Saturday, October 8, 2011

शब्दों की चुप्पी का गर्जन ..



शब्दों ने

अक्सर इन ‘शब्दों’ को

नि:शब्द किया है.

जाने कितनी बार

शब्दहीन इन ‘शब्दों’ ने

कड़वे घूँट पिया है

.

शब्द भला कब

शब्दों से पार पाते हैं

अक्सर शब्द

शब्दों से हार जाते हैं

शब्द खुद शब्दों का

करते हैं नव-सर्जन

सुनना कभी

शब्दों की चुप्पी का गर्जन

शब्द जब

शब्दश: बयान करते हैं

तो शब्द

किसी को परेशान

तो किसी को हैरान करते हैं

शब्द जब

पत्थरों से टकराते हैं

तो लहुलुहान शब्द

फिर वहीं लौट आते हैं

.

शब्दों के झंझावात में

’शब्द’ घुट-घुट के जिया है

शब्दों ने

अक्सर इन ‘शब्दों’ को

नि:शब्द किया है.

35 comments:

  1. आपकी कविता अलग मिजाज़ की होती हैं . यह भी.

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  2. शब्दश : नि:शब्द किया है |

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  3. इतने दिनों बाद इस ब्लॉग पर पुनः उसी अंदाज में शब्दों का चमत्कार देख कर अच्छा लगा।

    मेरे विचार से सभी पाठक यह जरूर जानना चाहते होंगे कि इतने दिनों तक ब्लॉग से अवकाश के लिए आपने कौन सी छुट्टी का प्रार्थना पत्र लगाया है..? बिना स्वीकृति के कैसे पुनः कार्यभार ग्रहण कर लिया?
    हा..हा..हा..

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  4. शब्द न जाने कहाँ कहाँ की यात्रा करवा देते हैं?

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  5. आपकी रचना पर टिप्पणी करने के लिए शब्द नहीं हैं |

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  6. अक्सर इन ‘शब्दों’ को नि:शब्द किया है...

    बेहतर...

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  7. अक्सर शब्द

    शब्दों से हार जाते हैं

    अपनी ही सोच , परिवेशीय सोच शब्दों की बाज़ी खेलते हैं -

    बहुत सारे विचार उमड़ने लगे ....

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  8. adbhut!.....shabdon ki is chuppi ka garjan sachmuch me nishabd kar gaya hai.....

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  9. शब्दशः सच।
    रचना अच्छी लगी।

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  10. शब्दों ने अक्सर शब्दों को निःशब्द किया है ...
    वाकई सब खेल तो शब्दों का ही है!

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  11. @देवेन्द्र जी
    काश अवकाश ले पाते .. और फिर अपने घर वापसी के लिये प्रार्थना पत्र की क्या आवश्यकता.

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  12. रचना दीक्षित
    October 9, 2011 8:33 AM
    आपने तो पूरा शब्द जाल बनाकर कविता में परिवर्तित कर दिया. अद्भुत अभिव्यक्ति.

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  13. शब्दों का अति सुन्दर शब्द जाल ।
    लेकिन यह साफ नहीं हुआ कि इतने दिनों शब्दों की चुप्पी क्यों बनी रही ।

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  14. शब्द जब
    पत्थरों से टकराते हैं
    तो लहूलुहान शब्द
    फिर वहीं लौट आते हैं

    लीक से अलग हट कर रची गई कविता।
    बहुत बढि़या।

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  15. भावाभिव्यक्ति से पूर्ण "शब्द" रचना

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  16. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  17. शब्दहीन इन ‘शब्दों’ ने....

    वाह! अनूठी रचना...
    सादर...

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  18. नि:शब्‍द करती रचना ... ।

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  19. शब्द भला कब

    शब्दों से पार पाते हैं

    अक्सर शब्द

    शब्दों से हार जाते हैं

    ....बहुत सार्थक शब्द विश्लेषण...बहुत सटीक और सुन्दर..

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  20. वाह! अनूठी रचना...
    सादर...

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  21. naad brahm [shabd] se sansar ki utpatti mani gayi hai.aaj apki yah brahma upasna achi lagi!!!!!

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  22. छिद्रान्वेषण---- देखिये शब्द की महिमा गायन है परन्तु शब्द की शुद्धता तो होनी ही चाहिए ....यही हो रहा है अधिकाँश...जो नहीं होना चाहिए..

    कड़वे घूँट पिया है..= पिए हैं होना चाहिए ..बचन दोष है...परन्तु तुक सही रखने हेतु---व्याकरण के हेतु की तिलांजलि नहीं दी जानी चाहिए....

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  23. शब्दों का मायावी संसार ,चलाये है जीवन व्यापार .सुन्दर शब्द आयोजना ,सुन्दर विचार कविता .

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  24. शब्दों का क्या प्रयोग किया आपने विभिन्न मनोभावों को दर्शाने के लिए...

    मुग्धकारी ...बहुत ही सुन्दर रचना...वाह..

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  25. ज़बरदस्त, ज़ोरदार और धमाकेदार कविता लिखा है आपने! मैं निशब्द हो गई! अद्भुत सुन्दर!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  26. 'शब्दों ने

    अक्सर इन ‘शब्दों’ को

    नि:शब्द किया है.

    जाने कितनी बार

    शब्दहीन इन ‘शब्दों’ ने

    कड़वे घूँट पिया है'
    - आपके शब्दों ने सचमुच शब्दहीन कर दिया.आपके शब्द-कौशल के आगे मत-मस्तक हूँ !

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  27. शब्दों का शब्दों से इतना विरोधाभास ।
    हमेशा आपकी रचना कुछ अलग सा ही कहती है । काफी दिनों की चुप्पी के बाद फूटे हैं ये शब्द ।

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  28. शब्द का सुन्दर विश्लेषण!

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  29. बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है
    उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

    संजय कुमार
    आदत….मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  30. शब्दों की चुप्पी का गर्जन नि:शब्द कर देता है

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  31. क्या गज़ब चीर फाड़ किया है शब्दों ही शब्दों में शब्द का ... लाजवाब रचना ...

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  32. सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
    बहुत सारे विचार उमड़ने लगे .

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  33. इतना सच है यह सब कि सारे शब्द सार्थक हो उठते हैं ,मन में बरबस ही सारा परिदृष्य उभर आता है -


    अपने हक की बात
    वह बोलने ही वाला था

    कि हादसों की शक्ल में

    साजिशों का जलजला आया

    और देखते ही देखते

    वह तब्दील हो गया

    जिन्दा लाश में,

    तभी से ‘वह’

    फिर रहा है मारा-मारा

    किसी चश्मदीद की तलाश में ।

    जिन्होंने देखा था

    उन्हें फुर्सत ही कहाँ थी !

    वे तो इस तरह के

    हादसों के अभ्यस्त थे;

    समुन्दर किनारे वे

    रेत के घरौन्दे

    बनाने में व्यस्त थे ।

    गंतव्य तक पहुँचने की जल्दी में

    हवाएँ भी

    घटनास्थल से कतराकर

    चुपचाप निकल रहीं थीं;

    धूप ने तो

    घटनास्थल तक अपनी पहुँच से ही

    इनकार कर दिया,
    *
    बधाई आपको .
    दीपावली की हार्दिक शुभ कामनायें !

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  34. मिठास कायम रखने के लिये

    मिर्ची सुखाने में व्यस्त था,

    Ghazab ka virodhabhaas...ghazab ki rachna

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