Thursday, December 9, 2010

आईना खुद जब आईना देखता है (Mirror Effect)



आईना

कोई वस्तु नही है

यह होता है स्वभाव

यह परख लेता है पल में

पूरा का पूरा वजूद

और बदल देता है

खुद को परख रहे का मनोभाव

आईना है एक प्रवृत्ति

यह सक्षम है बदलने को

किसी की भी चित्तवृत्ति

आईना अक्सर झाँकता है

आँखों में,

और पलांश में ही

हकीकत बयान कर देता है

यह आहिस्ता से उतर जाता है

अंतस्थल के मर्म हिस्से में

और किसी को रूनझुन-रूनझुन

‘पायल’ कर जाता है

या फिर किसी के अस्तित्व को

’घायल’ कर जाता है

आईना कभी कभार

खुद आईना देखता है

और अकस्मात देखते देखते

अनगिनत हो जाता है

आईना जब टूटता है तो

दीदार की हसरत लिये

राह के ईर्द-गिर्द बिखर जाता है

आईना जो कुछ भी कहता है

उस पर खुद की मनोदशा का

होता है प्रभाव


आईना

कोई वस्तु नही है

यह होता है स्वभाव

60 comments:

मनोज कुमार said...

हमारा खुद को देखना ही सबसे बड़ा आइना मन के द्वारा होता है।
तब सच में आइना खुद आइना देखता है।

shikha varshney said...

अपना मन ही आइना होता है ..
गहन अभिव्यक्ति.

रचना दीक्षित said...

आइना कुछ भी न कह कर बहुत कुछ कह जाता है
आईना कोई वस्तु नही है यह होता है स्वभाव

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खुद के अंदर झाँक लें तो आईना दिख जायेगा ..बहुत सटीक रचना ...

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत गहरे भाव भर दिये आपने अपने शब्दों में.......

अजय कुमार said...

आइना ,आदमी को सुधारता है ।

प्रवीण पाण्डेय said...

आईना को भावों के समकक्ष खड़ा कर कई कठिन बिम्ब सरल कर दिये आपने।

कडुवासच said...

... bahut sundar ... bhaavpoorn rachanaa ... badhaai !!!

Kunwar Kusumesh said...

किसी को रूनझुन-रूनझुन

‘पायल’ कर जाता है

या फिर किसी के अस्तित्व को

’घायल’ कर जाता

आईने की ये परिभाषा एकदम अलग और क़ाबिले-तारीफ है.

(इस टिप्पणी को मैं गल्ती से पिछली पोस्ट पर लगा आया ,sorry bhai)

सदा said...

आईने के माध्‍यम से गहन भावों को समेटा है इस रचना में ।

संजय भास्‍कर said...

खुद के अंदर झाँक लें तो आईना दिख जायेगा
SANGEETA JI SAB KUCH KEH DIYA HAI

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

aina to apne ander hi hai,
bas nishchhal man me jhankna hai...

gahre bhavon ki sundar rachna.

AMAN said...

बहुत सुन्दर

vandana gupta said...

मन का आईना ही सबसे बडा आईना होता है और वहाँ कुछ नही छुप सकता……………बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

समयचक्र said...

बहुत ख़ूबसूरत एहसास ...सुन्दर भावपूर्ण रचना ....आभार

Razia said...

बहुत सुन्दर रचना

रश्मि प्रभा... said...

आईना जो कुछ भी कहता है

उस पर खुद की मनोदशा का

होता है प्रभाव
...bilkul sahi

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आईना

कोई वस्तु नही है

यह होता है स्वभाव
...आईना दिखाती कविता के लिए बधाई स्वीकार करें।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर रचना ! इंसान का सही स्वभाव उसके मन रुपी आईने में प्रतिफलित होता है !

Arvind Mishra said...

हाँ हम और आप आईने ही तो निकले !

डॉ टी एस दराल said...

अन्तर्मन के आइने की ओर देखने वाले अब कम ही बचे हैं ।
बहुत उम्दा रचना ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

http://charchamanch.uchcharan.com
.

अनामिका की सदायें ...... said...

