ पुस्तक से]
वे लौह दीवारें होती हैं शायद !
ReplyDeleteमुझे पता है अब वह
ReplyDeleteखुद को भरमायेगा;
दीवारों से सर टकरायेगा
और फिर अंततोगत्वा
वहीं मर जायेगा ।
बहुत गंभीर और विचारणीय प्रस्तुति. मन बहुत भावुक हो गया इस रचना से.
और साजिशें आपके नाम को बट्टा लगाने के लिए इतिहास मे दर्ज हो जाती हैं.. साजिशें मरा नहीं करतीं...
ReplyDeleteशायद वह जानता ही नहीं
ReplyDeleteसाजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं।
...वाह! ये पंक्तियाँ बड़ी दमदार हैं। सशक्त कविता।
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteसही कहा आपने ....
ReplyDeleteशुभकामनायें ! !
शायद वह जानता ही नहीं
ReplyDeleteसाजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
....gahra arthbodh karati saarthak rachna...
खूबसूरत रचना।
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