अपनी जुबान
वह खोलने ही वाला था;
अपने हक की बात
वह बोलने ही वाला था
कि हादसों की शक्ल में
साजिशों का जलजला आया
और देखते ही देखते
वह तब्दील हो गया
जिन्दा लाश में,
तभी से ‘वह’
फिर रहा है मारा-मारा
किसी चश्मदीद की तलाश में ।
जिन्होंने देखा था
उन्हें फुर्सत ही कहाँ थी !
वे तो इस तरह के
हादसों के अभ्यस्त थे;
समुन्दर किनारे वे
रेत के घरौन्दे
बनाने में व्यस्त थे ।
गंतव्य तक पहुँचने की जल्दी में
हवाएँ भी
घटनास्थल से कतराकर
चुपचाप निकल रहीं थीं;
धूप ने तो
घटनास्थल तक अपनी पहुँच से ही
इनकार कर दिया
क्योंकि घटना के वक्त तो वह
‘उनकी’ अट्टालिकाओं की छतों पर
मिठास कायम रखने के लिये
मिर्ची सुखाने में व्यस्त था,
उसके खुद की परछाई ने भी
उसे आगे बढ जाने के लिये
रास्ता दे दिया;
दरख्तों ने
जमीन से जुड़े होने का
वास्ता दे दिया ।
.
उसे कौन समझाये !!
अट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
bahut hi zabardast kavita likhi hai aapney :)
ReplyDeleteऐसे हादसों से हिंदुस्तान बचा रहे , यही कामना करते हैं ।
ReplyDeleteसार्थक , संवेदनशील कविता ।
धूप ने तो
ReplyDeleteघटनास्थल तक अपनी पहुँच से ही
इनकार कर दिया
सच है, वक्त पड़ने पर कोई खड़ा नहीं होता!
जिन्होंने देखा था
ReplyDeleteउन्हें फुर्सत ही कहाँ थी !
वे तो इस तरह के
हादसों के अभ्यस्त थे;... aur phir kaun apne saath haadson ko dekhna chahta hai
अट्टालिकाओं के साये में जब हादसे होते हैं तो कोई अक्षि साक्षी नहीं होता। अपना साया भी साथ नहीं देता।
ReplyDelete..अच्छे ढंग से अभिव्यक्त किया है आपने।
हादसों में निर्दोष को ही पकड़ लिया जाता है ..कोई उसे बचाने भी नहीं आता .. बहुत संवेदनशील रचना
ReplyDeleteसच बताने वाला कोई मिलता ही नहीं।
ReplyDeleteउसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
Aah! Isse aage kya kaha ja sakta hai?
उसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
इस सच्चाई को कविता विषय बनाकर हादसों की हकीकत उजागर करने का प्रयास सराहनीय है.
बहुत बधाई इस संवेदनशीलता के लिये.
दिल को छू गई आपकी यह रचना...
ReplyDeletenice poem........
ReplyDeleteउसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
बेहद भावमय करते शब्द हैं इस अभिव्यक्ति के ..सार्थक व सटीक लेखन ।
हां, खून और पीब के ज़ख्म लिए आज भी अश्वत्थामा घूम रहा है :(
ReplyDeleteye bolti si tasveer godhra kand ke samay ki hai.....jise maine kain baar dekha ...par drad ko sahi mayne mein suna aur samjha aaj hai...!
ReplyDeleteसशक्त ,प्रभावी संवेदनशील सच .. आपको बधाई सुन्दर रचना के लिए..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, शानदार और ज़बरदस्त कविता लिखा है आपने ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteकल 19/10/201को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.com नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
उफ़ वर्मा जी एक बार फिर वीभत्स सच्चाई को आईना दिखाया है आपने…………आज का कटु सत्य्।
ReplyDeleteबहुत प्रभावी ... समाज को आइना दिखाती है आपकी रचना ... यथार्थ कडुवा सच ...
ReplyDeleteसुंदर कविता। सच के सच को बखूबी चितेरा है आपने।
ReplyDeleteउसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
...लाज़वाब और सटीक अभिव्यक्ति..
bahut hi bemisal rachana hai..
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का कोई भी चश्मदीद नहीं होता...
ReplyDeleteबेहतरीन...
aapki is prabhaavshali rachna ne itna prabhaav dala ki mujhe mook kar diya...me bhi bas mook drishta si mano ban k rah gayi hun.
ReplyDeletegazab ki abhivyakti.
सचमुच एक नग्न यथार्थ
ReplyDeleteउसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
...ek katuwa sach..
badiya prastuti..
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
गहन अभिवयक्ति.....बहुत ही सुन्दर... शुभ दिवाली...
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDelete**शुभ दीपावली **
ReplyDeleteउसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
होता है ......'खुदा '
और उसकी सजा सहन से परे होती है ....
लाजवाब ......!!
उसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।!!!
बहुत ही दर्दनाक मंजर उकेरा है आपने ! प्रणम्य है आपकी लेखनी !
उसे कौन समझाये !!
ReplyDeleteअट्टालिकाओं के साये में हुए हादसों का
कोई भी चश्मदीद नहीं होता ।
बहुत सुन्दर चित्रण और अलग बिम्ब
बिल्कुल अंदर तक झझकोर दिया आपकी रचना ने .....
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील रचना....
ReplyDeleteaap ke vicharon ko pad kr acha laga. maine bohot din baad kuch aisa pda jise pdne k baad lfz khatam ho gayeee
ReplyDeletemaine bohot din bad kuch pda......or ise pad kr lafz khatam ho gaye
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