जैसा अंतस के भाव होंगे वैसा ही आईना दिखायेगा. सुंदर अभिव्यक्ति.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सुंदर रचना, आभार.

रामराम.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘आईना कभी कभार

खुद आईना देखता है

और अकस्मात देखते देखते

अनगिनत हो जाता है’

वहां तक, जहां तक नज़र जाती हो ॥

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत खूब वर्मा जी!
आपने तो आइने को भी आइना दिखा दिया!
बहुत जरूरी था यह आज के परिवेश मेंं!

केवल राम said...

आईना कोई वस्तु नही है यह होता है स्वभाव....
xxxxxxxxxxxxxx
नमस्कार
सच में आईना कोई वस्तु नहीं ...........आत्मविश्लेषण करने को प्रेरित करती कविता ...शुक्रिया

DR.ASHOK KUMAR said...

बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है । आईना हम सबके पास मौजूद होता है जो कि हमारा मन हैँ। बहुत बहुत आभार जी!

ZEAL said...

आइना पर इतनी सुन्दर प्रस्तुति पहले कभी नहीं पढ़ी । बहुत पसंद आयी।

शारदा अरोरा said...

बढ़िया अभिव्यक्ति ...कभी कभी आईना नजरें भी चुराता है , देख कर उम्र की सलवटें ..अनदेखी कर जाता है ..कितने ही रूप लिए मन की स्लेट पर क्या क्या लिख जाता है ...

अनुपमा पाठक said...

aaina swabhav hi to hai!
sundar rachna!

Er. सत्यम शिवम said...

बहुत ही अच्छा.....मेरा ब्लागः-"काव्य-कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ ....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

Anonymous said...

बेहतर...

शरद कोकास said...

आइने के बिम्ब पर अच्छी कविता है

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

ग़ज़ब ... वर्मा जी बहुत ही लाजवाब और गहरी कविता है .. आईने को लेकर इतना अच्छा बहुत कम पढ़ने को मिलता है ... बिंब को इंसान की सोच और यथार्ट से जोड़ दिया है आपने ...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आदरणीय वर्मा जी ,
आईने में उभरते हुए अक्स के तमाम रंगों को सजाकर जीवन की यथार्थ पूर्ण अभिव्यक्ति इतनी बखूबी उकेरी जा सकती है ,यह आपकी कविता पढ़ने के बादही पता चलता है !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

वीना श्रीवास्तव said...

अंतस्थल के मर्म हिस्से में

और किसी को रूनझुन-रूनझुन

‘पायल’ कर जाता है

या फिर किसी के अस्तित्व को

’घायल’ कर जाता है

वाकई...हमारा मन ही सबसे बड़ा आइना है और वह भी आइना देखता है...उसको भी कभी आइना देखने व दिखाने की जरूरत पड़ती है..सच का आइना..बहुत ही लाजवाब....

वीना श्रीवास्तव said...

अंतस्थल के मर्म हिस्से में

और किसी को रूनझुन-रूनझुन

‘पायल’ कर जाता है

या फिर किसी के अस्तित्व को

’घायल’ कर जाता है

वाकई...हमारा मन ही सबसे बड़ा आइना है और वह भी आइना देखता है...उसको भी कभी आइना देखने व दिखाने की जरूरत पड़ती है..सच का आइना..बहुत ही लाजवाब....

रंजना said...

आईना जो कुछ भी कहता है

उस पर खुद की मनोदशा का

होता है प्रभाव

आईना

कोई वस्तु नही है

यह होता है स्वभाव

बिलकुल सही कहा आपने...शत प्रतिशत सही..

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत प्यारी कविता..मन ही आइना है .


________________
'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!

हरकीरत ' हीर' said...

आईना कोई वस्तु नही है यह होता है स्वभाव यह परख लेता है पल में पूरा का पूरा वजूद और बदल देता है खुद को परख रहे का मनोभाव आईना है ...

आईने का बखूबी प्रतिबिम्ब बनाया है आपने .....

निर्मला कपिला said...

