Sunday, October 16, 2011

हादसों की शक्ल में साजिशों का जलजला . .


अपनी जुबान

वह खोलने ही वाला था;

अपने हक की बात

वह बोलने ही वाला था

कि हादसों की शक्ल में

साजिशों का जलजला आया

और देखते ही देखते

वह तब्दील हो गया

जिन्दा लाश में,

तभी से ‘वह’

फिर रहा है मारा-मारा

किसी चश्मदीद की तलाश में ।

जिन्होंने देखा था

उन्हें फुर्सत ही कहाँ थी !

वे तो इस तरह के

हादसों के अभ्यस्त थे;

समुन्दर किनारे वे

रेत के घरौन्दे

बनाने में व्यस्त थे ।

गंतव्य तक पहुँचने की जल्दी में

हवाएँ भी

घटनास्थल से कतराकर

चुपचाप निकल रहीं थीं;

धूप ने तो

घटनास्थल तक अपनी पहुँच से ही

इनकार कर दिया

क्योंकि घटना के वक्त तो वह

‘उनकी’ अट्टालिकाओं की छतों पर

मिठास कायम रखने के लिये

मिर्ची सुखाने में व्यस्त था,

उसके खुद की परछाई ने भी

उसे आगे बढ जाने के लिये

रास्ता दे दिया;

दरख्तों ने

जमीन से जुड़े होने का

वास्ता दे दिया ।

.

उसे कौन समझाये !!

अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का

कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।

37 comments:

  1. bahut hi zabardast kavita likhi hai aapney :)

    ReplyDelete
  2. ऐसे हादसों से हिंदुस्तान बचा रहे , यही कामना करते हैं ।
    सार्थक , संवेदनशील कविता ।

    ReplyDelete
  3. धूप ने तो
    घटनास्थल तक अपनी पहुँच से ही
    इनकार कर दिया

    सच है, वक्त पड़ने पर कोई खड़ा नहीं होता!

    ReplyDelete
  4. जिन्होंने देखा था

    उन्हें फुर्सत ही कहाँ थी !

    वे तो इस तरह के

    हादसों के अभ्यस्त थे;... aur phir kaun apne saath haadson ko dekhna chahta hai

    ReplyDelete
  5. अट्टालिकाओं के साये में जब हादसे होते हैं तो कोई अक्षि साक्षी नहीं होता। अपना साया भी साथ नहीं देता।
    ..अच्छे ढंग से अभिव्यक्त किया है आपने।

    ReplyDelete
  6. हादसों में निर्दोष को ही पकड़ लिया जाता है ..कोई उसे बचाने भी नहीं आता .. बहुत संवेदनशील रचना

    ReplyDelete
  7. सच बताने वाला कोई मिलता ही नहीं।

    ReplyDelete
  8. उसे कौन समझाये !!

    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का

    कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
    Aah! Isse aage kya kaha ja sakta hai?

    ReplyDelete
  9. उसे कौन समझाये !!
    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
    कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।

    इस सच्चाई को कविता विषय बनाकर हादसों की हकीकत उजागर करने का प्रयास सराहनीय है.

    बहुत बधाई इस संवेदनशीलता के लिये.

    ReplyDelete
  10. दिल को छू गई आपकी यह रचना...

    ReplyDelete
  11. उसे कौन समझाये !!
    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
    कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
    बेहद भावमय करते शब्‍द हैं इस अभिव्‍यक्ति के ..सार्थक व सटीक लेखन ।

    ReplyDelete
  12. हां, खून और पीब के ज़ख्म लिए आज भी अश्वत्थामा घूम रहा है :(

    ReplyDelete
  13. ye bolti si tasveer godhra kand ke samay ki hai.....jise maine kain baar dekha ...par drad ko sahi mayne mein suna aur samjha aaj hai...!

    ReplyDelete
  14. सशक्त ,प्रभावी संवेदनशील सच .. आपको बधाई सुन्दर रचना के लिए..

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर, शानदार और ज़बरदस्त कविता लिखा है आपने ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है ! लाजवाब प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  16. कल 19/10/201को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.com नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  17. उफ़ वर्मा जी एक बार फिर वीभत्स सच्चाई को आईना दिखाया है आपने…………आज का कटु सत्य्।

    ReplyDelete
  18. बहुत प्रभावी ... समाज को आइना दिखाती है आपकी रचना ... यथार्थ कडुवा सच ...

    ReplyDelete
  19. सुंदर कविता। सच के सच को बखूबी चितेरा है आपने।

    ReplyDelete
  20. उसे कौन समझाये !!

    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का

    कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।

    ...लाज़वाब और सटीक अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  21. अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का कोई भी चश्मदीद नहीं होता...

    बेहतरीन...

    ReplyDelete
  22. aapki is prabhaavshali rachna ne itna prabhaav dala ki mujhe mook kar diya...me bhi bas mook drishta si mano ban k rah gayi hun.

    gazab ki abhivyakti.

    ReplyDelete
  23. सचमुच एक नग्न यथार्थ

    ReplyDelete
  24. उसे कौन समझाये !!
    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
    ...ek katuwa sach..
    badiya prastuti..

    ReplyDelete
  25. आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    ReplyDelete
  26. गहन अभिवयक्ति.....बहुत ही सुन्दर... शुभ दिवाली...

    ReplyDelete
  27. दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  28. **शुभ दीपावली **

    ReplyDelete
  29. उसे कौन समझाये !!

    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का

    कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।

    होता है ......'खुदा '

    और उसकी सजा सहन से परे होती है ....


    लाजवाब ......!!

    ReplyDelete
  30. उसे कौन समझाये !!
    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
    कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।!!!

    बहुत ही दर्दनाक मंजर उकेरा है आपने ! प्रणम्य है आपकी लेखनी !

    ReplyDelete
  31. उसे कौन समझाये !!

    अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का

    कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।

    बहुत सुन्दर चित्रण और अलग बिम्ब

    ReplyDelete
  32. बिल्कुल अंदर तक झझकोर दिया आपकी रचना ने .....

    ReplyDelete
  33. बेहद संवेदनशील रचना....

    ReplyDelete
  34. aap ke vicharon ko pad kr acha laga. maine bohot din baad kuch aisa pda jise pdne k baad lfz khatam ho gayeee

    ReplyDelete
  35. maine bohot din bad kuch pda......or ise pad kr lafz khatam ho gaye

    ReplyDelete