इन्सान का मन जब उसके अन्दर देखता है तभी खुद को जान पाता है आईने के माध्यम से सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।

महेन्‍द्र वर्मा said...

आईना है एक प्रवृत्ति
यह सक्षम है बदलने को
किसी की भी चित्तवृत्ति
आईना अक्सर झाँकता है
आँखों में,
और पलांश में ही
हकीकत बयान कर देता है

सही कहा आपने, आईना एक प्रवृत्ति है...
एक मनावैज्ञानिक सत्य को प्रतीकों के माध्यम से आपने बखूबी उद्घाटित किया है...
...शुभकामनाएं।

डॉ० डंडा लखनवी said...

"आईना जब टूटता है तो दीदार की हसरत लिये राह के ईर्द-गिर्द बिखर जाता है" अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति......।
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आपके ब्लाग पर आ कर प्रसन्नता हुई। कई आलेखों का आस्वादन किया। भावपूर्ण लेखन के लिए बधाई।
========================
प्रेम पर एक सदाबहार टिप्पणी-
==================
प्रेम सुपरफ्लेम है।
मजेदार गेम है॥
हार-जीत का इसमें
होता न क्लेम है॥
-डॉ० डंडा लखनवी

Anonymous said...

बेहद संजीदा और मंजी हुई कविता है !..मानव मन के हर कोने को देखती यह आइना कविता एक प्रौढ़ रचना है ! हम आभारी हैं आपके , इतनी सुंदर कविता पढकर !

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

ज्योति सिंह said...

behad sundar rachna ,kitne mahine blog se door rahi aur aap sabhi ki kai rachna nahi padh saki ab is kabi ko poora karna hai ,nav barsh ki dhero badhiyaan .

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

आपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की हार्दिक शुभकामना ! भगवान् से प्रार्थना है कि नया साल आप सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और शान्ति से परिपूर्ण हो !!

kshama said...

ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा

खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
Wah!Kya gazab likhte hain aap!

राज भाटिय़ा said...

आप की कविता जिन्दगी की हकीकत व्याण करती हे जी, बहुत सुंदर. धन्यवाद

स्वाति said...

बहुत सटीक रचना ...

Dr.Uma Shankar Chaturvedi said...

कभी हाय तो कभी वाह है जिन्दगी

सतत और निर्बाध प्रवाह है जिन्दगी

उपरोक्त पंक्ति के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद ।
सच तो ये है कि -

एक हिस्सा श्वेत तो एक श्याम है ,
गिरके उठना ज़िन्दगी का काम है,
जिन्दगी तो जिन्दगी है इसलिए कि-
चलते रहना जिन्दगी का नाम है।

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

ब्लॉग भी बहुत सुन्दर है...

Anonymous said...

खुद को समेटने से कतराती रही है !देखिये किस कदर बेपरवाह है जिन्दगी ! सचमुच जिन्दगी का मोल बताती कविता बहुत सार्थक है ! नव वर्ष मंगलमय हो !

palash said...

जिन्दगी की सच्चाई का आइना दिखती है आपकी पोस्ट ।

Amrita Tanmay said...

आपके आईना की गहराई में झाँकने पर वास्तविक स्वभाव जरुर दिखाई पड़ने लगता है बहुत गहरे भाव भर दिये आपने अपने शब्दों में........बहुत सटीक रचना .

Satish Saxena said...

कमाल की रचना है वर्मा जी !
हार्दिक शुभकामनायें !

Asha Joglekar said...

आईना कभी कभार

खुद आईना देखता है

और अकस्मात देखते देखते

अनगिनत हो जाता है ।

हम में से हरेक को आईना दिखाती कविता ।

Dinesh pareek said...

आपका ब्लॉग देखा | बहुत ही सुन्दर तरीके से अपने अपने विचारो को रखा है बहुत अच्छा लगा इश्वर से प्राथना है की बस आप इसी तरह अपने इस लेखन के मार्ग पे और जयादा उन्ती करे आपको और जयादा सफलता मिले
अगर आपको फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे पधारने का कष्ट करे मैं अपने निचे लिंक दे रहा हु
बहुत बहुत धन्यवाद
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/